Maharaja Surajmal

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Maharaja Surajmal
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18वीं सदी में जब मुग़ल साम्राज्य पतन की ओर था, मराठों, सिखों और जाटों ने न केवल अपनी-अपनी प्रभावशाली राजसत्ता स्थापित कर ली थी, बल्कि दिल्ली सल्तनत को एक तरह से घेर लिया था। उन दिनों इन रियासतों में कुछ ऐसे शासक पैदा हुए जिन्होंने अपनी बहादुरी तथा राजनय के बल पर न केवल उस समय की सियासत, बल्कि समाज पर भी गहरा असर डाला। भरतपुर के जाट नरेश महाराजा सूरजमल इनमें अव्वल थे।

महज़ 56 वर्ष के जीवन-काल में उन्होंने आगरा और हरियाणा पर विजय प्राप्त करके अपने राज्य का विस्तार ही नहीं किया, बल्कि प्रशासनिक ढाँचे में भी उल्लेखनीय बदलाव किए। जाट समुदाय में आज भी उनका नाम बहुत गौरव और आदर के साथ लिया जाता है।

विद्वान राजनेता कुँवर नटवर सिंह ने प्रामाणिक सूचनाओं और दस्तावेज़ों को आधार बनाकर महाराजा सूरजमल की सियासत और संघर्ष की महागाथा लिखी है। अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर चर्चित हो चुकी इस पुस्तक का यह अनुवाद हिन्दी के पाठकों के सामने उनके प्रेरणादायी व्यक्तित्व को रखने का अपनी तरह का पहला उपक्रम है।

More Information
Language Hindi
Format Hard Back, Paper Back
Publication Year 1985
Edition Year 2023, Ed. 6th
Pages 180p
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publisher Radhakrishna Prakashan
Dimensions 22.5 X 14 X 1.5
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Kunwar Natwar Singh

Author: Kunwar Natwar Singh

कुँवर नटवर सिंह

 

जन्म : 16 मई, 1931; भरतपुर (राजस्थान) में। 

शिक्षा : बी.ए. (ऑनर्स) सेंट स्टीफ़न कॉलेज, नई दिल्ली; कॉरपस क्रिस्टी कॉलेज, कैम्ब्रिज; बीज़िंग यूनिवर्सिटी, बीज़िंग; फेलो—कॉरपस क्रिस्टी कॉलेज, कैम्ब्रिज।

भारतीय विदेश सेवा : 1953 में भारतीय विदेश सेवा में शामिल। बीज़िंग (चीन) में 1956-58; संयुक्त राष्ट्र संघ (न्यूयॉर्क) में स्थायी भारतीय मिशन के तहत 1961-66; प्रधानमंत्री कार्यालय में 1966-71; पोलैंड में राजदूत 1971-73; लन्दन में उप-उच्चायुक्त 1973-77; जाम्बिया में उच्चायुक्त 1977-80; पाकिस्तान में राजदूत 1980-82। 

राजनीति : विदेश सेवा से मुक्त होकर सक्रिय राजनीति में शामिल हुए। 1984 में पहली बार सांसद बने। 1984-89 तथा 1998-99 के दौरान लोकसभा के सदस्य रहे। 2002 में राज्यसभा के लिए चुने गए। 

इस्पात राज्यमंत्री 1985, उर्वरक राज्यमंत्री 1985-86, विदेश राज्यमंत्री 1986-89। मई 2004 से दिसम्बर 2005 तक केन्द्रीय विदेश मंत्री। 

प्रमुख कृतियाँ : ई.एम. फ़ॉर्स्टर : ए ट्रिब्यूट (1964); द लैगेसी ऑफ़ नेहरू (1965); टेल्स फ़्रॉम मॉडर्न इंडिया (1966); स्टोरीज फ़्रॉम इंडिया (1971); महाराजा सूरजमल 1707-1763 (1981); कर्टेन राइज़र (1984); प्रोफ़ाइल एंड लेटर्स (1997); द मैग्नीफिकेंट महाराजा भूपिन्दर सिंह ऑफ़ पटियाला : 1891-1938 (1997); हर्ट टू हर्ट (2003)। इनके अतिरिक्त ढेर सारी पुस्तक समीक्षाएँ एवं आलेख राष्ट्रीय व अन्तरराष्ट्रीय पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित।

सम्मान : ‘पद्मभूषण’ (1984); ‘ई.एम. फ़ॉर्स्टर लिट्रेसी अवार्ड’ (1989); क्यूंग ही यूनिवर्सिटी, सियोल से राजनीतिशास्त्र में डॉक्टर की मानद उपाधि। सिनेगल गणराज्य द्वारा सम्मान।

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