Prapanch Padi

Translator: Bheemsen Nirmal
Edition: 2007
Language: Hindi
Publisher: Lokbharti Prakashan
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Prapanch Padi

ज्ञानपीठ पुरस्कार’ और ‘साहित्य अकादेमी पुरस्कार’ से सम्मानित डॉ. सी. नारायण रेड्डी तेलुगू के प्रसिद्ध लेखक हैं। यों कहें तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी कि तेलुगू साहित्य की प्रत्येक विधा को डॉ. रेड्डी ने अपने अमृत-स्पर्श से जीवन्त बना दिया।

साहित्य स्रष्टा होने के साथ-साथ वे कुशल प्रशासक भी थे। अपने दैनिक जीवन में अपनी हास्यप्रियता और वाक्चातुर्य के कारण वे अपने परिवेश को सदा जीवन्त बनाए रखते थे।

‘मंथन’, ‘भूमिका’, ‘विश्वम्भरा’ आदि काव्यों में मानव के विकास के इतिहास को सुगम रूप से प्रस्तुत करने के बाद उन्होंने अनेक छोटी-मोटी कविताएँ लिखते हुए भी एक विनूतन शैली में 108 प्रपंच-पदियों की रचना की। ये प्रपंच-पदी उर्दू की रुबाई शैली में लिखे गए हैं। रुबाई में चार चरण होते हैं, जिनमें पहले, दूसरे और चौथे में तुक मिलाया जाता है। रेड्डी जी ने रुबाई में एक और चरण जोड़कर उसे पंच-पदी (पाँच चरणोंवाला) बनाया और संसार की रीति-नीतियों के चित्रण के कारण इन्हें ‘प्रपंच-पदी’ कहा है।

प्रपंच-पदियों की रचना में डॉ. रेड्डी ने तेलुगू भाषा में प्रचलित चतुरश्र और मिश्र गतियों का प्रयोग किया है। इनके प्रयोग से काव्य-रचना प्रभावशाली बन गई है।

प्रपंच-पदियों की फलश्रुति में डॉ. रेड्डी ने इन पदों के उद्देश्य को स्पष्ट किया है। ये टूटे जन-मन में उत्साह भरनेवाले, सुप्त नीतियों को प्रकाश में लानेवाले, निद्रित चरणों को जागृत करनेवाले और वर्तमान में परिवर्तन लाने के प्रयास के परिणाम हैं। जीवन में कड़वे और मीठे सत्यों को मथकर डॉ. रेड्डी ने इन 108 प्रपंच-पदियों की रचना की।

तेलुगू में लब्धप्रतिष्ठ डॉ. नारायण रेड्डी हिन्दी और उर्दू में भी मौलिक रूप से ग़ज़लों की रचना करते रहे। उनकी इस विशिष्ट रचना-प्रक्रिया और ‘प्रपंच-पदियों’ का हिन्दी जगत् में काफ़ी चर्चा रही है।

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Language Hindi
Binding Hard Back
Edition Year 2007
Pages 108p
Translator Bheemsen Nirmal
Editor Not Selected
Publisher Lokbharti Prakashan
Dimensions 22 X 14 X 1
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Author: C. Narayan Reddy

सी. नारायण रेड्डी

ग्राम—हनुमजिपेटा, ज़िला—करीमनगर, आन्ध्र प्रदेश में 29 जुलाई, 1931 को जन्मे सी. नारायण रेड्डी ने उस्मानिया यूनिवर्सिटी, हैदराबाद से एम.ए., पीएच.डी. की उपाधि प्राप्‍त की। उनका शोध-प्रबन्ध ‘आधुनिक आन्ध्र कविता में परम्परा और प्रयोग’ पर था।

उनको 1976 में मेरठ विश्वविद्यालय से मानद ‘डी.लिट्.’; 1977 में ‘पद्मश्री’; 1978 में आन्ध्र विश्वविद्यालय, वाल्टेअर से ‘कलापूर्ण’ उपाधियाँ प्राप्त हुईं।

सम्मान : ‘ज्ञानपीठ पुरस्कार’ के अलावा ‘ऋतुचक्रम्’ को आन्ध्र प्रदेश का ‘साहित्य अकादेमी पुरस्कार’। ‘मंतलु-मानवुडु’ को केन्द्रीय ‘साहित्य अकादेमी पुरस्कार’, ‘विश्वंभरा’ को ‘कुमारन आशान’, ‘सोवियत लैंड नेहरू पुरस्कार’ तथा ‘भीलवाड़ा पुरस्कार’।

अनेक प्रसिद्ध कृतियों के रचयिता श्री रेड्डी का निधन 12 जून, 2017 को हैदराबाद में हुआ।

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