Rajya Sarkar Aur Jansampark

Edition: 2024, Ed. 3rd
Language: Hindi
Publisher: Radhakrishna Prakashan
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Rajya Sarkar Aur Jansampark

लोकतान्त्रिक मूल्यों की महत्ता को देखते हुए ‘लोक’ और ‘जन’ अभिव्यक्तियाँ किसी भी संगठन या गतिविधि को सम्मान दिलाने के लिए कारगर विशेषण या उपसर्ग बन जाती हैं। कई बार ये अभिव्यक्तियाँ सम्मान का स्थान प्राप्त करने का औजार मात्र बनकर रह जाती हैं। उसकी मूल भावना का नितान्त अभाव सम्बन्धित संगठन या गतिविधि में होता है। भारतीय संविधान में सरकार के लिए जो भूमिका निर्धारित की गई है उसके चलते, वैश्वीकरण की आँधी के बावजूद सरकार आनेवाले बहुत समय तक समाज की सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण संस्था के रूप में स्थापित रहेगी। सच कहा जाए तो सरकार की भूमिका का दायरा बढ़ता ही जा रहा है, बहुत बार सही ढंग से तथा कई बार प्रश्नास्पद तरीके से यह प्रवृत्ति भारत की तरह अन्य लोकतान्त्रिक विकासशील देशों में भी जारी रहेगी, तेज भी हो सकती है, पर घटेगी नहीं। समाज पर बाजार के हावी होने की कोशिश के बावजूद राज्य की महत्ता के अक्षुण्ण रहने के परिप्रेक्ष्य में समाचार के क्षेत्र में सरकार के सम्पर्क में आनेवाले, सरकार से जूझनेवाले और सरकार में सेवा करनेवाले सभी प्रकार के लोगों के लिए निश्चय ही विशेषज्ञ लेखकों द्वारा तैयार यह पुस्तक उपयोगी सिद्ध होगी।

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Language Hindi
Binding Hard Back
Publication Year 1991
Edition Year 2024, Ed. 3rd
Pages 167p
Translator Not Selected
Editor Wahid Ahmed Quazi
Publisher Radhakrishna Prakashan
Dimensions 22 X 14 X 1.5
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Author: Kalidutt Jha

कालीदत्त झा

कालीदत्त झा का जन्म तत्कालीन बस्तर रियासत की राजधानी जगदलपुर में 21 अप्रैल, 1930 को हुआ। उनकी आरंभिक शिक्षा-दीक्षा उसी नगर में हुई। मध्यप्रदेश हायर सेकेण्डरी एजूकेशन बोर्ड से मैट्रिक की परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद श्री झा ने सागर विश्वविद्यालय से बी.एससी. और नागपुर विश्वविद्यालय से अंग्रेजी साहित्य में एम.ए. किया। जनसम्पर्क का विशेष प्रशिक्षण भारतीय जनसंचार संस्थान से प्राप्त किया। उन्होंने बम्बई और मेलबॉर्न में आयोजित विश्व जनसम्पर्क सम्मेलनों में भी भाग लिया।

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