भूपेन पर पहली किताब महेन्द्र देसाई ने लिखी। गाढ़े दोस्त थे भूपेन और महेन्द्र। लिखनेवाला हो महेन्द्र जैसा औघड़, और लिखा जा रहा हो भूपेन जैसे खिलन्दड़े और उसकी कला पर तो किताब असामान्य होनी ही थी। हुई। विलक्षण, मस्त, अपने विषय की आत्मा में प्रवेश करने को आतुर और, उसी कारण, अपनी विश्वसनीयता के प्रति लापरवाह। अकारण नहीं कि इससे बिलकुल उलट संवेदना से लैस अँग्रेज़ टिमथी हाइमन ने महेन्द्र की किताब से बहुत कुछ पाने के बावजूद महेन्द्र के वर्णन को 'गार्बल्ड’ कहा। काश! मैं भी देखने, सोचने और लिखने में महेन्द्र जैसा दुस्साहस बरत पाता।
भूपेन पर दूसरी किताब है इन्हीं टिमथी हाइमन की। ब्रिटिश कलाकार, कला मर्मज्ञ और भूपेन के परम मित्र। एक पारखी की पैनी नज़र है टिमथी की किताब में। ऐसी किताब भी नहीं लिख पाऊँगा मैं।
फिर भी लिख रहा हूँ। महेन्द्र जैसा फक्कड़ी सृजनशील न सही, दुस्साहस तो है ही मेरे इस प्रयास में। दोषी दरअसल भूपेन है। अपने जीते जी देश और विदेश में होनेवाली अपनी प्रदर्शनियों के आधे दर्जन ब्रोशर मुझसे लिखवाकर बगैर कुछ कहे समझा गया कि मण्डन मिश्र के तोता-मैना शास्त्रार्थ कर सकते थे तो मैं अपने दोस्त के अन्तरंग संस्मरण तो लिख ही सकता हूँ।
23 साल की निरन्तर गहराती दोस्ती रही भूपेन के साथ। अनेक रूप देखे उसके। उन सब के बेबाक विवरण हैं यहाँ। वह भी है जो इस किताब को लिखने के दौरान जाना : कि भूपेन नितान्त विलक्षण लेखक है और उसके साहित्य के साथ न्याय नहीं हुआ है। —इसी पुस्तक से
Language | Hindi |
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Binding | Hard Back, Paper Back |
Translator | Not Selected |
Editor | Not Selected |
Publication Year | 2020 |
Edition Year | 2020, Ed. 1st |
Pages | 286p |
Publisher | Rajkamal Prakashan |
Dimensions | 22 X 14.5 X 3 |