Is Bhanwar Ke Paar

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Is Bhanwar Ke Paar

अगर काव्य को जीवन के सामासिक एवं वैयक्तिक सरोकारों की पहचान का एक बिम्बात्मक माध्यम माना जाए तो शशि शेखर के इस संग्रह की कविताएँ उन सरोकारों को अनुभूति के कई स्तरों पर टटोलती हैं। एक स्तर पर मनुष्य के निजी अनुभवों का विराट एवं अत्यन्त ही दुरूह संसार है तो दूसरे स्तर पर समाज के सामूहिक जीवन का उल्लास एवं उसकी विवशताएँ हैं।

ये कविताएँ इन स्तरों के अन्तर्सम्बन्धों की पहचान तो करती ही हैं, उनकी पुनर्व्याख्या के माध्यम से वर्तमान के अपसंस्कारों की ओर हमारा ध्यान भी खींचती हैं। समसामयिक जीवन का सामाजिक, सैद्धान्तिक एवं वैचारिक अनुभव ख़ूब मुखर होकर इन कविताओं में ध्वनित हुआ है। जहाँ वर्तमान राष्ट्रीय परिदृश्य को इतिहास के परिप्रेक्ष्य में जोड़कर देखा गया है, वहीं उस परिदृश्य के तात्कालिक महत्त्व एवं उसकी कुरूप विडम्बनाओं को भी रेखांकित किया गया है, और ऐसा करते समय ये कविताएँ ‘अच्छा’ समझे जाने की चिन्ता से पूरी तरह मुक्त हैं।

अपनी बात बिना लाग–लपेट कहने का आग्रह इन कविताओं की महत्त्वपूर्ण पहचान है। इस आग्रह के कारण ही ये कविताएँ सहसा हमें आईने के सामने खड़ा कर देती हैं। शशि शेखर ने समान सामर्थ्य के साथ काव्य की अनेक विधाओं का प्रयोग किया है। चाहे गीत हों या दोहे, मुक्त छन्द हों या ग़ज़ल, हर पैमाने में उनके अनुभवों का रस ख़ूब पककर छलका है। इस हिसाब से ये कविताएँ पूरे तौर पर हिन्दुस्तानी मिज़ाज की हैं। भाषा और बिम्ब के सन्दर्भ में भी हमारी वैविध्यपूर्ण जीवन–शैली—शहरी और ग्रामीण, खड़ी बोली और उर्दू—के परस्पर रिश्तों की विरासत इन कविताओं में स्पष्ट रूप से मुखरित होती है। सबसे महत्त्वपूर्ण बात यह है कि ये कविताएँ पाठक से सीधे संवाद की अपेक्षा से अनुप्राणित हैं।

More Information
Language Hindi
Format Hard Back
Publication Year 2002
Edition Year 2002, Ed. 1st
Pages 92p
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publisher Radhakrishna Prakashan
Dimensions 22 X 14.5 X 1
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Shashi Shekhar Sharma

Author: Shashi Shekhar Sharma

शशि शेखर शर्मा

बिहार के एक गाँव, पतूत में जन्म एवं प्रारम्भिक शिक्षा-दीक्षा भागलपुर विश्वविद्यालय से अंग्रेज़ी साहित्य में एम.ए.।

वर्ष 1985 में भारतीय प्रशासनिक सेवा के लिए चयनित हुए और बिहार राज्य संवर्ग को आवंटित। तब से कई महत्त्वपूर्ण प्रशासनिक पदों पर कार्य करने के बाद अब सेवानिवृत्‍त।

विद्यार्थी जीवन में रंगकर्म, विशेषकर नुक्कड़ नाटक एवं बिहारी लोकनाट्य से गहरा जुड़ाव। अनेक नाटकों का निर्देशन। कई नाटकों में स्वयं अभिनय का अनुभव।

विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में कहानियाँ, लेख, कविताएँ आदि प्रकाशित होती रही हैं। आकाशवाणी पर नाटकों, गोष्ठियों एवं कवि सम्मेलनों में सक्रिय भागीदारी।

प्रमुख कृतियाँ हैं—इस भँवर के पार’, ‘हरसिंगार के सपने’ (कविता-संग्रह); धर्मशास्‍त्र और जातियों का सच’, ‘प्राचीन भारत के गणितज्ञ एवं खगोलशास्त्री’, ‘प्राचीन भारत के फ़िजीशियन एवं शल्य-चिकित्सक’ (इतिहास); ‘ओ माई गॉड : दि नेचर ऑफ़ डिवाइन फ़ॉल्टलाइन्स’ (धर्म-मीमांसा) आदि।

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