गाँवों में गुज़र-बसर कर रहे लोगों के दैनंदिन जीवन में घटनेवाली घटनाओं को रेखांकित करनेवाली कहानियों का संकलन है—‘रौंदा हुआ निवाला’। अपनी इन तेरह कहानियों में लेखक ने गाँव में व्याप्त विभिन्न समस्याओं की ओर पाठकों का ध्यान आकर्षित किया है। ऐसी समस्याएँ, जिनसे प्रतिदिन उन्हें दो-चार होना पड़ता है। चाहे दहेज़ के आभाव में आत्महत्या करनेवाली युवती का मुद्दा हो या फिर पत्नी द्वारा छले गए पति का, चाहे सूखा पड़ने पर पशुओं के चारे के लिए दर-दर भटकते किसान का हो या फिर उपज से ज़्यादा खेती में आनेवाली लागत का; या फिर सरकारी कर्मचारियों द्वारा भोली-भाली जनता को क़ानूनी दाँव-पेच में फँसाकर लूटने का, या सिर्फ़ वादा करनेवाले नेताओं का—लेखक ने बड़ी शिद्दत से अपने इस संकलन में इन जीवन्त मुद्दों को उकेरा है। अभावों के बीच, विषम परिस्थितियों में भी जीवन जीने की ललक इस संग्रह को विशिष्ट बनाती है।
Language | Hindi |
---|---|
Binding | Hard Back |
Translator | Not Selected |
Editor | Not Selected |
Publication Year | 2015 |
Edition Year | 2015, Ed. 1st |
Pages | 223p |
Publisher | Radhakrishna Prakashan |
Dimensions | 22 X 14 X 1.5 |