Hindu, Hindutva, Hindustan

Author: Sudhir Chandra
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Hindu, Hindutva, Hindustan
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सारे बौद्धिक प्रयत्न के बावजूद, ‘हिन्दू अवचेतन’ अपने को ही भारतीय मानता है। भारत जैसे बहुधर्मी और सांस्कृतिक वैविध्य से भरपूर देश के लिए ऐसी मान्यता अनिवार्यतः अनिष्टकारी है। पिछले कुछ समय से यह मान्यता अवचेतन से निकलकर उत्तरोत्तर आक्रामक होती जा रही है। बौद्धिक प्रयत्न के बावजूद नहीं, बल्कि खुलकर एक विचारधारा के रूप में यह हिन्दू को ही राष्ट्र मान बैठी है। ख़तरा यदि प्रधानतः विचारधारा और उससे जुड़ी किसी राजनीतिक पार्टी का होता तो उससे जूझना मुश्किल न होता। पर आज परेशानी यह है कि ‘हिन्दू अवचेतन’ कहीं न कहीं उन बातों को अपनी अँधेरी गहराइयों में मानता है, जिनको चेतना के स्तर पर वह राष्ट्र के लिए घातक और नैतिक रूप से अवांछनीय समझता है। ज़रूरी है कि उसका सामना इस दुविधा से कराया जाए।

—इसी पुस्तक से

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Language Hindi
Format Paper Back
Publication Year 2003
Edition Year 2023 Ed. 4th
Pages 152p
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publisher Rajkamal Prakashan
Dimensions 21.5 X 14 X 1
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Sudhir Chandra

Author: Sudhir Chandra

सुधीर चन्द्र

 

वर्षों से सुधीर चन्द्र आधुनिक भारतीय सामाजिक चेतना के विभिन्न पहलुओं का अध्ययन करते रहे हैं। राजकमल से ही प्रकाशित—‘हिन्दू, हिन्दुत्व, हिन्दुस्तान’ (2003), ‘गाँधी के देश में’ (2010), ‘गाँधी : एक असम्भव सम्भावना’ (2011), ‘रख्माबाई : स्त्री, अधिकार और क़ानून’ (2012), ‘बुरा वक्त अच्छे लोग’ (2017) के बाद हिन्दी में यह उनकी छठी पुस्तक है।

अंग्रेज़ी में उनकी पुस्तकें हैं : ‘डिपेंडेंस एंड डिसइलूज़नमेंट : नैशनल कॉशसनेस इन लैटर नाइन्टींथ सेंचुरी इंडिया’ (2011), ‘कांटिन्युइंग डिलेमाज़ : अंडरस्टैंडिंग सोशल कांशसनेस’ (2002), ‘एस्लेव्ड डॉटर्स : कॉलोनियलिज़्म’, ‘लॉ एंड विमेन्स राइट्स’ (1997) और ‘द ऑप्रेसिव प्रज़ैन्ट : लिटरेचर एंड सोशल कांशसनेस इन कॉलोनियल इंडिया’ (1992)।

सुधीर चन्द्र देश-विदेश के अनेक अकादेमिक संस्थानों से सम्बद्ध रहे हैं।

 

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