Katha Shakuntala Ki

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Katha Shakuntala Ki
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शकुंतला-दुष्‍षंत की कथा की इस नाट्य-प्रस्तुति को जो चीज़ विशिष्ट बनाती है, वह है इसका काल-बोध और तत्कालीन परिवेश का तथ्यपरक निरूपण। ‘महाभारत’ में किंचित् परिष्कृत रूप में सबसे पहले आनेवाली यह कथा वास्तव में वैदिक काल की है। इसके पात्र वेदों के समय से सम्‍बन्‍ध रखते हैं।

दुष्यंत के पुत्र भरत का ज़ि‍क्र भी वेदों में मिलता है। इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए ‘महाभारत’ में यह कथा जिस रूप में आई, उसके बजाय यह नाटक इस कथा के उस रूप को आधार बनाता है जो वैदिक काल में रहा होगा। ‘महाभारत’ में, और उसके बाद हम जिस भी रूप में इस कथा को देखते हैं, उसकी जड़ें सामन्‍ती मूल्य-संरचना में हैं। वैदिक संस्करण निश्चय ही कुछ भिन्न रहा होगा और उसका परिप्रेक्ष्य आदिम मूल्यबोध से रहा होगा।

इस नाटक में कथा के उसी रूप को पकड़ने का प्रयास किया गया है। इसीलिए यहाँ ‘दुष्यंत’ को ‘दुष्षंत’ कहा गया है जो ‘महाभारत’ तथा वैदिक साहित्य में आता है। यह प्रचलित कथा मूलत: मातृसत्तात्मक समाज से ताल्लुक़ रखती है जहाँ लड़कियों को अपना जीवन साथी चुनने की पूरी छूट है, जैसाकि शकुंतला भी करती है। नाटक में भूख और अकाल की भी चर्चा है जिन्हें वेदों के ही कुछ प्रसंगों के आधार पर पुन:सृजित किया गया है।

भाषा, संवाद-रचना और प्रसंगानुकूल दृश्य-रचना के चलते यह नाटक शकुंतला की जानी-पहचानी कथा को हमारे सामने नए और भावप्रवण रूप में प्रस्तुत करता है; जो मंच के लिए जितना अनुकूल है, साधारण पाठ के लिए भी उतना ही रुचिकर है।

More Information
Language Hindi
Format Hard Back, Paper Back
Publication Year 2020
Edition Year 2020, 1st Ed.
Pages 152p
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publisher Radhakrishna Prakashan
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Editorial Review

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Radhavallabh Tripathi

Author: Radhavallabh Tripathi

राधावल्लभ त्रिपाठी

जन्म : 15 फरवरी, 1949; मध्य प्रदेश के राजगढ़ ज़िले में। शिक्षा : एम.ए., पीएच.डी., डी.लिट्.। सन् 1970 से विश्वविद्यालयों में अध्यापन। शिल्पाकार्न विश्वविद्यालय, बैंकॉक; कोलंबिया विश्वविद्यालय, न्यूयॉर्क में संस्कृत के अतिथि आचार्य। राष्ट्रीय संस्कृत संस्थान में पाँच वर्ष कुलपति (2008-13)। शिमला स्थित भारतीय उच्च अध्ययन संस्थान में फैलो। जर्मनी, इंग्लैंड, जापान, नेपाल, भूटान, आस्ट्रिया, हालैंड, बांग्लादेश, रूस, थाइलैंड आदि देशों की यात्राएँ। प्रकाशन : ‘आदिकवि वाल्मीकि’, ‘संस्कृत कविता की लोकधर्मी परम्परा’, ‘संस्कृत काव्यशास्त्र और काव्य-परम्परा’, ‘नाट्यशास्त्र विश्वकोश’, ‘बहस में स्त्री’, ‘नया साहित्य : नया साहित्यशास्त्र’, ‘भारतीय काव्यशास्त्र की आचार्य-परम्परा’ आदि समीक्षात्मक पुस्तकों सहित हिन्दी में दो उपन्यास और तीन कहानी-संग्रह व अनेक नाटक प्रकाशित; संस्कृत में तीन मौलिक उपन्यास, दो कहानी-संग्रह, तीन पूर्णाकार नाटक तथा एक एकांकी-संग्रह प्रकाशित। ‘सागरिका’, ‘नाट्यम्’ आदि पत्रिकाओं का सम्पादन। पुरस्कार : ‘साहित्य अकादेमी पुरस्कार’, ‘शंकर पुरस्कार’, कनाडा का ‘रामकृष्ण संस्कृति सम्मान’, यू.जी.सी. का ‘वेदव्यास सम्मान’, महाराष्ट्र शासन का ‘जीवनव्रती संस्कृत सम्मान’ आदि।

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