समालोचक डॉ. प्रेमशंकर की एक बहुचर्चित पुस्तक है ‘प्रसाद के काव्य’।
प्रसाद के सन्दर्भ में ग़ौर करनेवाली बात यह है कि उनके काव्य को केन्द्र में रखकर लिखा गया यह पहला शोध-प्रयत्न था, और छायावादी कविता के उस महाकवि को लेखक ने भीतर-बाहर से गम्भीरतापूर्वक समझना चाहा था। प्रसाद एक संश्लिष्ट कवि हैं और उनके रचना-कर्म तक पहुँचने का कार्य सरल नहीं है। दूसरे शब्दों में, किसी भी अध्येता के लिए यह एक चुनौती है और समीक्षक के नाते प्रेमशंकर ने इस चुनौती को स्वीकार किया है। सौभाग्य से उन्हें आचार्य केशवप्रसाद मिश्र से 'कामायनी’ पढ़ने का अवसर मिला था, जिसे आचार्य नन्ददुलारे वाजपेयी के निर्देशन ने नया विस्तार दिया। यही कारण है कि यह कृति पिछले तीन दशकों से एक मानक-प्रयत्न के रूप में स्वीकृत है।
Language | Hindi |
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Binding | Hard Back |
Publication Year | 1994 |
Edition Year | 2024 Ed. 4th |
Pages | 350p |
Translator | Not Selected |
Editor | Not Selected |
Publisher | Radhakrishna Prakashan |
Dimensions | 22.5 X 14.5 X 3 |