Manak Hindi Ke Shuddh Prayog : Vol. 1

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Manak Hindi Ke Shuddh Prayog : Vol. 1
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सशक्त अभिव्यक्ति के लिए समर्थ हिन्दी चाहिए।

इस नए ढंग के व्यवहार–कोश में पाठकों को अपनी हिन्दी निखारने के लिए हज़ारों शब्दों के बारे में बहुपक्षीय भाषा–सामग्री मिलेगी। इसमें वर्तनी की व्यवस्था मिलेगी, उच्चारण के संकेत–बिन्दु मिलेंगे, व्युत्पत्ति पर टिप्पणियाँ मिलेंगी, व्याकरण के तथ्य मिलेंगे, सूक्ष्म अर्थभेद मिलेंगे, पर्याय और विपर्याय मिलेंगे, संस्कृत का आशीर्वाद मिलेगा, उर्दू और अंग्रेज़ी का स्वाद मिलेगा, प्रयोग के उदाहरण मिलेंगे, शुद्ध–अशुद्ध का निर्णय मिलेगा।

पुस्तक की शैली ललित निबन्धात्मक है। इसमें कथ्य को समझाने और गुत्थियों को सुलझाने के दौरान कठिन और शुष्क अंशों को सरल और रसयुक्त बनाने के लिहाज़ से मुहावरों, लोकोक्तियों, लोकप्रिय गानों की लाइनों, कहानी–क़िस्सों, चुटकुलों और व्यंग्य का भी सहारा लिया गया है। नमूने देखिए, स्त्रीलिंग ‘दाद’ (प्रशंसा) सब को अच्छी लगती है, पर पुर्लिंग ‘दाद’ (चर्मरोग) केवल चर्मरोग के डॉक्टरों को अच्छा लगता है।…‘मैल, मैला, मलिन’ सब ‘मल’ के भाई–बन्धु हैं…(‘साइकिल’ को) ‘साईकील’ लिखनेवाले महानुभाव तो किसी हिन्दी–प्रेमी के निश्चित रूप से प्राण ले लेंगे—दुबले को दो असाढ़। ...अरबी का ‘नसीब’ भी ‘हिस्सा’ और ‘भाग्य’ दोनों है। उदाहरण—आपके नसीब में ख़ुशियाँ ही ख़ुशियाँ हैं। (जबकि मेरे नसीब में मेरी पत्नी हैं।)

यह पुस्तक हिन्दी के हर वर्ग और स्तर के पाठक के लिए उपयोगी है।

More Information
Language Hindi
Format Hard Back
Publication Year 1996
Edition Year 2023, Ed. 4th
Pages 204p
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publisher Radhakrishna Prakashan
Dimensions 22.5 X 14.5 X 1.5
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Ramesh Chandra Mahrotra

Author: Ramesh Chandra Mahrotra

रमेश चंद्र महरोत्रा

जन्म : 17 अगस्त, 1934; मुरादाबाद।

शिक्षा : एम.ए., एम.लिट्., पीएच.डी., डी.लिट्. (हिन्दी—भाषाविज्ञान)।

सेवा : सागर विश्वविद्यालय में असिस्टेंट प्रोफ़ेसर (7 वर्ष), रविशंकर विश्वविद्यालय में रीडर-हेड (12 वर्ष), वहीं प्रोफ़ेसर-हेड (16 वर्ष), आगे भी मानसेवी प्रोफ़ेसर (रॅक्टर और कुलपति के पद अस्वीकार किए)।

शोध-निर्देशन : 5 डी.लिट्., 39 पीएच.डी., 24 एम.फिल., 6 शोध-परियोजनाएँ।

प्रकाशन : चार दर्जन से अधिक पुस्तकें (लेखन, सह-लेखन, सम्पादन आदि) मानक हिन्दी, भाषाविज्ञान, साहित्य, छत्तीसगढ़ी आदि पर। अनेक पत्र-पत्रिकाओं व ग्रन्थों में सैकड़ों लेख।

सम्मान : 8 राज्यों से 17 राष्ट्रीय प्रादेशिक स्तर के अलंकरण; शोधग्रन्थ ‘लिंग्विस्टिक्स

एंड लिंग्विस्टिक्स’ से अभिनन्दित; सहस्राधिक प्रशस्तियाँ प्राप्त।

सदस्यता : केन्द्र और प्रदेश के सरकारी और अन्य तीन दर्जन आयोगों, परिषदों आदि से शैक्षणिक सम्बद्धता; 22 विश्वविद्यालयों से शोध-निर्वाह।

प्रसारण : सैकड़ों वार्ताएँ आदि।

सामाजिक कार्य : नि:शुल्क विधवा-विवाह केन्द्र का 1992 में स्थापन और आजीवन संचालन, तद् हेतु 9 वार्षिक स्वर्णपदक एवं 3 वार्षिक स्नातक-स्तरीय छात्रवृत्तियाँ प्रदान; मरणोपरान्त सपत्नीक शरीरदान और नेत्रदान।

निधन : 4 दिसम्बर, 2014

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