Hindi Navjagaran Ka Aarthik Chintan

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Hindi Navjagaran Ka Aarthik Chintan
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हिन्दी नवजागरण भारतीय नवजागरण से प्रेरित और प्रभावित होते हुए भी इस दृष्टि से विशेष महत्त्वपूर्ण है कि वह हिन्दी पट्टी के सामाजिक-सांस्कृतिक और राष्ट्रीय जनजागरण का वाहक बना रहा। विशेष रूप से सामाजिक-सांस्कृतिक परिप्रेक्ष्य में ही उसकी विवेचना भी की गई लेकिन पता नहीं क्यों विद्वानों का ध्यान इस वास्तविकता की ओर नहीं गया कि हिन्दी पट्टी में सामाजिक-सांस्कृतिक जागरण के साथ जो स्वातंत्र्य आन्दोलन परवान चढ़े उनके मूल में विद्यमान हिन्दी नवजागरण का आर्थिक चिन्तन उनकी अपरिहार्य प्रेरणा-भूमि है। इस दौर के अधिकांश लेखकों और साहित्यकारों ने राष्ट्रीय और सामाजिक उद्देश्यों के लिए अपने आर्थिक चिन्तन को हथियार की तरह इस्तेमाल किया। इस आर्थिक ​चिन्तन को आत्मसात किए बिना हिन्दी नवजागरण को सम्पूर्णता से नहीं समझा जा सकता।

इस पुस्तक में लेखक ने हिन्दी नवजागरण के आर्थिक चिन्तन के अनुशीलन का प्रयास किया है। इस चिन्तन को आधुनिक युग के आर्थिक परिप्रेक्ष्य से जोड़ने की कोशिश भी की गई है। इस अध्ययन से यह पूरी तरह स्पष्ट है कि उत्तर भारत के स्वातंत्र्य आन्दोलनों और सामाजिक जागरण को औपनिवेशिक शासन द्वारा किए गए भारतीयों के आर्थिक शोषण ने अपने ढंग से प्रेरित और प्रभावित किया। यही कारण है कि तत्कालीन राजनीतिक परिप्रेक्ष्य भी इस आर्थिक चिन्तन से अनिवार्यतः जुड़ा रहा है।

वर्तमान में यह आवश्यक है कि आधुनिक अर्थव्यवस्था को हिन्दी नवजागरणकालीन औपनिवेशिक शोषण के परिप्रेक्ष्य में भी समझा जाए। यह पुस्तक इसी दिशा में पहल करने का एक प्रयास है।

More Information
Language Hindi
Format Paper Back
Publication Year 2023
Edition Year 2023, Ed. 1st
Pages 384p
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publisher Radhakrishna Prakashan
Dimensions 22 X 14.5 X 2.5
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Jay Singh Neerad

Author: Jay Singh Neerad

जयसिंह नीरद

जयसिंह ‘नीरद’ का जन्म 2 जनवरी, 1954 को बुन्देलखंड के जिला जालौन के उमरी गाँव में हुआ। स्नातकोत्तर स्तर तक की शिक्षा दिल्ली में हुई। मेरठ विश्वविद्यालय (अब चरणसिंह विश्वविद्यालय) से ‘दिनकर काव्य में परम्परा और आधुनिकता’ विषय पर पी-एच.डी. की उपाधि प्राप्त की। चालीस वर्षों तक प्रवक्ता, रीडर और आचार्य पदों पर रहे। प्राग के चार्ल्स विश्वविद्यालय में भी अध्यापन किया। कन्हैयालाल मुंशी हिन्दी तथा भाषा विज्ञान विद्यापीठ, डॉ. भीमराव अम्बेडकर विश्वविद्यालय से निदेशक पद से सेवानिवृत्त हुए। उनकी प्रकाशित कृतियाँ हैं—नरक के सींग (उपन्यास); मैं तुम्हारा आईना, ढलान पर चढ़ता सूरज, आग : एक सम्भावना, गीली मिट्टी का एक लौंदा, कहना जग को रास न आया, पसरी हुई हथेलियों का शहर (कविता-संग्रह); आधुनिकता के हाशिये में उर्वशी, आचार्य रामचन्द्र शुक्ल, जहाँ मैं खड़ा हूँ, दिनकर के काव्य में परम्परा और आधुनिकता, दिनकर : व्यक्ति और सृजन, सूर-काव्य के विविध आयाम, परम्परा, आधुनिकता और दिनकर, हिन्दी नवजागरण : कुछ जाने-अनजाने सन्दर्भ, हिन्दी नवजागरण का आर्थिक चिन्तन (आलोचना); आँखिन देखी कागद लेखी (विविध)।

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