Okka-Bokka

Author: Vinod Dubey
Edition: 2024, Ed. 1st
Language: Hindi
Publisher: Lokbharti Prakashan
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Okka-Bokka
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लोकप्रिय कवि-कथाकार विनोद दूबे का उपन्यास ‘ओक्का-बोक्का’ पहली नज़र में तीन ऐसे दोस्तों की जीवन-गाथा है जो बचपन से लेकर बुढ़ापे तक दोस्ती की जादुई भावना को नए-नए सिरे से जीते हैं। सुलभ, अनवर और शरद की सदाबहार दोस्ती का ये क़िस्सा, उन्हीं तीनों में से एक शरद बयान कर रहा है, जिसने सबसे ज़्यादा दुनिया देखी है। सुलभ और अनवर अपने शहर जबलपुर में ही अपने सपनों को जीते हैं पर शरद की महत्त्वाकांक्षाओं के लिए जबलपुर बहुत छोटा है। वह सिंगापुर जाता है जहाँ वह एक बड़ी कॉर्पोरेट कम्पनी में सर्वोच्च पद तक पहुँचता है। और पैसे कमाने की दौड़ में कब ताक़त के पीछे भागने लगता है, यह उसे ख़ुद पता नहीं चलता। शिखर तक पहुँचने की इस दौड़ में उसकी सहजता, पत्नी और बेटी के साथ सम्बन्ध—सब कुछ दाँव पर लग जाते हैं और वह अपने आप को अकेला और बेचैन पाता है।

ओक्का-बोक्का में इन तीनों दोस्तों के तीन दिशाओं में खुलने वाले सपने हैं। इनके निजी और सार्वजनिक संघर्ष हैं। इनके परिवार हैं पर इनमें से हर एक इसे अपने ही अन्दाज़ में जी रहा है। इसमें साधारण जीवन की असाधारणता का, उसकी मन्थर गति का, उसकी नितान्त सामान्यता का, उसके भटकावों का एक बहती हुई बोलचाल की भाषा में किया गया बयान है। इसमें किसी बहुत बड़े दार्शनिक सच के उद्घाटन के बजाय उस जीवन का उद्घाटन है जो कला या साहित्य के बारे में ज़्यादा तो नहीं जानता पर उसका विषय ज़रूर बनता रहा है। ओक्का-बोक्का की सारी गाथा एक युवा डॉक्टर वैदेही से बयान की जा रही है इसलिए बिना किसी अतिरिक्त पक्षधरता या कोशिश के दो पीढ़ियों के बीच, उनके सपनों और अन्तर्द्वन्द्वों के बीच एक तुलना भी चलती रहती है। निजी भौतिक उपलब्धियों और सामाजिक अर्थवत्ता के बीच की तनी हुई रस्सी पर लिखा गया एक पठनीय उपन्यास।

More Information
Language Hindi
Binding Paper Back
Publication Year 2024
Edition Year 2024, Ed. 1st
Pages 224p
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publisher Lokbharti Prakashan
Dimensions 20 X 13 X 1
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Vinod Dubey

Author: Vinod Dubey

विनोद दूबे

विनोद दूबे का जन्म 11 मार्च, 1981 को उत्तर प्रदेश, भदोही के एक गाँव में हुआ। बारहवीं तक की पढ़ाई हिन्दी मीडियम स्कूल से करने के बाद अपने लिए सही करियर और सही जोख़िम की तलाश उन्हें मर्चेंट नेवी की तरफ़ ले गई। कैडेट से कैप्टन बनने तक के ख़ानाबदोश जहाज़ी सफ़र ने उनके अनुभव के दायरे को विविधतापूर्ण सम्पन्नता दी।

उनकी प्रकाशित पुस्तकें हैं—‘इंडियापा’, ‘ओक्का-बोक्का’ (उपन्यास); ‘वीकेंड वाली कविता’, ‘जहाज़ी’ (कविता-संग्रह) ‘वीकेंड वाली कविता’ नाम से उनका यू-ट्यूब चैनल है। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में उनके यात्रा-वृत्तान्त भी प्रकाशित होते रहे हैं। सिंगापुर में हिन्दी के क्षेत्र में योगदान के लिए उन्हें ‘HEP (Highly Enriched Personality)’ पुरस्कार, ‘हिन्दी सेवी सम्मान’ और विश्वरंग द्वारा ‘प्रवासी साहित्यकार सम्मान’ से सम्मानित किया गया है। वे सिंगापुर संगम, कविताई (सिंगापुर), साझा संसार (नीदरलैंड), वातायन (यू.के.), गर्भनाल (भारत) आदि अनेक संस्थाओं से जुड़े हैं। फ़िलहाल सिंगापुर में रहते हैं।

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