सुप्रसिद्ध समाजवादी चिन्तक और अप्रतिम नेता ई.एम.एस. नम्बूदिरिपाद के शब्दों में, चिन्नप्‍प भारती ने अपने पूर्ववर्ती उपन्यास ‘संगम’ और ‘दाहम’ में किसानों के हृदय में पनप रही वर्ग-चेतना और संगठन-बोध की जिस बेल को पल्लवित होते दिखाया था, ‘शक्कर’ में आकर वह परवान चढ़ जाती है। इस रचना में वर्ग-संघर्ष और क्रान्ति के सिद्धान्त को परिभाषित करते हुए एक सुलझी हुई रणनीति प्रस्तुत की गई है।

दो भागों में विभक्त इस उपन्यास का कथानक रोचक और सुगठित है। मिल-मालिक और मज़दूरों के संघर्ष और टकराव में मेहनतकश किसानों की भूमिका को रेखांकित करना कृषि-प्रधान देश भारत की यथार्थ परिस्थितियों के नितान्त अनुरूप है। अंग्रेज़ सरकार की फूट डालकर राज करने की नीति को अपनाते हुए चीनी मिल-मालिक मज़दूर यूनियन के प्रयासों को नाकाम करने के लिए पुत्र के नेतृत्व में समान्तर यूनियन बनाकर किसानों को मज़दूरों के ख़िलाफ़ बरगलाता है। हड़ताल के पहले चरण में किसानों का संघ मज़दूरों के ख़िलाफ़ लड़ता है। इस टकराव में यूनियन नेता कन्दसामी घायल होकर अस्पताल में भर्ती हो जाते हैं। उन्हें अस्थायी रूप से निलम्बित किया जाता है। नेता-विहीन मज़दूर-यूनियन की बागडोर सँभालने के लिए युवा नेता वीरन आगे आता है। कन्दसामी द्वारा यूनियन गतिविधियों में प्रशिक्षित वीरन मज़दूरों और किसानों को संगठित करके उन्हें वर्ग-संघर्ष की ओर प्रेरित करता है। इस बीच यूनियन का चुनाव आता है जिसमें उम्मीदवार के रूप में खड़े नेता को मज़दूरों और प्रबन्ध के सहयोग की आवश्यकता होती है। इस प्रयास के चलते एक समझौता होता है जिसमें मज़दूरों की ज़्यादातर माँगे मंजूर कर ली जाती हैं और कन्दसामी को नौकरी पर बहाल किया जाता है।

इस प्रधान कथा के अन्दर एक रोमांटिक उपकथा भी है। कन्दसामी की बहन और युवा मज़दूर नेता वीरन के बीच अंकुरित प्रेम अन्त में विवाह में परिणत होता है।

‘शक्कर’ उपन्यास में चिन्नप्‍प भारती ने मालिक-मज़दूर के बीच हो रहे टकराव का तर्कपूर्ण विश्लेषण किया है। यही नहीं, इस उपन्यास में मज़दूरों की क्रान्ति के सिद्धान्त को वास्तविकता के धरातल पर परिभाषित करके एक सुलझी हुई रणनीति को रूप देने में भारती को पूरी कामयाबी मिली है।

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Language Hindi
Format Hard Back
Publication Year 2001
Edition Year 2001, Ed. 1st
Pages 216p
Translator Saraswati Ramnath
Editor Not Selected
Publisher Rajkamal Prakashan
Dimensions 22 X 14 X 1.5
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K. Chinnappa Bharti

Author: K. Chinnappa Bharti

कु. चिन्नप्प भारती

जन्म : 1935; पोन्नेरिपट्टी, नामक्कल, सेलम (तमिलनाडु)।

हाईस्कूल की पढ़ाई के समय से ही छात्र-आन्दोलनों से सम्बद्ध। समाजवादी सिद्धान्तों के प्रति रुझान के चलते चेन्नई के पच्चैयपान कॉलेज में इंटरमीडिएट की पढ़ाई के दौरान स्टूडेंट्स फ़ेडरेशन ऑफ़ इंडिया के प्रमुख नेता। 1955 में इंडोनेशिया की राजधानी बांडुंग में आयोजित अफ़्रीकी-एशियाई शान्ति सम्मेलन में तमिलनाडु छात्र-संघ के प्रतिनिधि के रूप में भाग लिया। 1957 में मास्को में आयोजित राष्ट्रीय युवा सम्मेलन में भारत का प्रतिनिधित्व। इंटर के बाद पढ़ाई छोड़कर सक्रिय राजनीति में प्रवेश। 1958 में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) के सदस्य बने। पार्टी के टिकट पर नामक्कल नगर के पार्षद चुने गए। पार्षद के रूप में कोल्लीमलै के पहाड़ी क्षेत्रों में जाकर गिरिजनों और जनजाति के लोगों के बीच काम करने और उनकी समस्याओं को जानने का अवसर मिला। 1976 में आपातकाल के दौरान एक वर्ष का कारावास।

तमिलनाडु प्रगतिशील लेखक संघ के सचिव (1976) के रूप में तथा सी.आई.टी.यू. मज़दूर संघ के अध्यक्ष के रूप में चिन्नप भारती को बुद्धिजीवियों और जनसाधारण के साथ घुलने-मिलने के अवसर मिलते रहे जिसके फलस्वरूप वे सशक्त उपन्यासों की रचना में सफल हुए।

कुछ समय तक मासिक साहित्यिक-सामाजिक पत्रिका ‘चेम्मलर’ के प्रबन्ध सम्पादक रहे।

प्रमुख कृतियाँ : कविता-संग्रह—‘चिन्नप्प भारती की कविताएँ’ (1954), ‘निलवुडै मै एप्पो’ (भूस्वामित्व कब? 1954); कहानी-संग्रह—‘चिन्नप्प भारतियिन् कुट्टि कदैगल’ (1954); उपन्यास—‘दाहम’, ‘संगम’, ‘शर्करा’, ‘पवलाई’।

अनुवाद : चिन्नप्प भारती की रचनाएँ अंग्रेज़ी, तेलुगू, मलयालम, हिन्दी आदि भाषाओं में अनूदित हुई हैं।

सम्मान : उपन्यास ‘संगम’ पर ‘इलक्किय चिंतनै पुरस्कार’ (1985), वर्ष का ‘श्रेष्ठ उपन्यास पुरस्कार’ (1985), उपन्यास ‘दाहम’ प्रथम दस श्रेष्ठ उपन्यासों में परिगणित।

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