Mujhe Kuchh Kahana Hai….

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Mujhe Kuchh Kahana Hai….
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बहुत कम लोग जानते हैं कि फ़िल्मकार-कहानीकार ख़्वाजा अहमद अब्बास की क़लम की दुनिया कितनी बड़ी थी। सत्तर साल की अपनी ज़िन्दगी में उन्होंने 70 ही किताबें भी लिखीं और असंख्य अख़बारों और रिसालों में आलेख भी। हर बुधवार को 'ब्लिट्ज' में उनका स्तम्भ, अंग्रेज़ी में 'द लास्ट पेज' और उर्दू में 'आज़ाद क़लम' शीर्षक से, छपता था। और आपको जानकर हैरानी होगी कि इसे उन्होंने चालीस साल लगातार लिखा, जिसमें दोनों ज़बानों के विषय भी अक्सर अलग होते थे। कहते हैं कि ये दुनिया में अपने ढंग का एक रिकॉर्ड है।

आपके हाथों में जो है वह उनकी कहानियों का संकलन है। इस संकलन की सभी 17 कहानियों को उनकी नातिन और उनके साहित्य की अध्येता ज़ोया ज़ैदी ने संगृहीत किया है। इनमें कुछ कहानियाँ पहली बार हिन्दी में आ रही हैं। डॉ. ज़ैदी का कहना है कि अब्बास साहब ऐसे व्यक्ति थे जिनके ''जीवन का लक्ष्य होता है, एक उद्देश्य जिसके लिए वे जीते हैं। एक मक़सद मनुष्य के समाज में बदलाव लाने का, उसकी सोई हुई आत्मा को जगाने का।''

यही काम उन्होंने अपनी कहानियों, फ़िल्मों और अपने स्तम्भों में आजीवन किया। आमजन से हमदर्दी, मानवीयता में अटूट विश्वास, स्त्री की पीड़ा की गहरी पारखी समझ और भ्रष्ट नौकरशाही से एक तीखी कलाकार-सुलभ जुगुप्सा, वे तत्त्व हैं जो इन कहानियों में देखने को मिलते हैं। डॉ. ज़ैदी के शब्दों में, ये कहानियाँ अब्बास साहब की आत्मा का दर्पण हैं। इन कहानियों में आपको वो अब्बास मिलेंगे जो इनसान को एक विकसित और अच्छे व्यक्ति के रूप में देखना चाहते थे।

इस किताब का एक ख़ास आकर्षण ख़्वाजा अहमद अब्बास का एक साक्षात्कार है जिसे किसी और ने नहीं, कृश्न चन्दर ने लिया था।

More Information
Language Hindi
Format Hard Back, Paper Back
Publication Year 2017
Edition Year 2017, Ed. 1st
Pages 264p
Translator Zoya Zaidi
Editor Not Selected
Publisher Rajkamal Prakashan
Dimensions 22 X 14.5 X 2
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Khwaja Ahmad Abbas

Author: Khwaja Ahmad Abbas

ख़्वाजा अहमद अब्बास

ख़्वाजा अहमद अब्बास का जन्म 7 जून, 1914  में पानीपत के मौलाना अल्ताफ़ हुसैन हाली के परिवार में हुआ। वह एक साहित्यकार, पत्रकार एवं फ़िल्म निर्देशक और निर्माता थे। उनकी कहानियाँ आधुनिक भारत की सर्वश्रेष्ठ कहानियों में शामिल की जाती हैं। यह कहानियाँ न केवल भारतीय समाज की वास्तविकता को दर्शाती हैं बल्कि ख़ुद अब्बास की आत्मा का दर्पण भी है। यह कहानियाँ सन् 1947 के स्वतंत्र भारत, विभाजित भारत के साम्प्रदायिक दंगों से प्रभावित भारत और विकास की ओर बढ़ते हुए 50, 60 एवं 70 के दशक के भारत तथा प्रगतिशील भारत की कहानियाँ हैं जो पाँच दहाइयों पर फैली हुई हैं। ‘इनमें हाड़-मांस के सच्चे मनुष्य हैं, जो अच्छाइयों और बुराइयों का संग्रह हैं, जो बावजूद ‘पाप’ करने के मानवता से अनभिज्ञ नहीं होते। मनुष्य, जो इश्क़ और मुहब्बत ही के लिए जीवित नहीं रहते बल्कि खाते भी हैं, कमाते भी हैं, गाते भी हैं, देश पर जान भी देते हैं और देश से विश्वासघात भी करते हैं, जो गिरते भी हैं, सँभलते भी हैं, और गिरतों को सँभालते भी हैं।’ इन कहानियों के माध्यम से एक पिछड़े वर्ग के मानव से सहानुभूति रखनेवाले , जात-पाँत और साम्प्रदायिकता से घृणा करनेवाले, औरतों के शोषण से दुखी होनेवाले, आम आदमी के सपनों को साकार होते देखनेवालों की इच्छा रखनेवाले एक धर्मनिरपेक्ष, सच्चे राष्ट्रवादी एवं आदर्शवादी अब्बास सामने आते हैं।

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