वर्तमान काल मीडिया का काल है। मीडिया की ताक़त का लोहा न माननेवाला शायद ही कोई दिखाई दे। जिस तरह मीडिया में माहौल और व्यवस्था को बनाने की ताक़त होती है, उसी तरह बिगाड़ने की भी। मीडिया को लेकर इस ग्रन्थ के लेखक की मान्यता है कि ‘यह वह अद्भुत आग है जो जीवन देती भी है और लेती भी, हँसाती भी है और रुलाती भी, बनाती भी है और बिगाड़ती भी’। लेकिन सकारात्मक सोच से कहना होगा कि मीडिया वह साधन है जिसका प्रयोग मानव जाति के कल्याण के लिए अधिक उपयोगी सिद्ध हो सकता है।
वर्तमान काल का भयावह सच है बेरोज़गारी। लेकिन ऐसे माहौल में मीडिया के बढ़ते प्रभाव ने रोज़गार के अनेक अवसर प्रदान किए हैं, इसे भी नकारा नहीं जा सकता। सच तो यह है कि आई.टी. के इस उन्नत माहौल में रोज़गार के सबसे ज़्यादा अवसर भाषा के अध्येता के लिए हैं। भारत के सन्दर्भ में हिन्दी जैसी भाषा के अध्येता के लिए मीडिया के बूते पर रोज़गार की अनेक सम्भावनाएँ दावत दे रही हैं। युवा पीढ़ी की स्थिति और गति को जाननेवाले समीक्षक डॉ. अर्जुन चव्हाण ने युग की माँग को देखते हुए प्रस्तुत रचना का लेखन किया है। उनकी समीक्षा खोखले आडम्बर एवं पाखंड पर जितनी क्षमता से प्रहार करती है, उतनी ही क्षमता से नई पीढ़ी को चुनौतियों का सामना करने की दृष्टि भी प्रदान करती है। दस अध्यायों में विभाजित इस रचना में अद्यतन विषय पर प्रकाश डाला गया है। विशेषतः ‘वैश्वीकरण के परिप्रेक्ष्य में हिन्दी’, ‘संचार माध्यम का हिन्दी परिप्रेक्ष्य’, ‘हिन्दी के बूते पर रोज़गार के अवसर’ तथा ‘संगणकीय हिन्दी’ जैसे विषय पर लेखन होना समकालीन समय और युग की माँग
थी।
आधुनिक हिन्दी साहित्य के अलावा हिन्दी भाषा का प्रयोजनपरक पक्ष भी जिनके अध्ययन, अनुसन्धान और समीक्षा का विषय बना है, वे बेलाग समीक्षक डॉ. अर्जुन चव्हाण इस ग्रन्थ के ज़रिए न केवल हिन्दी समीक्षा को समृद्ध करते हैं, बल्कि अपने काल की चुनौतियों का सामना करने का ‘क्ल्यू’ भी देते हैं। प्रस्तुत रचना भाषा के अध्येताओं के भीषण वर्तमान को बेहतर भविष्य में बदलने के लिए दृष्टि और दिशा भी दे सकती है, इसमें सन्देह नहीं।
Language | Hindi |
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Binding | Hard Back |
Publication Year | 2005 |
Edition Year | 2024, Ed. 2nd |
Pages | 203p |
Translator | Not Selected |
Editor | Not Selected |
Publisher | Radhakrishna Prakashan |
Dimensions | 22 X 14 X 1.5 |