Kabeer Granthawali-Text Book

₹120.00
ISBN:9789352218981
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9789352218981
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प्रस्तुत संस्करण ‘कबीर ग्रंथावली’ में कबीरदास के जो दोहे और पद सम्मिलित किए गए हैं, उन्हें आजकल की प्रचलित परिपाटी के अनुसार खराद पर चढ़ाकर सुडौल, सुन्दर और पिंगल के नियमों से शुद्ध बनाने का कोई उद्योग नहीं किया गया, वरन् उद्देश्य यही रहा है कि हस्तलिखित प्रतियों या ग्रन्थसाहब में जो पाठ मिलता है, वही ज्यों-का-त्यों प्रकाशित कर दिया जाए।

कबीरदास के पूर्व के किसी भक्त की वाणी नहीं मिलती। हिन्दी साहित्य के इतिहास में वीरगाथा काल की समाप्ति पर मध्यकाल का आरम्भ कबीरदास जी से होता है, अतएव इस काल के वे आदिकवि हैं। उस समय भाषा का रूप परिमार्जित और संस्कृत नहीं हुआ था। कबीरदास स्वयं पढ़े-लिखे नहीं थे। उन्होंने जो कुछ कहा है, वह अपनी प्रतिभा तथा भावुकता के वशीभूत होकर कहा है। उनमें कवित्व उतना नहीं था जितनी भक्ति और भावुकता थी। उनकी अटपट वाणी हृदय में चुभनेवाली है। अतएव उसे ज्यों का त्यों प्रकाशित कर देना ही उचित जान पड़ा और यही किया भी गया है।

आशा है, पुस्तक विद्यार्थियों, शोधार्थियों तथा पाठकों का मार्गदर्शन करने में सहायक सिद्ध होगी।

More Information
Language Hindi
Format Hard Back, Paper Back
Publication Year 2010
Edition Year 2019, Ed. 7th
Pages 304p
Price ₹120.00
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publisher Lokbharti Prakashan
Dimensions 21 X 13.5 X 1.5
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Shyam Sundar Das

Author: Shyam Sundar Das

श्यामसुंदर दास

जन्म : सन् 1875 ई.; काशी में।

शिक्षा : 1897 ई. में बी.ए. पास किया था।

सन् 1899 ई. में हिन्दू स्कूल में कुछ दिनों तक अध्यापक थे। उसके बाद लखनऊ के कालीचरण स्कूल में बहुत दिनों तक हेडमास्टर रहे। सन् 1921 ई. में काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग के अध्यक्ष पद पर नियुक्त हुए।

प्रारम्भ से ही हिन्दी के प्रति आपकी अनन्य निष्ठा थी। नागरीप्रचारिणी सभा की स्थापना
(16 जुलाई, 1893 ई.) आपने विद्यार्थी-काल में ही अपने डॉ. सहयोगियों रामनारायण मिश्र और ठाकुर शिवकुमार सिंह की सहायता से की थी। काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में आने के पूर्व आपने हिन्दी-साहित्य की सर्वतोमुखी समृद्धि के लिए न्यायालयों में ‘हिन्दी-प्रवेश का आन्दोलन’ (1900 ई.); ‘हस्तलिखित ग्रन्थों की खोज’ (1899 ई.); ‘हिन्दी शब्द सागर' का सम्पादन (1907 ई.) आर्य भाषा पुस्तकालय की स्थापना (1903 ई.), ‘सरस्वती' पत्रिका का सम्पादन (1900 ई.) तथा शिक्षा-स्तर के अनुरूप पाठ्य-पुस्तकों का निर्माण-कार्य आरम्भ कर दिया था। आप आजीवन एक गति में साहित्य-सेवा में रत रहे।

प्रमुख कृतियाँ : ‘नागरी वर्णमाला’; ‘हिन्दी हस्तलिखित ग्रन्थों का वार्षिक खोज विवरण’; ‘हिन्दी हस्तलिखित ग्रन्थों की खोज का प्रथम त्रैवार्षिक विवरण’; ‘हिन्दी कोविद रत्नमाला' भाग 1, 2; ‘साहित्यालोचन'; ‘भाषा विज्ञान'; ‘हिन्दी भाषा का विकास'; ‘हस्तलिखित हिन्दी ग्रन्थों का संक्षिप्त विवरण'; ‘गद्य कुसुमावली'; ‘भारतेन्दु हरिश्चन्द्र'; ‘हिन्दी भाषा और साहित्य'; ‘गोस्वामी तुलसीदास’; ‘रूपक रहस्य'; ‘भाषा रहस्य’ भाग-1; ‘हिन्दी गद्य के निर्माता’ भाग 1, 2; ‘मेरी आत्म कहानी'।

निधन : सन् 1945 ई. में।

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