Muktibodh Ki Samikshaai

Edition: 2016, Ed. 2nd
Language: Hindi
Publisher: Radhakrishna Prakashan
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Muktibodh Ki Samikshaai

नई कविता अनेक प्रवृत्तियों का समुच्चय थी, उसकी रचना-प्रक्रिया जटिल थी, इसी कारण उसकी अर्थ-प्रक्रिया भी ‘काव्यार्थ’ भर नहीं रह गई। नई कविता की रचना- प्रक्रिया और अर्थ-प्रक्रिया जानने का मतलब हो गया—रचनाकार के युग, उसकी समीक्षा-समझ, विचारधाराओं, युगीन परिस्थितियों एवं भाषा-रूपों को समग्रता में जानना।

समग्रता में न जा पाने के इस संकट को मुक्तिबोध ने पहचाना था। कदाचित् इसीलिए उन्होंने कविता की रचना-प्रक्रिया पर पहली बार इतना काम किया कि आधुनिक कविता के इस तकनीकी पहलू पर सोचने को विवश कर दिया। और इस तरह रचना-प्रक्रिया की उन चली आती हुई शास्त्रीय धारणाओं को बेकार सिद्ध किया, जिनके चलते आधुनिक हिन्‍दी साहित्य जैसे-तैसे जी रहा था, नई कविता वर्जित प्रदेश बनी हुई थी। रचना-प्रक्रिया पर उठाई गई उक्त बहस ने नई कविता की समझ को फैलाया और यह महसूस कराया कि नई कविता एक निश्चित रचना-प्रक्रिया की पैदाइश है, जिसके रचना-नियम पुनरुत्थानवादी या स्वच्छन्‍दतावादी काव्य की रचना-प्रक्रिया के नियमों से नितान्त अलग और कहीं-कहीं तो विपरीत हैं। पर क्या कहा जाए कि अभी भी हिन्दी में मुक्तिबोध द्वारा प्रस्तुत की गई जीवन-दृष्टि और समीक्षा-दृष्टि को पर्याप्त गम्भीरता से नहीं लिया जा रहा है। इसका सबसे अधिक नुक़सान नई कविता की सार्थकता के सवाल को भुगतना पड़ा।

समीक्षा वैसे तो रचना के बाद की चीज़ है लेकिन मुक्तिबोध की कविताई में जाने से पहले उनकी समीक्षाई जानना ज़रूरी है। ज़रूरी नहीं बहुत ज़रूरी है। बहुत ज़रूरी भी क्या अनिवार्य है। इस पुस्तक के रचनाकार अशोक चक्रधर ऐसा मानते हैं।

More Information
Language Hindi
Binding Hard Back
Publication Year 1988
Edition Year 2016, Ed. 2nd
Pages 176p
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publisher Radhakrishna Prakashan
Dimensions 22 X 14 X 1.5
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Ashok Chakradhar

Author: Ashok Chakradhar

अशोक चक्रधर

जन्म : 8 फरवरी, 1951; खुर्जा (उ.प्र.)।

शिक्षा : एम.ए., एम.लिट्., पीएच.डी. (हिन्दी)। विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के ‘कैरिअर अवार्ड’ के अन्‍तर्गत ‘नवसाक्षर साहित्य के आयाम’ विषय पर उत्तर पीएच.डी. शोधकार्य।

प्रकाशित पुस्तकें : ‘भोले-भाले’, ‘तमाशा’, ‘चुटपुटकुले’, ‘सो तो है’, ‘हँसो और मर जाओ’, ‘बूढ़े बच्चे’, ‘ए जी सुनिए’ (कविता); ‘रंग जमा लो’, ‘चार क़ि‍स्से चौपाल के’, ‘सब कुछ माँगना लेकिन’, ‘बिटिया की सिसकी’ (नाटक); ‘कोयल का सितार’, ‘एक बगिया में’, ‘हीरों की चोरी’, ‘स्नेहा का सपना’ (बाल-साहित्य); ‘नई डगर’, ‘अपाहिज कौन’, ‘हमने मुहिम चलाई’, ‘भई बहुत अच्छे’, ‘बदल जाएँगी रेखा’, ‘ताउम्र का आराम’, ‘घड़े ऊपर हंडिया’ (प्रौढ़ साहित्य); ‘मुक्तिबोध की काव्य-प्रक्रिया’, ‘मुक्तिबोध की कविताई’, ‘मुक्तिबोध की समीक्षाई’, ‘छाया के बाद’ (सह-सम्‍पादन) (समीक्षा); ‘इतिहास क्या है’ (ई.एच. कार) (अनुवाद)।

फ़‍िल्म लेखन-निर्देशन : ‘जमुना किनारे’ (फ़ीचर फ़ि‍ल्म); ‘गुलाबड़ी’, ‘जीत गई छन्नो’, ‘मास्टर दीपचन्‍द’, ‘हाय मुसद्दी’, ‘तीन नज़ारे’ (टेलीफ़ि‍ल्म); ‘पंगु गिरि लंघै’, ‘गोरा हट जा’, ‘साक्षरता निकेतन’, ‘विकास की लकीरें’ (वृत्तचित्र); ‘भोर तरंग’, ‘ढाई आखर’, ‘बुआ भतीजी’, ‘बोल बसन्तो’, ‘वंश’, ‘अलबेला सुरमेला’, ‘कहकहे’, ‘परदा उठता है’ आदि (धारावाहिक)।

विगत कई दशकों से विभिन्न जनसंचार माध्यमों में सक्रिय अशोक चक्रधर जी जामिया मिल्लिया इस्लामिया में हिन्‍दी एवं पत्रकारिता विभाग में प्रोफ़ेसर व अध्यक्ष के पद से सेवानिवृत्त होने के बाद केन्‍द्रीय हिन्‍दी संस्थान तथा हिन्‍दी अकादेमी, दिल्ली के उपाध्यक्ष पद पर भी कार्यरत रहे।

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