Jamuni

Author: Mithileshwar
Edition: 2024, Ed. 3rd
Language: Hindi
Publisher: Rajkamal Prakashan
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Jamuni
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मिथिलेश्वर ग्रामीण परिवेश के सशक्त कथाकार हैं। उनकी लम्बी कहानी ‘जमुनी’ को कृषक-जीवन की महागाथा कहा जा सकता है, जिसमें एक सामान्य भारतीय कृषक परिवार के प्रेम-घृणा, आस्था-विश्वास, आशा-निराशा, हर्ष-विषाद, सम्पत्ति-विपत्ति और उत्थान-पतन का मार्मिक एवं सजीव चित्र प्रस्तुत किया गया है...। शिल्प का रचाव निश्चय ही कहानी को महत्त्वपूर्ण बना देता है, किन्तु कहीं-कहीं अनायास सादगी ही शिल्प का शृंगार बन जाती है। प्रेमचन्द का कथाशिल्प ऐसा ही था। वर्तमान कथाकारों में मिथिलेश्वर का कथाशिल्प भी इसी प्रकार का है।’’

—डॉ. राकेश गुप्त एवं डॉ. ऋषिकुमार चतुर्वेदी ‘हिन्दी कहानी 1991-95’, खंड-2 का भूमिकांश

शीर्षक कथा ‘जमुनी’ एक लम्बी कहानी है जिसमें एक कृषक परिवार का संघर्ष जीवन्त हो उठता है और जहाँ अपनी भूख-प्यास और नींद-आराम को दरकिनार करते हुए हर एक की चिन्ता बीमार भैंस को मृत्यु के मुख में जाने से बचाने की है, क्योंकि वह भैंस ही उनकी सुख-समृद्धि का केन्द्र है।

‘जमुनी’ के अतिरिक्त इस संग्रह की अन्य कहानियाँ भी जीवन और जगत के जरूरी सवालों के जवाब तलाशती अमिट प्रभाव क़ायम करनेवाली कहानियाँ हैं। निःसन्देह, यह कहानी-संग्रह समर्थ कथाशिल्पी मिथिलेश्वर के प्रौढ़ कथा-लेखन की सार्थक यात्रा का द्योतक है। ‘बाबूजी’ के कथाकार ने अपने लेखकीय नैरन्तैर्य और श्रेष्ठ कथा-लेखन के क्षेत्र में अपनी विशिष्ट मौजूदगी का एहसास कराते हुए हिन्दी कथा-जगत को और अधिक ऊर्जस्वित और विकसित किया है...।

More Information
Language Hindi
Binding Hard Back, Paper Back
Publication Year 2001
Edition Year 2024, Ed. 3rd
Pages 168P
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publisher Rajkamal Prakashan
Dimensions 22 X 14 X 1.5
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Mithileshwar

Author: Mithileshwar

मिथिलेश्वर

जन्म : 31 दिसम्बर, 1950; बैसाडीह, भोजपुर (बिहार)।

शिक्षा : एम.ए., पीएच.डी. (हिन्दी साहित्य)।

प्रमुख कृतियाँ : ‘बाबूजी’, ‘बंद रास्तों के बीच’, ‘दूसरा महाभारत’, ‘मेघना का निर्णय’, ‘तिरिया जनम’, ‘हरिहर काका’, ‘एक में अनेक’, ‘एक थे प्रो. बी. लाल’, ‘भोर होने से पहले’, ‘चल ख़ुसरो घर आपने’, ‘जमुनी’ तथा ‘रैन भयी चहुँ देस’, ‘प्रतिनिधि कहानियाँ’, ‘मिथिलेश्वर की सम्पूर्ण कहानियाँ’—तीन खंडों में (कहानी-संग्रह); ‘झुनिया’, ‘युद्धस्थल’, ‘प्रेम न बाड़ी ऊपजै’, ‘यह अन्त नहीं’, ‘सुरंग में सुबह’, ‘माटी कहे कुम्हार से’, ‘तेरा संगी कोई नहीं’ तथा ‘संत न बाँधे गाँठड़ी’ (उपन्‍यास); ‘पानी बीच मीन पियासी’, ‘कहाँ तक कहें युगों की बात’, ‘जाग चेत कुछ करौ उपाई’ (आत्‍मकथा); ‘भोजपुरी लोककथा’, ‘भोजपुरी की 51 लोककथाओं की पुनर्रचना’ (लोक साहित्य); ‘साहित्य की सामयिकता’, ‘साहित्य, चिन्‍तन और सृजन’ (विचार साहित्य); ‘उस रात की बात’, ‘गाँव के लोग’, ‘एक था पंकज’ (नवसाक्षर एवं बालसाहित्य); 'मित्र' अनियतकालीन साहित्यिक पत्रिका (सम्‍पादन)।

पुरस्कार : ‘अखिल भारतीय मुक्तिबोध पुरस्कार’, ‘सोवियत लैंड नेहरू पुरस्कार’, ‘यशपाल पुरस्कार’, ‘अमृत पुरस्कार’, ‘अखिल भारतीय वीर सिंह देव पुरस्कार’ तथा ‘श्रीलाल शुक्ल इफको स्मृति सम्मान’।

सेवानिवृत्त प्रोफ़ेसर, हिन्दी विभाग, वीरकुँवर सिंह विश्वविद्यालय, आरा।

सम्पर्क : महराजा हाता, आरा—802301 (बिहार)।

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