Paryavaran Sanrakshan

Author: Yogendra Sharma
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Paryavaran Sanrakshan
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वर्तमान में बढ़ता प्रदूषण, कम होते वन, घटते वन्य जीव, प्राकृतिक सम्पदा का अत्यधिक दोहन, प्रकृति के संसाधनों की ओर बढ़ती उपभोग की प्रवृत्ति, अवैध एवं अनियोजित ढंग से वनों की कटान, जलवायु परिवर्तन, जनसंख्या वृद्धि, पृथ्वी का अन्धाधुन्ध दोहन, ओजोन परत का क्षरण, तेजाबी वर्षा, ग्लोबल वार्मिंग, जल में अपशिष्ट का 'मिलना, भूस्खलन, सूखा, बाढ़ एवं जैव विविधता पर कुप्रभाव आदि कारकों के कारण पर्यावरण 'असन्तुलित हो रहा है जिससे यह विश्वव्यापी समस्या बन गयी है जो चिन्ताजनक है।

भारतीय संस्कृति सदैव पर्यावरण की पोषक रही है। इसमें पर्यावरण के अवयव तथा जल, आकाश, सूर्य, चन्द्र, वनस्पति एवं कतिपय जीव-जन्तुओं को पूज्य मानने की मान्यताएँ रही हैं जो पर्यावरण के 'संरक्षण से जुड़ी हैं। पर्यावरण का सम्बन्ध केवल संस्कृति से ही नहीं है अपितु संस्कारों तथा सरोकारों से भी है। हमारी संस्कृति में स्वच्छता को भक्ति का स्थान दिया गया है। वृक्ष, वन एवं वनस्पति पृथ्वी के आभूषण और प्रकृति के उपहार हैं और धरती तो माँ है। जब तक मानव प्रकृति का भाग रहता है, प्रकृति उनका संरक्षण करती है। प्रकृति स्वतः पेड़ लगाती रहती है, हमें तो उनका संरक्षण करना है। यह कृति पर्यावरण संरक्षण के प्रति चेतना जगाने का प्रयास करती है।

More Information
Language Hindi
Format Hard Back
Publication Year 2020
Edition Year 2024, Ed. 2nd
Pages 176p
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publisher Lokbharti Prakashan
Dimensions 22 X 14 X 1
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Yogendra Sharma

Author: Yogendra Sharma

योगेन्द्र शर्मा

जन्म : 10 जुलाई, 1945; फ़ैज़ाबाद (उ.प्र.)।

शिक्षा : एम.ए., बी.एड., साहित्य रत्न, डिप्लोमा इन टीचिंग इंगलिश।

पी.ई.एस., वरिष्ठ शोध मनोवैज्ञानिक, सेवानिवृत्त, पूर्व सचिव, गांधी स्वाध्याय मंडल एवं रंगभूमि, साहित्यिक संस्थाओं में चार वर्ष तक प्रवक्ता, लोकसेवा आयोग उत्तर प्रदेश से चयनित होकर शिक्षा विभाग के राजकीय सेवा में 36 वर्षों तक कार्यरत एवं 2005 में सेवानिवृत्ति। इस अवधि में विभिन्न सहायता प्राप्त तथा राजकीय विद्यालयों में प्रवक्ता तथा राजकीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय में प्रधानाचार्य। सन्देश में स्थित विभिन्न मंडलीय मनोविज्ञान केन्द्रों में वोकेशनल गाइडेंस काउन्सलर एवं मंडलीय मनोवैज्ञानिक तथा मनोविज्ञानशाला में वरिष्ठ शोध मनोवैज्ञानिक।

प्रमुख कृतियाँ : ‘आवृत्त अनावृत’ (उपन्यास); ‘शिलालेख विश्वास का’ (काव्य-संग्रह); ‘यश गाथाएँ’ (जीवनी-साहित्य); ‘किशोर एवं युवाओं की मनोवृत्तियाँ और विकास’, ‘बाल शिक्षा और विकास’ आदि।

सम्मान : उ.प्र. हिन्दी संस्थान द्वारा वर्ष 2015 का ‘बाबू श्यामसुन्दर दास सर्जना पुरस्कार’, राज्य कर्मचारी साहित्य संस्थान उ.प्र. द्वारा ‘साहित्य गौरव सम्मान’ से विभूषित।

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