Kaun Des Ko Vasi : Venu Ki Diary

Author: Suryabala
Edition: 2018, Ed. 1st
Language: Hindi
Publisher: Rajkamal Prakashan
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Kaun Des Ko Vasi : Venu Ki Diary
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प्रवासी भारतीय होना भारतीय समाज की महत्त्वाकांक्षा भी है, सपना भी है, कैरियर भी है और सब कुछ मिल जाने के बाद नॉस्टेल्जिया का ड्रामा भी। लेकिन कभी-कभी वह अपने आप को, अपने परिवेश को, अपने देश और समाज को देखने की एक नई दृष्टि का मिल जाना भी होता है। अपनी जन्मभूमि से दूर किसी परायी धरती पर खड़े होकर वे जब अपने आपको और अपने देश को देखते हैं तो वह देखना बिलकुल अलग होता है। भारतभूमि पर पैदा हुए किसी व्यक्ति के लिए यह घटना और भी ज़्यादा मानीख़ेज़ इसलिए हो जाती है कि हम अपनी सामाजिक परम्पराओं, रूढ़ियों और इतिहास की लम्बी गुंजलकों में घिरे और किसी मुल्क के वासी के मुक़ाबले क़तई अलग ढंग से ख़ुद को देखने के आदी होते हैं। उस देखने में आत्मालोचन बहुत कम होता है। वह धुँधलके में घूरते रहने जैसा कुछ होता है। विदेशी क्षितिज से वह धुँधलका बहुत झीना दीखता है और उसके पर बसा अपना देश ज़्यादा साफ़।

इस उपन्यास में अमेरिका-प्रवास में रह रहे वेणु और मेधा ख़ुद को और अपने पीछे छूट गई जन्मभूमि को ऐसे ही देखते हैं। उन्हें अपनी मिट्टी की अबोली कसक प्राय: चुभती रहती है—वे अपने परिवार जनों और उनकी स्मृतियों को सहेजे जब स्वदेश प्रत्यावृत्त होते हैं तो उनकी परिकर-परिधि में आए जन उनके रहन-सहन, आत्मविश्वास से प्रभावित होते हैं, किन्तु वेणु और मेधा के दु:ख, उदासी और अकेलापन नेपथ्य में ही रहते हैं। नई पीढ़ी की आकांक्षाओं में सिर्फ़ और सिर्फ़ बहुत सारा धनोपार्जन ही है ताकि एक बेहतर ज़िन्दगी जी सके, जबकि अमेरिका गए अनेक प्रवासी डॉलर के लिए भीतर ही भीतर कई संग्राम लड़ते हैं। कैरम की गोटियों को छिटका देनेवाली स्थितियाँ हैं, पर निर्मम चाहतें।

वरिष्ठ कथाकार सूर्यबाला का यह बृहत् उपन्यास एक विशाल फलक पर देश और देश के बाहर को उजागर करता है। इसका वितान जितना विस्तृत है उतना ही गझिन भी, मनुष्य-संवेदना और खोने-पाने की विकलताएँ जैसे यहाँ एक बड़े फ़्रेम में साकार हो उठी हैं।

More Information
Language Hindi
Binding Hard Back, Paper Back
Publication Year 2018
Edition Year 2018, Ed. 1st
Pages 408p
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publisher Rajkamal Prakashan
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Suryabala

Author: Suryabala

सूर्यबाला

जन्म : 25 अक्टूबर, 1943; वाराणसी।

शिक्षा : एम.ए., पीएच.डी., काशी विश्वविद्यालय, वाराणसी।

प्रकाशित कृतियाँ : 'मेरे संधि-पत्र’, ‘कौन देस को वासी : वेणु की डायरी’, ‘सुबह के इन्‍तज़ार तक’, ‘अग्निपंखी’, 'यामिनी-कथा’, ‘दीक्षान्‍त’ (उपन्यास); ‘एक इन्‍द्रधनुष जुबेदा के नाम’, 'दिशाहीन’, 'थाली-भर चाँद’, 'मुँडेर पर’, 'गृह-प्रवेश', ‘साँझवाती', ‘कात्यायनी संवाद’, ‘मानुष-गंध’, ‘गौरा गुनवंती’ (कहानी); 'अजगर करे न चाकरी’, ‘धृतराष्ट्र टाइम्स’, ‘देश सेवा के अखाड़े में’, 'भगवान ने कहा था’, 'यह व्यंग्य कौ पंथ’ (व्यंग्य); ‘अलविदा अन्ना’ (विदेश संस्मरण); ‘झगड़ा निपटारक दफ़्तर' (बाल हास्य उपन्यास)।

कई रचनाएँ भारतीय एवं विदेशी भाषाओँ में अनूदित।

टीवी धारावाहिकों के माध्यम से अनेक कहानियों, उपन्यासों तथा हास्य-व्यंग्यपरक रचनाओं का रूपान्‍तर प्रसारित। ‘सज़ायाफ़्ता’ कहानी पर बनी टेलीफ़िल्म को वर्ष 2007 का सर्वश्रेष्ठ टेलीफ़िल्म पुरस्कार।

कोलंबिया विश्वविद्यालय (न्यूयार्क), वेस्टइंडीज़ विश्‍वविद्यालय (त्रिनिदाद) एवं नेहरू सेंटर (लंदन) में कहानी एवं व्यंग्य रचनाओं का पाठ। न्यूयार्क के ‘शब्द’ टी.वी. चैनल पर कहानी एवं व्यंग्य-पाठ।

सम्मान : ‘प्रियदर्शिनी पुरस्कार’, ‘व्यंग्यश्री पुरस्कार’, ‘रत्नादेवी गोयनका वाग्देवी पुरस्कार’, ‘हरिशंकर परसाई स्मृति सम्मान’, महाराष्ट्र साहित्य अकादेमी का राजस्तरीय सम्मान, महाराष्ट्र साहित्य अकादेमी का सर्वोच्च ‘शिखर सम्मान’, ‘राष्ट्रीय शरद जोशी प्रतिष्ठा पुरस्कार’, भारतीय प्रसार-परिषद का ‘भारती गौरव सम्मान’ आदि से सम्मानित।

सम्पर्क : बी—504, रूनवाल सेंटर, गोवंडी स्टेशन रोड, देवनार, चेम्बूर, मुम्बई—400088

 

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