Ramchandra Shukla

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Ramchandra Shukla
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विस्मरण के इस हाहाकारी उत्सवी दौर में भुला दिए गए विलक्षण कवि-आलोचक मलयज और उनकी पुस्तक ‘रामचन्द्र शुक्ल’ की पुनर्प्रस्तुति का साहित्यिक और अकादमिक महत्त्व निर्विवाद है। मलयज की आलोचना पद्धति के कायल वे सब लोग हैं, जिन्होंने उनका लिखा कुछ भी पढ़ा है। भौतिक रूप से मिले छोटे से जीवन में मलयज ने सृजन के कई मानक स्थापित किए। यह पुस्तक भी अपने संक्षिप्त कलेवर में ही एक प्रतिमान की तरह है। मलयज ने एक अपूर्व आलोचक-चिन्तक के रूप में रामचन्द्र शुक्ल का जिस प्रकार मूल्यांकन किया है, उसका सानी कोई दूसरा नहीं है। यह अकारण नहीं है कि इस पुस्तक को सम्पादित करने वाले सुप्रसिद्ध आलोचक नामवर सिंह ने अपनी भूमिका का शीर्षक ही दिया था—मलयज की संघर्ष मीमांसा। मलयज रामचन्द्र शुक्ल की ‘रस-मीमांसा’ के बड़े प्रशंसक थे। उनकी अन्तर्दृष्टि मलयज की अन्तर्दृष्टि में उसी प्रकार घुली है जिस प्रकार दाल में नमक घुल जाता है। लेकिन यहाँ यह याद रखना ज़रूरी है कि दाल में नमक का बहुत महत्त्व है लेकिन वह पूरी दाल नहीं है। वह उसका एक घटक भर है। कहने की आवश्यकता नहीं कि रामचन्द्र शुक्ल के दाय को स्वीकार करते हुए मलयज ने नया बहुत कुछ जोड़ा और हिन्दी आलोचना को गहरी विश्वसनीयता भी दी। हिन्दी के युवा आलोचकों के लिए मलयज की विश्लेषण पद्धति और भाषा में सीखने के लिए बहुत कुछ है। उनकी आलोचना एक पाठशाला की तरह है।

—जितेन्द्र श्रीवास्तव

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Language Hindi
Binding Paper Back
Publication Year 2022
Edition Year 2024, Ed. 1st
Pages 134p
Translator Translator One
Editor Namvar Singh
Publisher Rajkamal Prakashan
Dimensions 21.5 X 14 X 1
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You're reviewing:Ramchandra Shukla
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Author: Malayaj

मलयज

मलयज का जन्म 15 अगस्त, 1935 को उत्तर प्रदेश के आज़मगढ़ ज़िले के ग्राम महुई में हुआ। परिमल और नई कविता से सम्बद्ध और पूर्वग्रह के प्रारम्भिक सम्पादक मंडल के सदस्य रहे। मूलत: कवि और अपने डायरी एवं आलोचना लेखन के लिए प्रसिद्ध रहे। साहित्य के साथ-साथ सिनेमा, चित्रकला और अन्य कलाओं में उनकी गहरी रुचि रही।

उनकी प्रकाशित पुस्तकें हैं—कविता से साक्षात्कार, संवाद और एकालाप, रामचन्द्र शुक्ल (सं. नामवर सिंह) (आलोचना); मलयज की डायरी (तीन खंड, सं. नामवर सिंह) (डायरी); ज़ख़्म पर धूल, अपने होने को अप्रकाशित करता हुआ (कविता-संग्रह); हँसते हुए मेरा अकेलापन  (सर्जनात्मक गद्य); शमशेर (सर्वेश्वरदयाल सक्सेना के साथ सम्पादित)।

लम्बी बीमारी के बाद 47 वर्ष की आयु में 26 अप्रैल, 1982 को उनका दिल्ली में निधन हुआ।

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