Kaju Ki Roti

Edition: 2023, Ed. 1st
Language: Hindi
Publisher: Rajkamal Prakashan
20% Off
Out of stock
SKU
Kaju Ki Roti

पंकज चतुर्वेदी की कविता उन पाठकों के दिल के बहुत क़रीब रहती है, जो समझते हैं कि कविता का सबसे ज़रूरी काम भाषा में अर्थ के जनसंहार को विफल करना है। सभी तरह की आततायी सत्ताएँ इस जनसंहार की हिस्सेदार होती हैं। भाषा को जुमलेबाज़ी में घसीटकर लोकतंत्र को भीड़तंत्र में बदला जा सकता है। विनाश को विकास की तरह दिखाया जा सकता है। अन्याय को न्याय की आभा दी जा सकती है। जनसंहार को राष्ट्रीय गौरव के अभिसार में बदला जा सकता है। झूठ को सच बनाया जा सकता है। कविता इस प्रपंच को उजागर कर शब्दों के सच्चे अर्थों का पुनर्जन्म घटित करती है।

रघुवीर सहाय की कविता ने इस ज़िम्मेदारी को बख़ूबी निभाया। उन्होंने देखा था कि शासक जब 'लोकतंत्र का अन्तिम क्षण है' कहकर हँसते हैं, तब वे लोकतंत्र के अर्थ का ही अन्त नहीं करते, हँसी को भी हत्या के उल्लास में बदल देते हैं। पंकज की कविता देख रही है कि नेता जब कहता है 'देश के लिए जी रहा हूँ', तब उसकी मुराद यह होती है कि उसके जीने में ही देश का जीना समझा जाए!

पंकज की कविता में दर्ज है कि आज असहमति को दबोचती हुई मुस्कान हिंसा के नहीं, मेहरबानी के रूप में प्रकट हो रही है। यह विफल लोकतंत्र का नहीं, फ़ासीवाद के उत्थान का लक्षण है।

रघुवीर सहाय से पंकज चतुर्वेदी तक हिन्दी कविता की यात्रा लोकतंत्र के अन्तिम क्षण से फ़ासीवाद के पहले क्षण तक की यात्रा है। खुली सड़क पर पूर्व-घोषित हत्या के कातर तमाशबीन अब सिर्फ़ तमाशा नहीं देखते, हत्यारों की जय-जयकार भी करते हैं।

भाषा के हर पाखंड को उजागर करने की ज़िद में पंकज की कविता, कविता जैसी न दिखने की हद तक कविता के आडम्बरों से परहेज़ करती है। दुस्साहस सरीखा यह साहस उनकी कविता को हमारे समय की सच्ची और पारदर्शी कविता होने की क़ुव्वत अदा करता है।

—आशुतोष कुमार

More Information
Language Hindi
Binding Paper Back
Publication Year 2023
Edition Year 2023, Ed. 1st
Pages 168p
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publisher Rajkamal Prakashan
Dimensions 22 X 14 X 1.5
Write Your Own Review
You're reviewing:Kaju Ki Roti
Your Rating
Pankaj Chaturvedi

Author: Pankaj Chaturvedi

पंकज चतुर्वेदी

पंकज चतुर्वेदी का जन्म 24 अगस्त, 1971 को उत्तर प्रदेश के इटावा शहर में हुआ। इटावा और कानपुर के गाँवों-क़स्बों में आरम्भिक शिक्षा प्राप्त करने के बाद लखनऊ विश्वविद्यालय से ग्रेजुएट हुए। आगे की पढ़ाई और शोधकार्य जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय, नई दिल्ली से किया।

इनकी प्रकाशित कृतियाँ हैं—‘एक सम्पूर्णता के लिए’, ‘एक ही चेहरा’, ‘रक्तचाप और अन्य कविताएँ’ (कविता-संग्रह); ‘आत्मकथा की संस्कृति’, ‘निराशा में भी सामर्थ्य’, ‘रघुवीर सहाय’ (साहित्य अकादेमी, नई दिल्ली के लिए विनिबन्ध), ‘जीने का उदात्त आशय’ (आलोचना); भर्तृहरि के इक्यावन श्लोकों की हिन्दी अनुरचनाएँ। इन्होंने मंगलेश डबराल की ‘प्रतिनिधि कविताएँ’ का सम्पादन भी किया है।

इन्हें कविता के लिए वर्ष 1994 के ‘भारतभूषण अग्रवाल स्मृति पुरस्कार’ और आलोचना के लिए 2003 के ‘देवीशंकर अवस्थी सम्मान’ एवं उ.प्र. हिन्दी संस्थान के ‘रामचन्द्र शुक्ल पुरस्कार’ से सम्मानित किया गया है। 2019 में इन्हें ‘रज़ा फ़ेलोशिप’ प्रदान की गई है।

फ़ि‍लहाल विक्रमाजीत सिंह सनातन धर्म कॉलेज (कानपुर) में हिन्दी विभाग के अध्यक्ष हैं।

सम्पर्क : pankajgauri2013@gmail.com

Read More
Books by this Author
New Releases
Back to Top