Manak Hindi Ka Vyavharparak Vyakaran

Grammar
You Save 20%
Out of stock
Only %1 left
SKU
Manak Hindi Ka Vyavharparak Vyakaran

हिन्दी भाषा हिन्दी की समस्त बोलियों के समुच्चय की बोधक है। जिस तरह नदी की सहायिकाएँ अपनी अलग सत्ता रखते हुए भी नदी की मुख्यधारा से अपना नित्य सम्बन्ध निभाती हैं, उसी तरह भाषा की बोलियाँ भी अपना पृथक् अस्तित्व बनाए रखकर भाषा की अन्तर्धारा से अपना सम्बन्ध सजीव किए रहती हैं।

भाषा का मानक रूप एक बहुग्राही सम्मिश्रण रूप होता है। उसकी सैर दूर-दूर तक और गलियारों तक में होती है, इसलिए वह हर जगह से कुछ न कुछ ग्रहण करती चलती है। अनेक क्षेत्रों के शब्दादि और विशिष्ट अर्थ प्राय: उसमें प्रविष्ट होते रहते हैं। जिन रूपों और प्रयोगों को सभी लोग शुद्ध मानते हुए उनका केवल एक रूप स्वीकार करते हैं, उनके बारे में कोई भी कह देगा कि वे मानक हैं। लेकिन नए-पुराने तर्कों और रूपों के आधार पर कभी-कभी एकाधिक रूप या प्रयोग भी चलन में होते हैं।

विख्यात भाषा वैज्ञानिक रमेश चंद्र महरोत्रा की यह पुस्तक भाषा प्रयोग की ऐसी ही व्यावहारिक समस्याओं पर प्रकाश डालते हुए आम पाठक से लेकर भाषा को माध्यम के रूप में प्रयोग करनेवाले बुद्धिजीवियों तक के लिए एक निर्देशिका के रूप में काम करेगी, ऐसा हमारा विश्वास है।

More Information
Language Hindi
Format Hard Back
Edition Year 2016 Ed. 3rd
Pages 288p
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publisher Radhakrishna Prakashan
Write Your Own Review
You're reviewing:Manak Hindi Ka Vyavharparak Vyakaran
Your Rating

Editorial Review

It is a long established fact that a reader will be distracted by the readable content of a page when looking at its layout. The point of using Lorem Ipsum is that it has a more-or-less normal distribution of letters, as opposed to using 'Content here

Ramesh Chandra Mahrotra

Author: Ramesh Chandra Mahrotra

रमेश चंद्र महरोत्रा

जन्म : 17 अगस्त, 1934; मुरादाबाद।

शिक्षा : एम.ए., एम.लिट्., पीएच.डी., डी.लिट्. (हिन्दी—भाषाविज्ञान)।

सेवा : सागर विश्वविद्यालय में असिस्टेंट प्रोफ़ेसर (7 वर्ष), रविशंकर विश्वविद्यालय में रीडर-हेड (12 वर्ष), वहीं प्रोफ़ेसर-हेड (16 वर्ष), आगे भी मानसेवी प्रोफ़ेसर (रॅक्टर और कुलपति के पद अस्वीकार किए)।

शोध-निर्देशन : 5 डी.लिट्., 39 पीएच.डी., 24 एम.फिल., 6 शोध-परियोजनाएँ।

प्रकाशन : चार दर्जन से अधिक पुस्तकें (लेखन, सह-लेखन, सम्पादन आदि) मानक हिन्दी, भाषाविज्ञान, साहित्य, छत्तीसगढ़ी आदि पर। अनेक पत्र-पत्रिकाओं व ग्रन्थों में सैकड़ों लेख।

सम्मान : 8 राज्यों से 17 राष्ट्रीय प्रादेशिक स्तर के अलंकरण; शोधग्रन्थ ‘लिंग्विस्टिक्स

एंड लिंग्विस्टिक्स’ से अभिनन्दित; सहस्राधिक प्रशस्तियाँ प्राप्त।

सदस्यता : केन्द्र और प्रदेश के सरकारी और अन्य तीन दर्जन आयोगों, परिषदों आदि से शैक्षणिक सम्बद्धता; 22 विश्वविद्यालयों से शोध-निर्वाह।

प्रसारण : सैकड़ों वार्ताएँ आदि।

सामाजिक कार्य : नि:शुल्क विधवा-विवाह केन्द्र का 1992 में स्थापन और आजीवन संचालन, तद् हेतु 9 वार्षिक स्वर्णपदक एवं 3 वार्षिक स्नातक-स्तरीय छात्रवृत्तियाँ प्रदान; मरणोपरान्त सपत्नीक शरीरदान और नेत्रदान।

निधन : 4 दिसम्बर, 2014

Read More
Books by this Author

Back to Top