Murdalok

Edition: 2011, Ed. 1st
Language: Hindi
Publisher: Rajkamal Prakashan
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Murdalok

परम्पराएँ, किंवदन्तियाँ और भ्रामक प्रचलित विचारों से मुक्ति दिलाकर समाज को जागरूक, चेतनासम्पन्न और प्रगतिशील धारा से जोड़नेवाला कहानी-संकलन। इस संकलन की हर कहानी की विषयवस्तु का अपना एक धरातल है और हर कहानी अनुभव का एक नया संसार खोलती है। संकलन की कहानियाँ नई दृष्टि, नई सोच को ही प्रतिष्ठापित नहीं करती हैं, बल्कि वैज्ञानिक दृष्टिकोण भी देती हैं। कहानियों के पात्र आम जीवन से उठाए गए हैं जो साधारण जीवन जीते हैं और बहुत से मानदंडों और निषेधों से मुक्त भी
हैं।

लेखक ने इनके साथ सदियों से हो रहे जुल्म और अन्याय को भी रेखांकित किया है जो वे सदियों से झेल रहे हैं और उनके लिए एक समतामूलक समाज की आकांक्षा व्यक्त करते हैं। लेखक ने कहानियों को लोकभाषा से अलंकृत कर पात्रों को जीवन्त ही नहीं किया, बल्कि उनकी मर्मभेदी पीड़ा को संवेदनशील अभिव्यक्ति भी दी है। ये कहानियाँ सही और सच्चे अर्थों में साहित्य की उस सार्थक भूमिका का भी निर्वाह करती हैं जिसके तहत साहित्य को समाज का पथप्रदर्शक माना जाता है। समाज के यथार्थ से साक्षात्कार कराते हुए, वर्तमान समाज को बदलने का आह्वान करते हुए सघन संवेदना के धरातल पर सृजित की गई ये कहानियाँ कुरीतियों को पोषित करनेवाले रूढ़िवादी समाज के लिए एक संकेत भी हैं कि अब परिवर्तन आवश्यक नहीं अनिवार्य हो चला है। पाठकगण इन कहानियों के माध्यम से एक नया अर्थ-सन्दर्भ प्राप्त करेंगे।

More Information
Language Hindi
Binding Hard Back
Publication Year 2011
Edition Year 2011, Ed. 1st
Pages 176p
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publisher Rajkamal Prakashan
Dimensions 22 X 14.5 X 1.5
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Kumar Mithilesh Prasad Singh

Author: Kumar Mithilesh Prasad Singh

कुमार मिथिलेश प्रसाद सिंह

जन्म : 11 अक्टूबर, 1968

शिक्षा : बी.एस-सी. ऑनर्स (रसायनशास्त्र)।

प्रमुख कृतियाँ : ‘युगान्तर के फूल’, (कविता-संग्रह); ‘मुर्दालोक’ (कहानी-संग्रह)।

अभिरुचि : लेखन, पाक-कला, दलितों-दमितों-शोषितों के उत्पीड़न के विरुद्ध बुलन्दी के साथ खड़े रहने की आकांक्षा से परिचालित। जन-सरोकारों और जन-समस्याओं के निपटारे से सम्बन्धित कार्यों में गहरी अभिरुचि। तृणमूल सूचक लोगों की सेवा में ख़ुद को व्यस्त रखना एक आवश्यक निजी टास्क।

 

 

 

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