Pratinidhi Shairy : 'Majaz' Lakhnavi

‘मजाज़’ की गिनती उन थोड़े से शायरों में की जा सकती है जिन्होंने कम उम्र में ही ऐसी शोहरत हासिल की कि आगे आनेवाली सारी नस्लें उनकी शायरी पर सर धुनें। ‘मजाज़’ की ख़ासकर ‘आवारा’ जैसी नज़्में तो भाषा की तमाम दीवारें तोड़कर व्यापक रूप से तमाम साहित्य–प्रेमियों के दिलों में अपनी जगह बना चुकी हैं। ‘मजाज़’ की शायरी उस दौर की शायरी है जब उर्दू में तरक़्क़ीपसन्द अदब का आन्दोलन रफ़्ता– रफ़्ता अपने लड़कपन से शबाब की ओर बढ़ रहा था। आज़ादी की जंग और उसी के साथ तरक़्क़ीपसन्द अदब की सारी आशा–निराशा, उसके उतार–चढ़ाव, उसके सारे दु:ख–दर्द, ख़ुशियाँ, उसकी सारी उमंगें और उसका सारा आदर्शवाद कला के स्तर पर ‘मजाज़’ की शायरी में साफ़ दिखाई देते हैं, और यही सब तत्त्व हैं जिन्होंने ‘मजाज़’ को इनसान की क़ुव्वत और उसके सुनहरी मुस्तक़बिल में भरोसा रखना सिखाते हुए उनसे ‘ख़्वाबे–सेहर’ और ‘रात और रेल’ जैसी ख़ूबसूरत नज़्में कहलवार्इं। और यही कारण है कि जहाँ तरक़्क़ीपसन्द मुसन्निफ़ीन की अंजुमन को दुनिया के रंगमंच से विदा हुए कोई आधी सदी का अरसा गुज़र चुका है, वहीं उसकी बेहतरीन पैदावारों में से एक के रूप में ‘मजाज़’ की शायरी आज भी अपने पूरे तबो–ताब के साथ हमारे सामने आती है, और ज़िन्दगी-भर दर्दो–रंज से निहाल रहनेवाला यह ‘शायरे–आवारा’ अपने तमाम दर्दो–रंज से ऊपर उठकर दुनिया और दुनिया के सारे दुखों पर छा जाता है।
एक बहुत ही महत्त्वपूर्ण और संग्रहणीय कृति।
Language | Hindi |
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Format | Paper Back |
Publication Year | 2001 |
Edition Year | 2001, Ed. 1st |
Pages | 203p |
Translator | Not Selected |
Editor | Naresh 'Nadeem' |
Publisher | Radhakrishna Prakashan |
Dimensions | 21.5 X 14 X 1 |
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