Praan Mere

Edition: 2022, Ed. 1st
Language: Hindi
Publisher: Lokbharti Prakashan
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Praan Mere
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अनिल कुमार पाठक की नवीनतम काव्य-कृति ‘प्राण मेरे’ उनकी पूर्व काव्य-कृतियों ‘गीत, मीत के नाम’ तथा ‘अप्रतिम’ की परम्परा में मोहक प्रेम-गीतों का एक विलक्षण संग्रह है। पूर्ववर्ती गीत-संग्रहों की ही भाँति इस संग्रह के गीतों में भी प्रेम, संकुचित स्वरूप का परित्याग कर विस्तार के उद्दीप्त शाश्वत भाव के साथ विभिन्न अर्थ-संकेतों तथा अर्थ-सन्दर्भों के रूप में उपस्थित है। भावनाओं की व्यापकता एवं उसमें निहित चेतना-तत्त्व से युक्त प्रेम के स्निग्ध स्वरूप को कवि ने इस सुकृति की भूमिका में अनन्य भाव से परिभाषित किया है।

उन्होंने समाज में व्याप्त प्रेम विषयक विभिन्न भ्रान्तियों, जो प्रेम के शाश्वत स्वरूप को सीमित करती हैं, के सम्बन्ध में निराकरण प्रस्तुत करते हुए अपनी दृष्टि से इनकी गहन व्याख्या भी की है। कवि की यही दृष्टि इस संग्रह के गीतों में प्रतिध्वनित होती है।

More Information
Language Hindi
Binding Hard Back
Publication Year 2022
Edition Year 2022, Ed. 1st
Pages 88p
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publisher Lokbharti Prakashan
Dimensions 22.5 X 14.5 X 1.5
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Anil Kumar Pathak

Author: Anil Kumar Pathak

अनिल कुमार पाठक

दार्शनिक एवं साहित्यिक अध्यवसाय की पृष्ठभूमि रखने वाले अनिल कुमार पाठक विभिन्न भाषाओं के साहित्य के अध्येता होने के साथ ही मानववाद विषय पर काशी हिन्दू विश्वविद्यालय, वाराणसी द्वारा डॉक्टरेटकी उपाधि से विभूषित हैं। उन्होंने मानववाद पर केवल शोधकार्य ही नहीं किया है अपितु उसे अपने जीवन में मनसा-वाचा-कर्मणाअपनाया भी है। डॉ. पाठक मानवीय संवेदना से स्पन्दित होने के साथ ही मानववादी मूल्यों के मर्मज्ञ भी हैं। उन्होंने हिन्दी काव्य की विभिन्न विधाओं यथा कविता, गीत, कहानी, नाट्यकाव्य, लघु नाटिका आदि में साहित्य सर्जना की है जो आज भी अनवरत चल रही है।

माता-पिता की स्मृतियों को समर्पित काव्य-संग्रह पारस बेलाके साथ ही गीत, मीत के नामऔर अप्रतिमसहित अन्य प्रकाशित तथा प्रकाशनाधीन कृतियों के माध्यम से जहाँ वह अपने रचना-संसार

को नित्य नूतन आयाम देने हेतु कटिबद्ध हैं, वहीं उनकी मर्मस्पर्शी कहानियाँ, गीत, परिचर्चा आदि आकाशवाणी के विभिन्न केन्द्रों से नियमित प्रसारित होते रहते हैं। अत्यन्त महत्त्वपूर्ण प्रशासनिक दायित्वों के निर्वहन के साथ ही उनके द्वारा एक दशक से अधिक समय से कविता की त्रैमासिक पत्रिका पारस परसका नियमित सम्पादन किया जा रहा है। उनकी अश्रान्त लेखनी सम्प्रति भारतीय संस्कृति, परम्परा के अतिरिक्त हिन्दी साहित्य की विभिन्न विधाओं पर निरन्तर क्रियाशील है।

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