Itihas Ka Sparshbodh : Ek Aatmakatha

Translator: Yugank Dhir
As low as ₹722.50 Regular Price ₹850.00
You Save 15%
In stock
Only %1 left
SKU
Itihas Ka Sparshbodh : Ek Aatmakatha
- +

‘‘हमारा परिवार बीसवीं सदी के आरम्भिक वर्षों से ही राजनीति से जुड़ा रहा है। पिताजी 1915 में गांधी जी के सम्पर्क में आए और स्वतंत्रता के संघर्ष में उन्होंने केन्द्रीय भूमिका निभाई। पिताजी के इस जुड़ाव के कारण परिवार में राजनीतिक जागरूकता का वातावरण था।’’ सुविख्यात बिड़ला परिवार के एक विशिष्ट सदस्य द्वारा लिखित यह आत्मकथा महात्मा गांधी, डॉ. राजेन्द्र प्रसाद, मदन मोहन मालवीय, जयप्रकाश नारायण, मोरारजी देसाई और बिधान चन्द्र रॉय जैसे दिग्गज राष्ट्रीय नेताओं के साथ परिवार के घनिष्ठ सम्बन्धों की अन्तरंग झलक प्रस्तुत करती है।

पाठकों को बीसवीं सदी के भारत के भाग्य-निर्माताओं के व्यक्तित्वों के अन्तरंग पहलुओं से साक्षात्कार का अवसर मिलता है—एक ऐसे व्यक्ति की कलम के माध्यम से, जिसने इन सभी व्यक्तित्वों को बहुत निकट से और इस सदी की अधिकांश महत्त्वपूर्ण घटनाओं को मंच के पीछे से देखा। 1918 में, प्रथम विश्वयुद्ध के बाद शान्ति-सन्धि के ऐतिहासिक दिन, घनश्यामदास बिड़ला के परिवार में जन्मे कृष्ण कुमार बिड़ला को एक ऐसी विरासत प्राप्त हुई जिसमें धन-सम्पदा के सृजन, परोपकारिता और राजनीतिक नेतृत्व को राष्ट्र-निर्माण के एक अंग के रूप में देखा जाता था, जिसमें आध्यात्मिक शक्ति और नैतिक मूल्य व्यक्तिगत योग्यता का हिस्सा थे। के.के. बिड़ला ने कोलकाता के राधाकृष्ण मन्दिर के साथ-साथ ऐसे अनेक संस्थानों की स्थापना की जिन्होंने भारतीय समाज के सांस्कृतिक सूत्रों को और अधिक सुदृढ़ और समृद्ध किया है। उन्होंने बिड़ला प्रौद्योगिकी एवं विज्ञान संस्थान (बिट्स), पिलानी का विस्तार करते हुए दुबई और गोवा में भी संस्थान के कैम्पसों की स्थापना की, और एक अन्य नया कैम्पस शीघ्र ही हैदराबाद में आरम्भ होने जा रहा है।

‘इतिहास का स्पर्शबोध’ बहुत सरल भाषा और शैली में और पारदर्शी ईमानदारी के साथ राष्ट्रीय जीवन के एक महत्त्वपूर्ण युग को पुनर्जीवित करती है। समय के साथ बदलते सामाजिक चलनों, निगमीय प्रशासन के सिद्धान्तों, अटूट पारिवारिक मूल्यों और जीवन के उतार-चढ़ावों के बीच व्यक्तिगत जीवट की लोमहर्षक गाथा इस पुस्तक के अध्ययन को एक सम्मोहन भरा अनुभव बना देती है।

More Information
Language Hindi
Format Hard Back
Publication Year 2010
Edition Year 2010, Ed. 1st
Pages 652p
Translator Yugank Dhir
Editor Not Selected
Publisher Rajkamal Prakashan
Dimensions 25 X 16 X 4
Write Your Own Review
You're reviewing:Itihas Ka Sparshbodh : Ek Aatmakatha
Your Rating
Krishna Kumar Birla

