ये कहानियाँ उस राजनीति का पर्दाफ़ाश करती हैं जो भारतीय समाज में स्त्री-शरीर के इर्द-गिर्द बुनी गई हैं। संविधान और क़ानून से लेकर परिवार और व्यक्ति की मानसिकता तक में इस राजनीति के सूत्र गुँथे हैं। लेखिका का मानना है कि शरीर के शोषण से स्त्री को मानसिक रूप से दमित रखना, उसके व्यक्तित्व के विकास को रोककर उसके शरीर को नियंत्रित रखना एक गहरी राजनीति है जो पुरुष-प्रधान समाजों के मूल्यों के साथ गुँथी हुई है। अपना निजी काम समझकर जिसमें स्त्रियाँ अपनी पूरी ऊर्जा उँडेल देती हैं, वे काम दरअसल उनके लिए नहीं होते। समाज की धारणा यह है कि शरीर तथा मन, दो अलग-अलग इकाइयाँ हैं, और वह अवसर के अनुसार कभी मन तो कभी शरीर को अहमियत देने लगता है। लेखिका का कहना है कि हम अपने शरीर से अलग नहीं हैं, अब इस बात को स्पष्ट रूप से कहना अनिवार्य है।
Language | Hindi |
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Binding | Hard Back, Paper Back |
Publication Year | 2005 |
Edition Year | 2005, Ed. 1st |
Pages | 152p |
Translator | C. Vasanta |
Editor | Not Selected |
Publisher | Radhakrishna Prakashan |
Dimensions | 22 X 14.5 X 1 |