Samkaleenta Aur Sahitya

Author: Rajesh Joshi
Edition: 2024, Ed. 3rd
Language: Hindi
Publisher: Rajkamal Prakashan
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Samkaleenta Aur Sahitya

जब मैं बैंक में काम करता था, एक भिखारी था जो थोड़े अन्तराल से बैंक आता और रोकड़िया के काउंटर पर जाकर बहुत सारी चिल्लर अपनी थैली से उलट देता, फिर अपनी अंटी से, कभी अपनी आस्तीन से तुड़े-मुड़े नोट निकालकर एक छोटी-सी ढेरी लगा देता। कहता, इसे जमा कर लीजिए। उसके आने से मज़ा आता, आश्चर्य भी होता और एक क़िस्म की खीज भी होती—उन नोटों और गन्दी-सी चिल्लर को गिनने में। उस रोकड़िया जैसी ही स्थिति मेरी भी होती है जब समय-समय पर लिखी गई, छोटी-बड़ी टिप्पणियों को जमा कर उनकी किताब बनाने लगता हूँ। इस पूरी प्रक्रिया में लेकिन भिखारी भी मैं ही हूँ और रोकड़िया भी। सारी चिल्लर और नोट गिन लिए जाते तब पता लगता कि राशि कम नहीं हैं—कुल जमा काफ़ी अच्छा-ख़ासा है। ऐसा आश्चर्य कभी-कभी मुझे भी होता है। पृष्ठ गिनने लगता हूँ तो लगता है कि बहुत कुछ जमा हो गया है। सब कुछ चोखा नहीं है, कुछ खोटे सिक्के और फटे हुए नोट भी हैं।

इस दूसरी नोटबुक में इतना ही फ़र्क़ है कि इसमें गद्य की कुछ किताबों पर गाहे-बगाहे लिखी गई टिप्पणियों को भी शामिल किया गया है। पहली नोटबुक के फ़्लैप पर मैंने कहा था कि लिखने के सारे कौशल सिर्फ़ रचनाकार की क्षमताओं से ही पैदा नहीं होते हैं, कई बार वह अक्षमताओं से भी जन्म लेते हैं। ये नोट्‌स और टिप्पणियाँ मेरी क्षमताओं के बनिस्बत मेरी अक्षमताओं से ज़्यादा पैदा हुई हैं।

मुझे लगता था कि बाज़ार हिन्दी की कविता का कभी कुछ नहीं बिगाड़ पाएगा क्योंकि न तो इस क्षेत्र में अधिक पैसा है, न ही कीर्ति के कोई बहुत बड़े अवसर ही हैं। पर मैं ग़लत था। बाज़ार एक प्रवृत्ति है। इसका ताल्लुक़ अवसर, पैसे या कीर्ति से नहीं है। हिन्दी साहित्य का वर्तमान परिदृश्य जिस तरह के घमासान और निरर्थक विवादों से भरा नज़र आ रहा है, वह बाज़ार के ही प्रभाव का परिणाम है। विगत तीन दशकों की कविता का जैसा मूल्यांकन होना चाहिए, वह नहीं हो पा रहा है। ‘आलोचना’ से यह उम्मीद तब तक निरर्थक ही होगी जब तक कि कवि स्वयं इस दृश्य के मूल्यांकन की कोशिश नहीं करेंगे। यही हालत गद्य की भी है, विशेष रूप से कहानी और उपन्यास की। उसमें हल्ला अधिक है, सार्थक विमर्श और साफ़ बोलनेवाली आलोचना कम। आलोचना का एक बड़ा हिस्सा या तो उजड्डता और अहंकार से भरा है या ‘अहो रूपम् अहो ध्वनि’ के शोर से। एक कवि और कथाकार ही इसमें हस्तक्षेप कर सकता है। उसी की ज़रूरत है।

—राजेश जोशी

More Information
Language Hindi
Binding Hard Back
Publication Year 2010
Edition Year 2024, Ed. 3rd
Pages 308p
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publisher Rajkamal Prakashan
Dimensions 22 X 14.5 X 2
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Rajesh Joshi

Author: Rajesh Joshi

राजेश जोशी

18 जुलाई, 1946 को नरसिंहगढ़, मध्य प्रदेश में जन्म।

प्रकाशित कृतियाँ : ‘समरगाथा’ (लम्बी कविता); ‘एक दिन बोलेंगे पेड़’, ‘मिट्टी का चेहरा’, ‘धूपघड़ी’ (दोनों संग्रहों का संयुक्त संग्रह), ‘नेपथ्य में हँसी’, ‘दो पंक्तियों के बीच’, ‘चाँद की वर्तनी’, ‘जि़द’, ‘गेंद निराली मीठू की’ (बच्चों के लिए), ‘प्रतिनिधि कविताएँ’, ‘कवि ने कहा’ (कविता-संग्रह); ‘सोमवार और अन्य कहानियाँ’, ‘कपिल का पेड़’, ‘मेरी चुनी हुई कहानियाँ’ (कहानी-संग्रह); ‘क़िस्सा-कोताह’ (आख्यान); ‘जादू जंगल’, ‘अच्छे आदमी’, ‘पाँसे’ और ‘सपना मेरा यही सखी’, ‘ब्रह्मराक्षस का नाई’ (बच्चों के लिए) (नाटक); ‘हमें जवाब चाहिए’ (नुक्कड़ नाटक); ‘पतलून पहिना बादल’ (अब ‘ब्लादीमिर मायकोव्स्की की कविताएँ’ शीर्षक से प्रकाशित), भर्तृहरि की कविताओं की अनुरचना : ‘भूमि का यह कल्पतरु’ (अनुवाद); ‘एक कवि की नोटबुक’, ‘एक कवि की दूसरी नोटबुक : समकालीनता और साहित्य’ (आलोचनात्मक टिप्पणियाँ और नोटबुक), ‘कविता का शहर : एक कवि की नोटबुक’ (भारतीय उच्च अध्ययन संस्थान, शिमला में कविता और शहर के सम्बन्ध पर लिखा गया मोनोग्राफ़)।

कविताएँ अनेक भारतीय तथा विदेशी भाषाओं में अनूदित।

सम्पादन : ‘इसलिए’ (प्रकाशन-सम्पादन, 1977-83), ‘नया पथ’ के निराला शताब्दी अंक के साथ पाँच अंक, ‘वर्तमान साहित्य’ का कविता विशेषांक (1992), त्रिलोचन के कविता-संग्रह ‘ताप के ताए हुए दिन’ (1980), ‘नागार्जुन संचयन’ (साहित्य अकादेमी, 2005), ‘मुक्तिबोध संचयन’ (भारतीय ज्ञानपीठ प्रकाशन, 2015)।

पुरस्कार : ‘साहित्य अकादेमी पुरस्कार’, ‘श्रीकान्त वर्मा स्मृति सम्मान’, ‘पहल सम्मान’, ‘शमशेर सम्मान’, ‘मुक्तिबोध पुरस्कार’, ‘माखनलाल चतुर्वेदी पुरस्कार’, ’शिखर सम्मान’, ‘मुकुटबिहारी सरोज स्मृति सम्मान’, ‘निराला स्मृति सम्मान’, ‘कैफ़ी आज़मी अवार्ड’, ‘प्रो. आफ़ाक़ अहमद स्मृति अवार्ड’, ‘जनकवि नागार्जुन स्मृति सम्मान’, ‘शशिभूषण स्मृति नाट्य सम्मान’ आदि।

ईमेल : rajesh.isliye@gmail.com

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