Jati : Badalte Pariprekshya

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Jati : Badalte Pariprekshya
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आज के दौर में जाति की बात करने का क्या औचित्य है? क्या चुनावी राजनीति के अलावा जाति का कोई मतलब रह गया है? इसमें क्या बदला है और क्या बचा हुआ है? क्या जाति आधारित कोटा और आरक्षण से समाज में दरारें चौड़ी हुई हैं या इससे दरार को पाटने में मदद मिली है? आधुनिक समय में श्रम बाजारों में, सामाजिक जिन्दगी में, और लोकप्रिय संस्कृति में जाति कैसे काम करती है?

यह छोटी सी किताब जाति की समकालीन अभिव्यक्तियों के साथ-साथ सामाजिक विज्ञान लेखन और लोकप्रिय चर्चा में जाति पर बदलते दृष्टिकोण का एक आकर्षक विवरण पेश करती है। यह भारत में जाति की वास्तविकता से सम्बन्धित कई विषयों और मुद्दों को शामिल करती है- पारंपरिक धारणाएँ, सत्ता की राजनीति में एक संवैधानिक तत्व, रोजमर्रा की जिन्दगी में अवमानना और तिरस्कार, जाति की अभिव्यक्ति और ‘नीचे से’ आन्दोलनों द्वारा और ‘ऊपर से’ नीतियों द्वारा इसका विरोध। भारतीय सामाजिक जीवन के इस सर्वव्यापी पहलू में रुचि रखनेवाले विद्वानों, छात्रों, कार्यकर्ताओं, नीति निर्माताओं और सामान्य पाठकों के लिए यह सुगम और विचारोत्तेजक पुस्तक काफी पठनीय है। 

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Language Hindi
Format Paper Back
Publication Year 2024
Edition Year 2024, Ed. 1st
Pages 144p
Translator Jitendra Kumar
Editor Not Selected
Publisher Rajkamal Prakashan
Dimensions 20 X 13 X 1
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Surinder Singh Jodhka

Author: Surinder Singh Jodhka

सुरिन्दर सिंह जोधका

सुरिन्दर सिंह जोधका सामाजिक अध्ययन केन्द्र, जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय, नई दिल्ली में समाजशास्त्र के प्रोफेसर हैं। उनकी प्रमुख पुस्तकें हैं—‘द ऑक्सफ़ोर्ड हैंडबुक ऑफ कास्ट’ (ज्यूल्स नॉडेट के साथ सह-सम्पादित), ‘द इंडियन विलेज : रूरल लाइव्स इन द 21 सेंचुरी', ‘एग्रेरियन चेंजेज़ इन इंडिया’ (सं.), ‘द इंडियन मिडिल क्लास’ (असीम प्रकाश के साथ सह-लेखन), ‘कास्ट इन कंटेम्पररी इंडिया’ आदि।

उन्हें भारतीय सामाजिक विज्ञान अनुसंधान परिषद (ICSSR) के ‘अमर्त्य सेन सम्मान’ से सम्मानित किया जा चुका है।

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