Pratinidhi Shairy : 'Majaz' Lakhnavi

Author: Majaz Lakhnavi
Editor: Naresh 'Nadeem'
Edition: 2001, Ed. 1st
Language: Hindi
Publisher: Radhakrishna Prakashan
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Pratinidhi Shairy :' Majaz' Lakhnavi

‘मजाज़’ की गिनती उन थोड़े से शायरों में की जा सकती है जिन्होंने कम उम्र में ही ऐसी शोहरत हासिल की कि आगे आनेवाली सारी नस्लें उनकी शायरी पर सर धुनें। ‘मजाज़’ की ख़ासकर ‘आवारा’ जैसी नज़्में तो भाषा की तमाम दीवारें तोड़कर व्यापक रूप से तमाम साहित्य–प्रेमियों के दिलों में अपनी जगह बना चुकी हैं। ‘मजाज़’ की शायरी उस दौर की शायरी है जब उर्दू में तरक़्क़ीपसन्द अदब का आन्दोलन रफ़्ता– रफ़्ता अपने लड़कपन से शबाब की ओर बढ़ रहा था। आज़ादी की जंग और उसी के साथ तरक़्क़ीपसन्द अदब की सारी आशा–निराशा, उसके उतार–चढ़ाव, उसके सारे दु:ख–दर्द, ख़ुशियाँ, उसकी सारी उमंगें और उसका सारा आदर्शवाद कला के स्तर पर ‘मजाज़’ की शायरी में साफ़ दिखाई देते हैं, और यही सब तत्त्व हैं जिन्होंने ‘मजाज़’ को इनसान की क़ुव्वत और उसके सुनहरी मुस्तक़बिल में भरोसा रखना सिखाते हुए उनसे ‘ख़्वाबे–सेहर’ और ‘रात और रेल’ जैसी ख़ूबसूरत नज़्में कहलवार्इं। और यही कारण है कि जहाँ तरक़्क़ीपसन्द मुसन्निफ़ीन की अंजुमन को दुनिया के रंगमंच से विदा हुए कोई आधी सदी का अरसा गुज़र चुका है, वहीं उसकी बेहतरीन पैदावारों में से एक के रूप में ‘मजाज़’ की शायरी आज भी अपने पूरे तबो–ताब के साथ हमारे सामने आती है, और ज़िन्दगी-भर दर्दो–रंज से निहाल रहनेवाला यह ‘शायरे–आवारा’ अपने तमाम दर्दो–रंज से ऊपर उठकर दुनिया और दुनिया के सारे दुखों पर छा जाता है।

एक बहुत ही महत्त्वपूर्ण और संग्रहणीय कृति।

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Language Hindi
Binding Paper Back
Publication Year 2001
Edition Year 2001, Ed. 1st
Pages 203p
Translator Not Selected
Editor Naresh 'Nadeem'
Publisher Radhakrishna Prakashan
Dimensions 21.5 X 14 X 1
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Author: Majaz Lakhnavi

मजाज़ लखनवी

पूरा नाम : असरारुल-हक़ ‘मजाज़’ 

जन्‍म : 19 अक्‍टूबर, 1911; क़स्बा—रुदौली, ज़ि‍ला—बाराबंकी, उत्तर प्रदेश।

शिक्षा : लखनऊ और अलीगढ़। 1935 में अ.मु.वि. से बी.ए.।

दिल्‍ली और कुछ दूसरी जगहों पर नौकरी की। ऑल इंडिया रेडियो की उर्दू पत्रिका के सम्पादक रहे। 1936 में वापस लखनऊ आकर वहीं बस गए। यहीं से पत्रिका 'नया अदब' की शुरुआत की। 1946 में बम्बई पहुँचे, मगर फिर जल्द ही वापस लखनऊ आ गए।

प्रकाशन : मजाज़ के जीवन-काल में ही उनके संग्रह ‘आहंग’ के अनेक संस्करण निकले। कुछ अन्य रचनाओं को शामिल करके यही संकलन 1945 में ‘शबे-तार’ के नाम से प्रकाशित हुआ। 1949 में ‘साज़े-नौ’ का प्रकाशन। उसके बाद मजाज़ का सारा काव्य ‘आहंग’ के नाम से ही प्रकाशित होता रहा है।

निधन : 5 दिसम्‍बर, 1955; लखनऊ।

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