Hindu Paramparaon Ka Rashtriyakaran

As low as ₹445.50 Regular Price ₹495.00
You Save 10%
In stock
Only %1 left
SKU
Hindu Paramparaon Ka Rashtriyakaran
- +

अंग्रेज़ी में आज से उन्नीस साल पहले प्रकाशित यह पुस्तक एक ऐसे ढाँचे की प्रस्तावना करती है जो भारतेन्दु के पारम्परिक और परिवर्तनोन्मुख पहलुओं की एक साथ सुसंगत रूप में व्याख्या कर सके। इस ढाँचे में भारतेन्दु हिन्दुस्तान के उस उदीयमान मध्यवर्ग के नेतृत्वकारी प्रतिनिधि के रूप में सामने आते हैं जो पहले से मौजूद दो मुहावरों के साथ अन्तरक्रिया करते हुए एक तीसरे आधुनिकतावादी मुहावरे को गढ़ रहा था। ये तीन मुहावरे क्या थे, इनकी अन्तरक्रियाओं की क्या पेचीदगियाँ थीं, साम्प्रदायिकता और राष्ट्रवाद के सहविकास में आरम्भिक साम्प्रदायिकता और आरम्भिक राष्ट्रवाद को चिह्नित करनेवाला यह तीसरा मुहावरा किस तरह समावेशन-अपवर्जन की दोहरी प्रक्रिया के बीच हिन्दी भाषा और साहित्य को हिन्दुओं की भाषा और साहित्य के रूप में रच रहा था और इस तरह समेकित रूप से राष्ट्रीय भाषा, साहित्य तथा धर्म की गढ़ंत का ऐतिहासिक किरदार निभा रहा था, किस तरह नई हिन्दू संस्कृति के निर्माण में एक-दूसरे के साथ जुड़ती-भिड़ती तमाम शक्तियों के आपसी सम्बन्धों को भारतेन्दु के विलक्षण व्यक्तित्व और कृतित्व में सबसे मुखर अभिव्यक्ति मिल रही थी—यह किताब इन अन्तस्सम्बन्धित पहलुओं का एक समग्र आकलन है। यहाँ बल एकतरफ़ा फ़ैसले सुनाने के बजाय चीज़ों के ऐतिहासिक प्रकार्य और गतिशास्त्र को समझने पर है। ध्वस्त करने या महिमामंडित करने की जल्दबाज़ी वसुधा डालमिया के लेखन का स्वभाव नहीं है, मामला भारतेन्दु का हो या भारतेन्दु पर विचार करनेवाले विद्वानों का। हिन्दी में इस किताब का आना एकाधिक कारणों से ज़रूरी था। नई सूचनाओं और स्थापनाओं के लिए तो इसे पढ़ा ही जाना चाहिए, साथ ही हर तथ्य को साक्ष्य से पुष्ट करनेवाली शोध-प्रविधि, हर कोण से सवाल उठानेवाली विश्लेषण-विधि और खंडन-मंडन के जेहादी जोश से रहित निर्णय-पद्धति के नमूने के रूप में भी यह पठनीय है।

More Information
Language Hindi
Format Hard Back, Paper Back
Publication Year 2016
Edition Year 2016, Ed 1st
Pages 436p
Translator Sanjeev Kumar
Editor Not Selected
Publisher Rajkamal Prakashan
Write Your Own Review
You're reviewing:Hindu Paramparaon Ka Rashtriyakaran
Your Rating
Vasudha Dalmiya

Author: Vasudha Dalmiya

वसुधा डालमिया


जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय से जर्मन साहित्य में और यूनिवर्सिटी ऑफ़ हाइडेलबर्ग से इंडोलॉजी तथा हिन्दी साहित्य में शोध करने के बाद लम्बे समय तक यूनिवर्सिटी ऑफ़ कैलिफ़ोर्निया, बर्कले में हिन्दी और साउथ एशियन स्टडीज़ की प्रोफ़ेसर रहीं। उसके बाद येल यूनिवर्सिटी में डिपार्टमेंट ऑफ़ रिलीजियस स्टडीज़ के अन्तर्गत चन्द्रिका एंड रंजन टंडन प्रोफ़ेसर ऑफ़ हिन्दू स्टडीज़ के पद पर कार्य किया। ‘दि नेशनलाइज़ेशन ऑफ़ हिन्दू ट्रेडिशंस : भारतेन्दु हरिश्चन्द्र एंड नाइन्टींथ सेंचुरी बनारस', ‘पोएटिक्स, प्लेज़र एंड परफ़ॉर्मेंसेज़ : दि पॉलिटिक्स ऑफ़ मॉडर्न इंडियन थियेटर', ‘हिन्दू पास्ट्स : वीमेन, रिलीजन, हिस्ट्रीज़' उनकी चर्चित पुस्तकें हैं। सम्पादित पुस्तकों की लम्बी फेहरिस्त में से हाल के वर्षों की पुस्तकें हैं : 'रिलीजियस इंटरैक्शंस इन मुग़ल इंडिया', ‘बालाबोधिनी' (हिन्दी में), ‘कैम्ब्रिज कॉम्पैनियन टु मॉडर्न इंडियन कल्चर', ‘हिन्दी मॉडर्निज़्म : रीथिंकिंग अज्ञेय एंड हिज़ टाइम्स' इत्यादि।

Read More
Books by this Author
Back to Top