Muktibodh Ki Kavitaai

Literary Criticism
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Muktibodh Ki Kavitaai

मुक्तिबोध के कला-सिद्धान्‍त कविता को एक सामाजिक-सांस्कृतिक प्रक्रिया मानते हैं, उनकी कविताई इसका जागता जीता प्रमाण है। उनकी कविताई में भ्रमों से परिपूर्ण युगीन यथार्थ का जीवन-जाल तो मिलता है, पर उसकी बुनावट में रचनागत अर्थ का कोई भ्रम नहीं है।

जो महानुभाव कविता को प्राय: एक कलात्मक या शिल्पात्मक प्रक्रिया समझते हैं, उनके लिए तो मुक्तिबोध की कविताएँ निश्चित रूप से ‘जटिल’, ‘अधूरी’, ‘आत्मपरक अभिव्यक्ति’, ‘भयानक’ या ‘ऊबड़-खाबड़’ हो सकती हैं, किन्‍तु यदि हम मुक्तिबोध की रचना-प्रक्रियापरक समझ से परिचित हो लें और उनके सूत्र—‘कला एक सामाजिक प्रक्रिया है’—को आधार मानकर उनकी रचनाओं में जाने की कोशिश करें, तो प्रत्यक्ष पाते हैं कि मुक्तिबोध शब्द के असामाजिक प्रयोग के कवि नहीं थे। हाँ, इतना तो है ही कि उनके कथ्य की सार्थकता तभी पकड़ में आ पाती है, जब हम कविता के बारे में उनके स्वयं के दृष्टिकोण से रूबरू हो लें। ऐसा अगर हम कर लें तो उस ग़लती से भी बचा जा सकता है जो मुक्तिबोध के सन्‍दर्भ में जाने या अनजाने होती आ रही है।

इस पुस्तक में मुक्तिबोध की सैद्धान्तिक समीक्षाई के आधार पर उनकी छोटी-बड़ी ग्यारह प्रमुख कविताओं की व्यावहारिक समीक्षा की गई है। साथ ही एक साफ़-सुथरा रास्ता बनाने की कोशिश है कि जिस रास्ते पर चलकर मुक्तिबोध की कविताई तक पहुँचा जा सकता है।

अशोक चक्रधर मुक्तिबोध की कविताओं पर कार्य करनेवाले प्रारम्भिक लेखकों में गिने जाते हैं। यही कारण कि उनकी यह पुस्तक आज भी पाठकों के बीच अपने कई कारणों से अत्यन्‍त उपयोगी बनी हुई है।

More Information
Language Hindi
Format Hard Back
Publication Year 1998
Edition Year 2019, Ed. 2nd
Pages 188p
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publisher Radhakrishna Prakashan
Dimensions 22 X 14 X 2
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Editorial Review

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Ashok Chakradhar

Author: Ashok Chakradhar

अशोक चक्रधर

जन्म : 8 फरवरी, 1951; खुर्जा (उ.प्र.)।

शिक्षा : एम.ए., एम.लिट्., पीएच.डी. (हिन्दी)। विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के ‘कैरिअर अवार्ड’ के अन्‍तर्गत ‘नवसाक्षर साहित्य के आयाम’ विषय पर उत्तर पीएच.डी. शोधकार्य।

प्रकाशित पुस्तकें : ‘भोले-भाले’, ‘तमाशा’, ‘चुटपुटकुले’, ‘सो तो है’, ‘हँसो और मर जाओ’, ‘बूढ़े बच्चे’, ‘ए जी सुनिए’ (कविता); ‘रंग जमा लो’, ‘चार क़ि‍स्से चौपाल के’, ‘सब कुछ माँगना लेकिन’, ‘बिटिया की सिसकी’ (नाटक); ‘कोयल का सितार’, ‘एक बगिया में’, ‘हीरों की चोरी’, ‘स्नेहा का सपना’ (बाल-साहित्य); ‘नई डगर’, ‘अपाहिज कौन’, ‘हमने मुहिम चलाई’, ‘भई बहुत अच्छे’, ‘बदल जाएँगी रेखा’, ‘ताउम्र का आराम’, ‘घड़े ऊपर हंडिया’ (प्रौढ़ साहित्य); ‘मुक्तिबोध की काव्य-प्रक्रिया’, ‘मुक्तिबोध की कविताई’, ‘मुक्तिबोध की समीक्षाई’, ‘छाया के बाद’ (सह-सम्‍पादन) (समीक्षा); ‘इतिहास क्या है’ (ई.एच. कार) (अनुवाद)।

फ़‍िल्म लेखन-निर्देशन : ‘जमुना किनारे’ (फ़ीचर फ़ि‍ल्म); ‘गुलाबड़ी’, ‘जीत गई छन्नो’, ‘मास्टर दीपचन्‍द’, ‘हाय मुसद्दी’, ‘तीन नज़ारे’ (टेलीफ़ि‍ल्म); ‘पंगु गिरि लंघै’, ‘गोरा हट जा’, ‘साक्षरता निकेतन’, ‘विकास की लकीरें’ (वृत्तचित्र); ‘भोर तरंग’, ‘ढाई आखर’, ‘बुआ भतीजी’, ‘बोल बसन्तो’, ‘वंश’, ‘अलबेला सुरमेला’, ‘कहकहे’, ‘परदा उठता है’ आदि (धारावाहिक)।

विगत कई दशकों से विभिन्न जनसंचार माध्यमों में सक्रिय अशोक चक्रधर जी जामिया मिल्लिया इस्लामिया में हिन्‍दी एवं पत्रकारिता विभाग में प्रोफ़ेसर व अध्यक्ष के पद से सेवानिवृत्त होने के बाद केन्‍द्रीय हिन्‍दी संस्थान तथा हिन्‍दी अकादेमी, दिल्ली के उपाध्यक्ष पद पर भी कार्यरत रहे।

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