Shreshtha Bal Kahaniyan

Author: Balshauri Reddi
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Shreshtha Bal Kahaniyan
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विश्व की आबादी में बच्चों की संख्या एक तिहाई के आसपास है। जलवायु, वेशभूषा, रीति-रिवाज, रहन-सहन, खान-पान की दृष्टि से भले ही उनमें भिन्नता दर्शित होती हो, किन्तु उनके विचार और सोच एक समान हैं। बच्चे स्वभावत: परस्पर धर्म, जाति, वर्ण, वर्ग, सम्प्रदाय को लेकर भेदभाव नहीं रखते। उनका दिल स्वच्छ, काग़ज़ की भाँति निर्मल होता है। उनमें हम जैसे संस्कार डालते हैं, उन्हीं के अनुरूप उनका चरित्र बनता है। उनके शारीरिक विकास के लिए जैसे बलवर्धक आहार की आवश्यकता होती है, उसी प्रकार उनके बौद्धिक विकास के लिए उत्तम साहित्य की नितान्त आवश्यकता है।

बच्चों में कहानी सुनने की प्रवृत्ति जन्मजात है। आयु की वृद्धि के साथ उनमें कहानी पढ़ने की रुचि और प्रवृत्ति भी बढ़ती जाती है। अत: उनकी रुचि के पोषण एवं परिष्कार के लिए स्वस्थ साहित्य एक सबल माध्यम बन सकता है।

भारतीय भाषाओं में सर्वप्रथम संस्कृत में बाल-साहित्य का प्रादुर्भाव हुआ। पंचतंत्र, हितोपदेश इत्यादि विश्व के अमर साहित्य में अपना अनुपम स्थान रखते हैं। कालान्तर में देश की अन्य भाषाओं में बाल-साहित्य का सृजन हुआ। आज भारत की प्राय: समस्त भाषाओं में उत्तम बाल-साहित्य का सृजन एवं प्रकाशन हो रहा है।

प्रस्तुत पुस्तक में 12 भारतीय भाषाओं की 131 बाल-कहानियों का चयन किया गया है। सम्भवत: भारतीय भाषाओं में इस प्रकार का प्रयास प्रथम है। बच्चों के मनोरंजन एवं ज्ञानवर्धन में ये कहानियाँ सफल होंगी तो हम अपने इस प्रयास को सार्थक मानेंगे।

More Information
Language Hindi
Format Hard Back, Paper Back
Publication Year 1993
Edition Year 2018, Ed. 2nd
Pages 519p
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publisher Lokbharti Prakashan
Dimensions 20.5 X 13 X 2.5
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Balshauri Reddi

Author: Balshauri Reddi

बालशौरि रेड्डी

बालशौरि रेड्डी का जन्म 1 जुलाई, 1928 को ज़ि‍ला—कडपा, आंध्र प्रदेश में हुआ। प्रारम्भिक शिक्षा नेल्लूर एवं कडपा से तथा उच्च शिक्षा इलाहाबाद व वाराणसी में पूरी की। हिन्‍दी प्रचार सभा, मद्रास; भारतीय भाषा परिषद्, कोलकाता; हिन्‍दी अकादमी, हैदराबाद तथा अन्य संस्थाओं से सम्‍बद्ध रहे श्री रेड्डी ने 23 वर्षों तक बच्चों की लोकप्रिय हिन्‍दी पत्रिका ‘चंदामामा’ का सम्‍पादन किया। लगभग दो दर्जन से अधिक पुस्तकें प्रकाशित। कथा-साहित्य के अलावा प्रचुर मात्रा में बाल-साहित्य का लेखन किया। ‘शबरी’, ‘ज़ि‍न्‍दगी की राह’, ‘बैरिस्टर’, ‘प्रकाश और परछाईं’ आदि चर्चित उपन्यास हैं। अनेक सम्मानों एवं उपाधियों से अलंकृत बालशौरि जी को देश-विदेश के दर्जनों पुरस्कार मिले; जैसे—‘राजर्षि पुरुषोत्‍तम दास पुरस्कार’, ‘गणेशशंकर विद्यार्थी पुरस्कार’, ‘केरल साहित्य अकादेमी पुरस्कार’ आदि।
निधन : 15 सितम्‍बर, 2015

 

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