Jahan Sab Shahar Nahi Hota

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Jahan Sab Shahar Nahi Hota

जहाँ सब शहर नहीं होतासंकलन में श्रीप्रकाश शुक्ल अपनी प्रौढ़ रचनाओं के साथ उपस्थित हैं जिसमें सन्दर्भ, संवाद और सवाल एक साथ मिलते हैं। यहाँ परिवर्तन के तर्क व स्थितियों की मार्मिकता दोनों मौजूद हैं जिसमें वे एक स्थिति (सिचुएशन) में होकर दूसरे को रच रहे होते हैं। इसका परिणाम ही है कि उनमें संवेदनात्मक स्थितियों व मिथकीय सन्दर्भों के साथ व्यक्तिगत स्पेस, इतिहासबोध, समयगत व सामयिक बोध तथा मनोवैज्ञानिक व दार्शनिक सन्दर्भ एक साथ मिलते हैं। यहाँ शहर महज़ एक शहर नहीं है। यह इतिहास भी है और भूगोल भी। यह स्मृति भी और यथार्थ भी। यह स्थिति भी है और परिवर्तन भी। यहाँ एक शहर भीतर है तो एक बाहर। कहीं-कहीं एक शहर के भीतर कई-कई शहर! कहीं यह अपने वजूद का पैमाना भी है तो कहीं धारा के बीच भी अपनी धार को बनाए रखने की बेचैनी (फ़र्क़)। कहीं शहर के बरअक्स, अवशिष्ट जगहों की तलाश है तो कहीं गहरा क्षयबोध।

इस रूप में श्रीप्रकाश की कविताओं में चीज़ों को देखने का एक नया अन्दाज़ है। कहीं यह समयबोधकविता में अपनी दुनिया की जितनी भी चीज़ें देखी गई हैं/सामने से नहीं/पीछे से देखी हुई हैंजैसी पंक्तियों के रूप में मिलता है, तो कहीं पत्नी के प्रेम जैसे नितान्त नाजुक प्रसंगों के बीच भी अपने वजूद को अनदेखा नहीं किए जाने की बेचैनी से भी जुड़ता है (फ़र्क़)। कहीं पानी व जल के फ़र्क़ को पकड़ा गया है (मकर संक्रान्ति), तो कहीं एक बूढ़े की उदासी को जीवन्त सन्दर्भों में उतारा गया है (भाग्य विधाता)। कहीं रूढ़ियों पर प्रहार है (राजयोग) तो कहीं पारम्परिक रूप से गंगाजल चढ़ाने के दृश्य को श्रमजल से जोड़कर देखा गया है (काँवरिए)। कहीं स्त्री-सन्दर्भ से पत्नी के मोद के बीच जैसे/ठेहुँन का दर्दजैसी पंक्तियाँ हैं (पूजा) तो कहीं पिता के आर्थिक अभाव के कारण बेटियों के लगातार झंखार होते जाने की करुण कथा भी है (तीन बहनें)।

कुल मिलाकर श्रीप्रकाश की कविताएँ मनुष्य की छीजती मनुष्यता की बेचैनी से रची गईं समग्रताबोध की कविताएँ हैं। यहाँ आत्मीय संस्पर्श की गूँज के साथ हर वस्तु का एक तटस्थ

चित्रण मिलता है। यह कवि को न केवल अर्थवान बनाता है, बल्कि प्रासंगिक भी।

More Information
Language Hindi
Format Hard Back
Edition Year 1998
Pages 176p
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publisher Lokbharti Prakashan
Dimensions 22 X 14 X 1.5
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Shriprakash Shukla

Author: Shriprakash Shukla

श्रीप्रकाश शुक्ल

श्रीप्रकाश शुक्ल का जन्म 18 मई, 1965 को सोनभद्र, उत्तर प्रदेश के बरवाँ गाँव में हुआ।

उन्होंने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से एम.ए. (हिन्दी) की डिग्री ली। पी-एच.डी. भी वहीं से किया।

उनकी प्रकाशित कृतियाँ हैं—अपनी तरह के लोग, जहाँ सब शहर नहीं होता, बोली बात, रेत में आकृतियाँ, ओरहन और अन्य कविताएँ, कवि ने कहा, क्षीरसागर में नींद (कविता-संग्रह); साठोत्तरी हिन्दी कविता में लोक सौन्दर्य, नामवर की धरती, हजारीप्रसाद द्विवेदी : एक जागतिक आचार्य, महामारी और कविता (आलोचना)। उनकी कविताओं के अनुवाद अंग्रेजी, पंजाबी और मराठी में हुए हैं। साहित्यिक ‘परिचय’ पत्रिका का सम्पादन।

उन्हें वर्तमान साहित्य का ‘मलखानसिंह सिसोदिया पुरस्कार’, उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान का ‘नरेश मेहता कविता पुरस्कार’, ‘विजयदेव नारायण साही कविता पुरस्कार’ और ‘शमशेर सम्मान’ से सम्मानित किया जा चुका है।

सम्प्रति : वर्तमान में बी.एच.यू. के हिन्दी विभाग में प्रोफेसर के पद पर कार्यरत हैं तथा भोजपुरी अध्ययन केन्द्र, बी.एच.यू. के समन्वयक (Co-ordinator) हैं।

सम्पर्क : सुमेधस, 909, काशीपुरम कॉलोनी, सीरगोवर्धन, वाराणसी- 221011

ईमेल : shriprakashshuklabhu@gmail.com

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