Rakhmabai : Stree Adhikar Aur Kanoon

यह पुस्तक उपनिवेशीय भारत की एक अनूठी घटना पर आधारित है। बाईस वर्ष की एक युवती ने असाधारण विद्रोह करते हुए उस विवाह को मानने से इनकार कर दिया जिसमें उसे मात्र ग्यारह वर्ष की उम्र में झोंक दिया गया था।
उसके पति ने अपने वैवाहिक अधिकारों की प्राप्ति के लिए बम्बई उच्च न्यायालय का दरवाज़ा खटखटा दिया। उसके इस क़दम ने रख्माबाई के संकल्प को और भी दृढ़ कर दिया—देशी परम्पराओं और उपनिवेशीय क़ानून-व्यवस्था के संयुक्त दमन के विरोध का संकल्प।
मुक़दमा 1884 के शुरू में दायर किया गया। अगले वर्ष इसमें हुए पहले फ़ैसले के आते ही इसने एक सामाजिक नाटक का रूप धारण कर लिया।
इस युवा विद्रोहिणी की विजय या पराजय पर एक विकृत पारिवारिक-सामाजिक व्यवस्था का भविष्य टिका हुआ था।
रख्माबाई का विद्रोह एक असाधारण घटना थी। इससे पहले कभी किसी स्त्री ने ऐसे क्रान्तिकारी साहस और संघर्ष-शक्ति का परिचय नहीं दिया था।
रख्माबाई के मुक़दमे के दौरान यह बात पूरी तरह स्पष्ट हो गई कि सर्वोच्च उपनिवेशीय न्यायपालिका की प्रवृत्ति स्त्रियों के साथ भेदभाव करनेवाली सामाजिक परम्पराओं और सम्बन्धों को बनाए रखने की थी।
रख्माबाई के विद्रोह से शुरू हुई यह बहस अभी अप्रासंगिक नहीं हुई है, जैसाकि हम इस पुस्तक के उपसंहार में देखेंगे। इस तरह के विद्रोह को आज भी मर्यादाओं के उल्लंघन के रूप में देखा जाता है।
आज हम पीछे मुड़कर देख पाने की स्थिति में हैं और उन सीमाओं को अधिक आसानी से पहचान सकते हैं जिनके भीतर रमाबाई और रख्माबाई जैसे हमारे पथ-प्रदर्शकों की चेतना काम करती थी।
—प्राक्कथन से
Language | Hindi |
---|---|
Format | Hard Back |
Publication Year | 2012 |
Edition Year | 2012, Ed. 1st |
Pages | 224p |
Translator | Yugank Dhir |
Editor | Not Selected |
Publisher | Rajkamal Prakashan |
Dimensions | 22 X 14.5 X 1.5 |
It is a long established fact that a reader will be distracted by the readable content of a page when looking at its layout. The point of using Lorem Ipsum is that it has a more-or-less normal distribution of letters, as opposed to using 'Content here