Mahamuni Agastya

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Mahamuni Agastya
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“वृत्तेन भवति आर्येण विद्यया न कुलेन च के सिद्धान्तानुसार ऋषित्व व महानता कुल तथा विद्या की उच्चता पर नहीं, कर्म एवं आचरण की श्रेष्ठता पर निर्भर करती है; अतः यह प्रश्न नहीं उठता कि किसने किससे जन्म ग्रहण किया, प्रश्न यह आता है कि गुण व कर्म की श्रेष्ठता किसमें कम है और किसमें अधिक है।” इस पौराणिक सिद्धांत को आधार बनाकर तर्कसंगत नया आख्यान रचा है हिंदी के जाने-माने विद्वान रामनाथ नीखरा ने अपनी इस पुस्तक ‘महामुनि अगस्त्य’ में! महामुनि अगस्त्य समाज, राष्ट्र व संसार से पूर्णतः उदासीन निरे वैरागी नहीं थे, वह मंत्र-स्रष्टा तो थे ही, क्रान्ति-द्रष्टा भी थे। वह सामाजिक, सांस्कृतिक व धार्मिक गरिमा के संवाहक ही नहीं थे; राष्ट्रीय अस्मिता, एकता व अखंडता के संरक्षक भी थे, और वे राष्ट्रहिताय आयोज्य कर्म-यज्ञ के सच्चे अर्थ में प्रणेता, होता व पुरोधा थे। किन्तु पुराणकर्ताओं ने उनकी इस महत्ता को रहस्यात्मक ढंग से प्रस्तुत कर अनुद्घाटित ही रहने दिया है। प्रस्तुत उपन्यास ‘महामुनि अगस्त्य’ उनकी इसी महानता को उद्घाटित करने का तर्कसंगत, सार्थक एवं प्रामाणिक प्रयास है।

More Information
Language Hindi
Format Hard Back
Publication Year 1998
Edition Year 2023, Ed. 5th
Pages 219p
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publisher Radhakrishna Prakashan
Dimensions 22.5 X 14.5 X 2
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Author: Ramnath Neekhara

रामनाथ नीखरा
रामनाथ नीखरा का जन्म 5 मई, 1922 को पिछोर, शिवपुरी, मध्यप्रदेश में हुआ था। उन्होंने एम.ए. (हिन्दी, इतिहास) एम. एड. साहित्य-रत्न की उपाधि प्राप्त की । उनकी प्रकाशित कृतियाँ हैं—‘रिसता घाव’, ‘ठिठुरती धूप’, ‘महामुनि अगस्त्य’, ‘प्रवीणराय’ (उपन्यास); ‘मस्तानी! बाजीराव की प्रेयसी’, ‘अन्तर्दाह तथा अन्य कहानियाँ’ (कहानी-संग्रह); ‘संत रविदास (जीवनी)’।

उपन्यास ‘ठिठुरती धूप’ के लिए उन्हें बुन्देलखंड साहित्य अकादेमी के ‘स्वामी प्रणवानन्द सरस्वती पुरस्कार’, ‘महामुनि अगस्त्य’ के लिए बुन्देलखंड हिन्दी शोध संस्थान झाँसी का पुरस्कार तथा उपन्यास ‘प्रवीणराय’ को ‘प्रथम अम्बिका प्रसाद दिव्य पुरस्कार’ से सम्मानित किया गया।

वे 1980 में शासकीय शिक्षा महाविद्यालय, छतरपुर से प्राध्यापक पद से सेवानिवृत्त हुए ।

20 अप्रैल, 1998 में उनका निधन हुआ।

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