Pauranik Parampara Me Striyon Ka Sampattik Adhikar

Author: Harsh Kumar
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Pauranik Parampara Me Striyon Ka Sampattik Adhikar
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हिन्दी साहित्य के इतिहास का आदिकाल उसका स्वरूय-विकास एवं नामकरण विवादास्पद रहा है। इसका आरम्भ छठी शती से बारहवीं शती तक सिद्ध किया गया है। इसे अनेक नाम दिए गए हैं. जैसे- वीरगाथा काल, उदूभवकाल, उत्पत्तिकाल बीज बपन काल, सन्धिकाल, सिद्ध सामन्त काल, चारणकाल आदि। किन्तु अब 'आदिकाल' नाम ही बहुमान्य हो गया है।
प्राचीन हिन्दी भाषा के भी कई नाम सुझाए गए हैं, जैसे—परवर्ती अपभ्रंश प्रकृताभास भाषा, संघाभाषा, हिन्दवी, पुरानी हिन्दी, अवहट्ट अवहंस, देसिलबयनर, डिंगल, पुरानी राजस्थानी गूजरी, पिंगल, भाखा, कोसली, दक्खिनी हिन्दी, देशभाषा आदि। किन्तु अब राहुलजी और गुलेरीजी के द्वारा स्थापित 'पुरानी हिन्दी संज्ञा ही तर्क संगत लगती है।
आदिकाल में सिद्धनाथ, जैन, सन्त, सूफी रामकृष्णाश्रयी भक्त, चारण, लोककवि, नीतिकार वीरकाव्य परम्परा के प्रशस्तिकार, जीवनीकार, शृंगारी कवि, वैयाकरण गद्यकार सभी का योगदान रहा है।
आदि हिन्दी कवि के रूप में पुष्य, पुण्ड, पुष्पदंत, विमलसूरि आदि की अपेक्षा सरहपाद- सरह (स्थितिकाल-750-769) को मागधी-सौरसेनी अपभ्रंश से विकसित 'पुरानी हिन्दी' के सर्वाधिक सन्निकट होने के कारण यह श्रेय देना ज्यादा तथ्याश्रित होगा।
यह उल्लेखनीय है कि साहित्य की प्रायः प्रत्येक प्रवृत्ति के बीज इस अवधि में अंकुरित हुए हैं। इतिहास लेखन करते हुए जिन्हें पहले मध्यकालीन माना गया था, अब उनमें से कुछ आदिकाल में गणनीय हैं।

 

More Information
Language Hindi
Format Hard Back
Publication Year 2023
Edition Year 2023, Ed. 1st
Pages 200p
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publisher Lokbharti Prakashan
Dimensions 22 X 14 X 1.5
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Author: Harsh Kumar

डॉ. हर्ष कुमार

डॉ. हर्ष कुमार सम्प्रति इलाहाबाद विश्वविद्यालय में प्राचीन इतिहास संस्कृति एवं पुरातत्व विभाग के आचार्य एवं विभागाध्यक्ष हैं। इलाहाबाद विश्वविद्यालय से डॉ. हर्ष कुमार ने स्नातक, परास्नातक एवं डी. फिल् की उपाधि प्राप्त कर इसी विश्वविद्यालय में 1988 ई. में प्रवक्ता के पद पर नियुक्त हुए। 1992 ई. में वरिष्ठ प्रवक्ता, 1998 में उपाचार्य एवं 2006 में आचार्य पद पर आपकी नियुक्ति हुई। आपने इलाहाबाद विश्वविद्यालय में लगभग सभी महत्त्वपूर्ण प्रशासनिक पदों यथा-डीन कल्याण, मुख्य कुलानुशासक, जन सम्पर्क अधिकारी, निदेशक क्रीडासंघ जैसे पदों का दायित्व सफलतापूर्वक निर्वहन किया है। पुराणों में शोधरत डॉ. हर्ष कुमार ने 'मुद्राशास्त्र' एवं 'इतिहास दर्शन' के क्षेत्र में भी महत्त्वपूर्ण शोध एवं अध्यापन किया है। आप अनेक महत्त्वपूर्ण शैक्षणिक एवं गैर-शैक्षणिक समितियों एवं संस्थाओं के सदस्य हैं। आप कई अन्तर्राष्ट्रीय एवं राष्ट्रीय संगोष्ठियों में भाग ले चुके हैं तथा अनेक प्रतिष्ठित शोध पत्रिकाओं में आपके लगभग 50 से अधिक शोध-पत्र प्रकाशित हो चुके हैं। आपकी तीन महत्त्वपूर्ण पुस्तकें भी प्रकाशित हो चुकी हैं। आपके निर्देशन में लगभग 35 शोध छात्रों को उनके शोध-प्रबन्धों पर पी-एच.डी की उपाधि प्राप्त हो चुकी है। उत्तर प्रदेश इतिहास कांग्रेस के होने वाले तेइसवें अधिवेशन में आपको प्राचीन इतिहास सत्र का अध्यक्ष मनोनीत किया गया है।

 

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