Rahen Na Rahen Hum Mahka Karenge

Editor: Vijay Akela
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Rahen Na Rahen Hum Mahka Karenge
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ख़ुशी इस बात की है कि ये रवायत बड़ी ख़ूबसूरत अकेला ने शुरू की है ताके उनके शायरों को जिनके पीछे कोई काम करनेवाला नहीं था या जिन्हें लोगों ने नेग्लेक्ट किया या जिन लोगों का राइटर्ज़ एसोसिएशन ये काम करती या कुछ इस तरह के आर्गेनाइज़ेशन काम करती, उन शायरों के कलाम को विजय अकेला ने सँभालने का एक सिलसिला शुरू किया है वरना फ़िल्मों में लिखा हुआ कलाम या फ़िल्मों में लिखी हुई शायरी को ऐसा ही ग्रेड दिया जाता था जैसे ये किताबों के काबिल नहीं है; ये तो सिर्फ़ फ़िल्मों में है...बाक़ी आपकी शायरी कहाँ है? ये हमेशा शायरों से पूछा जाता था। ये एक बड़ा ख़ूबसूरत कदम अकेला ने उठाया है...।

—गुलज़ार

 

मैं सम्पादक विजय अकेला साहब के बारे में यह कहना चाहूँगा कि ये बहुत अच्छा काम कर रहे हैं। इन्होंने इसी तरह की आनन्‍द बख़्शी और जाँ निसार अख्तर पर जो किताबें की थीं, उनसे मैं वाक़िफ़ हूँ। उम्मीद करता हूँ कि शायरों से महब्बत रखनेवाली दुनिया में इनकी भी क़द्र होगी।

—जावेद अख्‍़तर

More Information
Language Hindi
Format Paper Back
Publication Year 2020
Edition Year 2023, Ed. 2nd
Pages 232p
Translator Not Selected
Editor Vijay Akela
Publisher Rajkamal Prakashan
Dimensions 22 X 14 X 2
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Majrooh Sultanpuri

Author: Majrooh Sultanpuri

मजरूह सुल्तानपुरी

मजरूह सुल्तानपुरी का जन्म 1 अक्टूबर, 1919 को सुल्तानपुर, उत्तर प्रदेश में हुआ। वे हिन्दी फ़िल्मों के प्रसिद्ध गीतकार और प्रगतिशील आन्दोलन के सबसे बड़े शायरों में से एक थे। उन्हें 20वीं सदी के उर्दू साहित्य जगत के बेहतरीन शायरों में गिना जाता है। उन्होंने अपनी रचनाओं के ज़रिए देश, समाज और साहित्य को नई दिशा देने का काम किया।

मजरूह सुल्तानपुरी ने पचास से ज़्यादा सालों तक हिन्दी फ़िल्मों के लिए गीत लिखे। आज़ादी मिलने से दो साल पहले वे एक मुशायरे में हिस्सा लेने बम्बई गए थे । उसी समय मुंबई के मशहूर फ़िल्म-निर्माता कारदार ने उन्हें अपनी नई फ़िल्म ‘शाहजहाँ’ के लिए गीत लिखने का अवसर दिया। उनका चुनाव एक प्रतियोगिता के द्वारा किया गया था। इस फ़िल्म के गीत प्रसिद्ध गायक कुंदनलाल सहगल ने गाए थे। ये गीत थे—‘ग़म दिए मुस्तक़ि‍ल’ और ‘जब दिल ही टूट गया’, जो आज भी बहुत लोकप्रिय हैं। संगीतकार नौशाद थे।

मजरूह सुल्तानपुरी ने जिन फ़िल्मों के लिए गीत लिखे, उनमें से कुछ के नाम हैं—‘सी.आई.डी.’, ‘चलती का नाम गाड़ी’, ‘नौ-दो ग्यारह’, ‘तीसरी मंज़िल’, ‘पेइंग गेस्ट’, ‘काला पानी’, ‘तुम सा नहीं देखा’, ‘दिल देके देखो’, ‘दिल्ली का ठग’, ‘यादों की बारात’, ‘क़यामत से क़यामत तक’ आदि। 1965 में उन्हें ‘दोस्ती’ फ़िल्म के गीत ‘चाहूँगा मैं तुझे साँझ-सवेरे’ के लिए ‘फ़िल्मफेयर अवार्ड’ और 1994 में फ़िल्म जगत के सर्वोच्च सम्मान ‘दादा साहब फाल्के पुरस्कार’ से सम्मानित किया गया। इससे पूर्व 1980 में उन्हें ‘ग़ालिब एवार्ड’ और 1992 में ‘इक़बाल एवार्ड’ प्राप्त हुए थे।

निधन : 24 मई, 2000

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