Pitra-Vadh

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ISBN:9789388933988
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Pitra-Vadh
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एक सजग रचनाकार को अक्सर यह बोध हो जाता है कि जिन पूर्वजों को वह अर्घ्य देता आया है, जिनका पितृ-ऋण वह अदा करना चाहता है, उन्होंने दरअसल उसकी चेतना को अपनी गिरफ़्त में ले रखा है। उनसे मुक्ति पाने के इस संघर्ष की परिणति एक अन्य बोध में होती है कि गुरु-वध के बग़ैर गुरु-दक्षिणा शायद असम्भव है।

लेकिन किसी रचनाकार के लिए यह स्वीकार करना आसान नहीं कि उसका रचना-कर्म उसके पितामह की शव-साधना है क्योंकि यह आकांक्षा उस लेखक को असहनीय अपराध-बोध में डुबो देती है। वह पूर्वज अपने परवर्ती की आकांक्षा से अनजान नहीं है, शायद वह भी यही चाहता है। यही उसकी मुक्ति है। पहले से कहीं विराट पुनर्जन्म है। संस्कृत का श्लोक है—सर्वतो जयमिच्छेत। पुत्राच्छिष्यात्पराजयम्। सबको जीतना चाहता हूँ, लेकिन पुत्र और शिष्य से पराजय की इच्छा रखता हूँ। यहाँ पराजय का एक अर्थ और भी है। परा+जय यानि परम विजय। पुत्र और शिष्य के हाथों इसी पराजय में मेरी परम विजय निहित है।

आशुतोष भारद्वाज की यह सयानी किताब टैगोर, निर्मल वर्मा, अनन्तमूर्ति, अरुंधति रॉय जैसे उपन्यासकारों और मुक्तिबोध, श्रीकान्त वर्मा और अशोक वाजपेयी की कविताओं को एकदम नयी निगाह से बरतती है। अज्ञेय और रामचन्द्र गाँधी सरीखी संज्ञाओं से अपने रचनात्मक सम्बन्ध को टटोलती हुई यह उस आत्मालोचन से जन्म लेती है जो वर्तमान परिदृश्य में दुर्लभ है।

डायरी, निबन्ध, संस्मरण इत्यादि गद्य की विविध विधाओं में खुद को कहती इस किताब की एक अन्य उपलब्धि है भारतीय उपन्यास के आधुनिकता के साथ हुए संवाद पर अत्यन्त आत्मीय विमर्श। उपन्यास की स्त्री के एकान्त पर तो अंग्रेज़ी समेत किसी भी भारतीय भाषा में यह पहला आलोचना-कर्म है। सुचरिता, चन्द्री, बिट्टी और अम्मू की अव्यक्त आकांक्षाएँ इन पृष्ठों में ख़ुद को हासिल करती हैं।

More Information
Language Hindi
Format Hard Back, Paper Back
Publication Year 2019
Edition Year 2019, 1st Ed.
Pages 250p
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publisher Rajkamal Prakashan
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Editorial Review

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Ashutosh Bhardwaj

Author: Ashutosh Bhardwaj

आशुतोष भारद्वाज

गद्य की अनेक विधाओं में लिख रहे आशुतोष भारद्वाज का एक कहानी-संग्रह, कई निबन्ध, अनुवाद, संस्मरण, डायरियाँ इत्यादि प्रकाशित हैं। आप को गल्प में नवाचार के लिए 2011 में ‘कृष्ण बलदेव वैद फ़ेलोशिप’ मिली थी। आप एकमात्र पत्रकार हैं जिन्हें प्रतिष्ठित ‘रामनाथ गोयनका सम्मान’ लगातार चार साल मिला है। आप 2015 में रॉयटर्स के ‘अन्तरराष्ट्रीय कर्ट शॉर्क सम्मान’ के लिए नामांकित हुए थे।

इन दिनों आप भारतीय उच्च अध्ययन संस्थान, शिमला में फ़ेलो हैं और भारतीय उपन्यास के आधुनिकता और राष्ट्रवाद के साथ हुए संवाद पर मोनोग्राफ़ लिख रहे हैं, जिसके कुछ निबन्ध इस पुस्तक में संकलित हैं।

दण्डकारण्य के माओवादियों पर आपकी उपन्यासनुमा किताब अनेक भाषाओं में शीघ्र प्रकाश्य है।

 

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