Author: Krishna Kumar Birla

कृष्ण कुमार बिड़ला

जन्म : 11 नवम्बर, 1918

स्वर्गीय कृष्ण कुमार बिड़ला स्वातंत्र्योत्तर भारत के शीर्ष उद्योगपतियों में शामिल थे और एक दर्जन से भी अधिक प्रतिष्ठित कम्पनियों के चेयरमैन थे। उनकी व्यावसायिक गतिविधियाँ वस्त्र-उद्योग से लेकर चीनी उद्योग तक, इंजीनियरिंग से लेकर जहाज़रानी तक और उर्वरकों से लेकर सूचना प्रौद्योगिकी तक फैली हुई थीं। वे एच.टी. मीडिया के भी मालिक थे, जिसके द्वारा प्रकाशित ‘हिन्दुस्तान टाइम्स’ उत्तर भारत में सर्वाधिक प्रसार-संख्या वाला अंग्रेज़ी दैनिक है, और जिसके हिन्दी ‘दैनिक हिन्दुस्तान’ और मासिक पत्रिका ‘कादम्बिनी’ को हिन्दी पाठक-वर्ग में अत्यन्त प्रतिष्ठित स्थान प्राप्त है।

के.के. बिड़ला 1984 से लेकर 2002 तक लगातार तीन कार्यकालों तक राज्यसभा के सदस्य रहे और अप्रतिम दायित्वबोध के साथ देश के एक सक्रिय सांसद की भूमिका निभाते रहे। वे राष्ट्रीय एकीकरण परिषद, केन्द्रीय उद्योग सलाहकार समिति और व्यापार मंडल (बोर्ड ऑफ़ ट्रेड) समेत अनेक महत्त्वपूर्ण निकायों के सदस्य रहे। वे स्टेट बैंक ऑफ़ इंडिया और आईसीआईसीआई जैसी महत्त्वपूर्ण संस्थाओं के केन्द्रीय बोर्ड में शामिल रहने के साथ-साथ एफ़आईसीसीआई के अध्यक्ष पद पर भी रहे।

11 नवम्बर, 1918 को पिलानी, राजस्थान में जन्मे के.के. बिड़ला ने 1939 में लाहौर विश्वविद्यालय से स्नातक (ऑनर्स) की डिग्री प्राप्त की। 1997 में पांडिचेरी विश्वविद्यालय ने उन्हें डॉक्टर ऑफ़ लेटर्स (ऑनरिस कॉजा) की उपाधि से सम्मानित किया। वे बिड़ला प्रौद्योगिकी एवं विज्ञान संस्थान (बिट्स), पिलानी के चेयरमैन/कुलपति थे। उन्होंने साहित्य, विज्ञान सम्बन्धी शोध, भारतीय दर्शन, कला एवं संस्कृति, और खेलकूद के क्षेत्र में उत्कृष्ट उपलब्धियों को पुरस्कृत करने के लिए के.के. बिड़ला फ़ाउंडेशन और वैज्ञानिक, ऐतिहासिक और सांस्कृतिक क्षेत्रों में शोध को प्रोत्साहन देने के लिए के.के. बिड़ला अकादमी की स्थापना की। अपने निधन से पूर्व वे दिल्ली में एक संग्रहालय एवं अनुसन्धान केन्द्र की स्थापना के प्रयास में जुटे हुए थे।

एक व्यवसायी होने के बावजूद स्वर्गीय कृष्ण कुमार बिड़ला हृदय से एक भावुक और कला-प्रेमी व्यक्ति थे। इस आत्मकथा से पहले उन्होंने दो अन्य पुस्तकों ‘इन्दिरा गांधी : रेमिनिसेंसिज’ और ‘पार्टनर इन प्रोग्रेस’ का भी सृजन किया था। 31 जुलाई, 2008 को अपनी पत्नी के अकस्मात् निधन के बाद वे उनके वियोग को महीना-भर भी सहन नहीं कर पाए, और अपनी वैविध्यपूर्ण विरासत की बागडोर अपनी तीन बेटियों—नन्दिनी, ज्योत्स्ना और शोभना—के हाथों में थमाते हुए उन्होंने 30 अगस्त, 2008 को स्वयं भी इस संसार से विदा ले ली।

Read More
Books by this Author
Back to Top