बेहद सहज और सरल ढंग से क़िस्सागोई की शैली में लिखा गया यह उपन्यास बंगाली समाज के स्वभाव और चरित्र का सच्चा एवं प्रामाणिक चित्र उपस्थित करता है। महानगरीय जीवन की भागमभाग और गहमागहमी से ऊबी–थकी अविवाहित कामकाजी युवती, अरा, जब अपनी बड़ी बहन स्मृति के घर बिलासपुर छुट्टियाँ बिताने पहुँचती है तो उसके सामने धीरे–धीरे जीवन का सर्वथा नया अर्थ खुलता चला जाता है। उसके अभावग्रस्त एकाकी जीवन की थकान दूर होती है और वह जीवन–राग एवं प्रकृति–राग से लबरेज तरोताज़ा होकर कलकत्ता लौटती है। हर जीवन महाजीवन है और ढोने के लिए नहीं, जीने के लिए है—जीवन का यह पाठ अरा को प्रकृति से समृद्ध आदिवासी अंचल छत्तीसगढ़ की गोद में बसे बिलासपुर में मिलता है। महानगरीय जीवन–बोध और प्रकृत आदिवासी जीवन–बोध की टकराहट की अनुगूँज लिए यह छोटी–सी औपन्यासिक कृति एक सूने सितार के तार छेड़ने की तरह है। यह सितार है ‘अरा’ जिसके तार छेड़ता है ‘परदेसिया’ और जिसकी झंकृति पाठक के दिलो–दिमाग़ में देर–देर तक, दूर–दूर तक बनी रहती है।

बांग्ला के अग्रिम पंक्ति के कथाकार बुद्धदेव गुहा ने अपनी व्यापक यात्राओं के दौरान पहाड़ों, जंगलों और नदियों को काफ़ी नज़दीक एवं आत्मीयता के साथ देखा है और अपनी रचनाओं के ज़रिए पाठकों में प्रकृति से प्रेम करने की ललक जगाई है। उनके साहित्य में स्त्री–पुरुष प्रेम से लेकर जनसाधारण तक के प्रति रागात्मक सम्बन्धों का विस्तार देखा जा सकता है। यह उपन्यास इस बात की बहुत ही सशक्त तरीक़े से पुष्टि करता है।

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Language Hindi
Format Hard Back
Publication Year 2003
Edition Year 2003 Ed. 1st
Pages 104p
Translator Munmun Sarkar
Editor Not Selected
Publisher Rajkamal Prakashan
Dimensions 22 X 14 X 1
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Author: Buddhadev Guha

बुद्धदेव गुहा

जन्म : 29 जून, 1936

शिक्षा : आरम्भिक पढ़ाई-लिखाई अविभाजित बंगाल के रंगपुर और बड़िशाल में, जो अब बांग्लादेश में है। कोलकाता के सेंट जेवियर्स कॉलेज से उच्च शिक्षा।

प्रमुख कृतियाँ : ‘कोजागर’, ‘परदेसिया’, ‘कोइल तीरे’, ‘अदल-बदल’, ‘मधुकरी’, ‘लँगड़ा पाहन’, ‘धूलो-बाली’, ‘चबूतरा’, ‘खेला जखोन’, ‘सविनय निवेदन’, ‘स्वगोक्ति’, ‘अभिलाष’, ‘प्रथम प्रवास’, ‘भोरेर आगे’, ‘हलुद बसन्त’, ‘बनबीविर बने’, ‘निनी कुमारीर बाघ’, ‘पंचम् प्रवास’, ‘जेठू मनी एंड कम्पनी’, ‘हज़ार दुआरी’, ‘नग्नो निर्जन’, ‘बाती घर’, ‘पंच प्रदीप’, ‘रागमाला’, ‘अद्भुत लोक’, ‘परिधि’ आदि।

सम्मान : बांग्ला साहित्य जगत में सर्वाधिक प्रतिष्ठित ‘आनंद पुरस्कार’ समेत ‘शरत् पुरस्कार’, ‘विभूतिभूषण पुरस्कार’ एवं ‘शिरोमणि पुरस्कार’ आदि से सम्मानित। एक उपन्यास डॉ. जॉन विलियम हूड द्वारा अंग्रेज़ी में और कुछ कृतियाँ अन्यान्य भारतीय भाषाओं में अनूदित।

वृत्ति : पेशे से एकाउंटेंट, इंस्टीट्यूट ऑफ़ चार्टर्ड एकाउंटेंट्स ऑफ़ इंडिया के फ़ेलो। पश्चिम बंगाल सरकार के वन विभाग के अधीन वन्य जीवन सलाहकार बोर्ड के सदस्य, पश्चिम बंगाल पर्यटन विकास निगम के निदेशक, सांस्कृतिक केन्‍द्र ‘नंदन’ के सलाहकार बोर्ड के सदस्य, शान्तिनिकेतन स्थित विश्वभारती वि.वि. के रवीन्द्र भवन की प्रबन्ध समिति के सदस्य के रूप में दायित्व निर्वाह। रवीन्द्र संगीत के गहरे जानकार : आकाशवाणी कलकत्ता के रवीन्द्र संगीत ऑडिशन बोर्ड में पाँच साल तक रहे। श्री गुहा प्रतिभाशाली गायक व चित्रकार भी हैं। बांग्ला पुरातनी गान के दो कैसेट और पेंटिंग्स के एक एलबम लोकप्रिय हैं।

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