अज्ञान का, ग़रीबी का, बीमारियों का, अंधश्रद्धा का, सामाजिक विषमता का, एक-दूसरे पर अविश्वास का अंधकार हमारे समाज से दूर कर ज्ञान का, समृद्धि का, सत्श्रद्धा का, एक-दूसरे पर विश्वास का प्रकाश यदि चाहिए तो ऐसे सत्चरित्र व्यक्ति का निर्माण कैसे हुआ, इसका चित्रण सबके सामने आना चाहिए। बुद्धिमानी, निरन्तर मेहनत करने की तैयारी, दूसरों की ज़रूरतों का अहसास, त्याग करने की मनोवृत्ति, सादे जीवन का महत्त्व जानना, सत् सीखने की प्रवृत्ति होना ऐसे अनेक पहलू, जिनके व्यक्तित्व पर नज़र डालने पर दृष्टिगोचर होते हैं, उनमें डॉ. अनिल गांधी ‘कनिष्ठिकाधिष्ठित’ हैं। उन्हें जिन कठिनाइयों से रास्ता निकालना पड़ा, उनका इस पुस्तक में उन्होंने ईमानदारी से वर्णन किया है। अपने पिता और सगे भाई के गुण-दोष का वर्णन करते समय भी उन्होंने सच्चाई का दामन नहीं छोड़ा। अपने गुरुजनों के बारे में आदर भाव में कमी न आने देते हुए उनका योग्य मूल्यमापन किया है। डॉ. अनिल गांधी द्वारा लिखित इस पुस्तक की विशेषता है, विषय-विविधता। सामाजिक कार्यों के लिए उनकी छटपटाहट, निष्ठा, कौशल्य के साथ व्यावसायिक सिद्धान्त, जीवन में व्यावहारिक बातों में सामर्थ्य कैसे प्राप्त करें, इस सम्बन्ध में उनके द्वारा किया गया अमूल्य मार्गदर्शन महत्त्वपूर्ण है। इसके अतिरिक्त पारिवारिक सन्दर्भ में अपने बच्चों की प्रतिभा पहचान कर उन्हें उनके ‘आकाश’ का यानी उनकी सामर्थ्य का अहसास करा देना, मुझे विशेष लगता है। इतना ही नहीं, उन्हें संस्कृति के बारे में जो गर्व है, वह भी कौतुकास्पद है। पृथ्वी-प्रकृति इन सभी के बारे में कुतूहल लगनेवाले विषयों पर उन्होंने अध्ययनपूर्ण और सरल भाषा में जो लिखा है, वह मुझे बहुत अच्छा लगा।

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Language Hindi
Format Hard Back
Publication Year 2014
Edition Year 2014, Ed. 1st
Pages 196p
Translator Damodar Khadse
Editor Not Selected
Publisher Radhakrishna Prakashan
Dimensions 22 X 14.5 X 1.5
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Dr. Anil Gandhi

Author: Dr. Anil Gandhi

डॉ. अनिल गांधी

जन्म : 1963; महाराष्ट्र के सोलापुर ज़िले के छोटे से गाँव माढ़ा में।

शिक्षा : एम.बी.बी.एस. करने के बाद पुणे में प्रैक्टिस। 1971 में पुणे से एम.एस.।

1966-86 के दौरान ग्रामीण इलाक़ों में चिकित्सकीय सुविधा उपलब्ध कराने के लिए विशेष प्रयास। 1970 में गांधी हॉस्पिटल का शुभारम्भ।

सेंट मार्क्स हॉस्पिटल, लन्दन से 1974 में कोलोरेक्टल सर्जरी में स्पेशलाइजेशन, फिर 1994 तक विदेशों में अनेक स्थानों पर शोध-आलेखों का व्यापक प्रस्तुतीकरण।

सामाजिक कार्यों में समर्पित। लोनावाला के पास पांगलोली नामक आदिवासी बस्ती में चिकित्सा, शिक्षा और विकास-कार्य का नेतृत्व। पूर्वोत्तर सीमा विकास प्रतिष्ठान के 'राष्ट्रीय एकता अभियान’ में सक्रिय सहभाग।

 

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