Hindi Aalochana ka Aalochanatmak Itihas

Author: Amarnath
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Hindi Aalochana ka Aalochanatmak Itihas
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‘हिन्दी आलोचना का आलोचनात्मक इतिहास’ हिन्दी आलोचना का इतिहास है, लेकिन ‘आलोचनात्मक’। इसमें लेखक ने प्रचलित आलोचना की कुछ ऐसी विसंगतियों को भी रेखांकित किया है, जिनकी तरफ आमतौर पर न रचनाकारों का ध्यान जाता है, न आलोचकों का।

उदाहरण के लिए हिन्दी साहित्य के आलोचना-वृत्त से उर्दू साहित्य का बाहर रह जाना; जिसके चलते उर्दू अलग होते-होते सिर्फ एक धर्म से जुड़ी भाषा हो गई और उसका अत्यन्त समृद्ध साहित्य हिन्दुस्तानी मानस के बृहत काव्यबोध से अलग हो गया। कहने की जरूरत नहीं कि आज इसके सामाजिक और राजनीतिक दुष्परिणाम हमारे सामने एक बड़े खतरे की शक्ल में खड़े हैं। सुबुद्ध लेखक ने इस पूरी प्रक्रिया के ऐतिहासिक पक्ष का विवेचन करते हुए यहाँ उर्दू-साहित्य आलोचना को भी अपने इतिहास में जगह दी है।

आधुनिक गद्य साहित्य के साथ ही आलोचना का जन्म हुआ, इस धारणा को चुनौती देते हुए वे यहाँ संस्कृत साहित्य की व्यावहारिक आलोचना को भी आलोचना की सुदीर्घ परम्परा में शामिल करते हैं, और फिर सोपान-दर-सोपान आज तक आते हैं जहाँ मीडिया-समीक्षा भी आलोचना के एक स्वतंत्र आयाम के रूप में पर्याप्त विकसित हो चुकी है।

कुल इक्कीस सोपानों में विभाजित इस आलोचना-इतिहास में लेखक ने अत्यन्त तार्किक ढंग से विधाओं, प्रवृत्तियों, विचारधाराओं, शैलियों आदि के आधार पर बाँटते हुए हिन्दी आलोचना का एक सम्पूर्ण अध्ययन सम्भव किया है। अपने प्रारूप में यह पुस्तक एक सन्दर्भ ग्रंथ भी है और आलोचना को एक नए परिप्रेक्ष्य में देखने का वैचारिक आह्वान भी।

More Information
Language Hindi
Format Hard Back
Publication Year 2022
Edition Year 2022, Ed. 1st
Pages 472p
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publisher Rajkamal Prakashan
Dimensions 25 X 16.5 X 3.5
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Author: Amarnath

डॉ. अमरनाथ

सुधी आलोचक और प्रतिष्ठित भाषाविद् के रूप में ख्यात डॉ. अमरनाथ (वास्तविक नाम डॉ. अमरनाथ शर्मा) का जन्म गोरखपुर जनपद (सम्प्रति महाराजगंज) के रामपुर बुजुर्ग नामक गाँव में सन् 1954 में हुआ। उनकी आरम्भिक शिक्षा गाँव के आस-पास के विद्यालयों में और उच्च शिक्षा गोरखपुर विश्वविद्यालय में हुई, जहाँ से उन्होंने एम.ए. और पीएच.डी. की उपाधियाँ प्राप्त कीं। कविता से अपनी रचना-यात्रा शुरू करनेवाले डॉ. अमरनाथ सामाजिक-आर्थिक विषमता से जुड़े सवालों से लगातार जूझते रहे हैं। उनका विश्वास है कि लेखन में शक्ति सामाजिक संघर्षों से आती है। इसी विश्वास ने उन्हें ‘नारी का मुक्ति संघर्ष’ जैसे साहित्येत्तर विषय पर पुस्तक लिखने को बाध्य किया। ‘आचार्य रामचन्‍द्र शुक्ल और परवर्ती आलोचना’, ‘आचार्य रामचन्‍द्र शुक्ल का काव्य-चिन्‍तन’, ‘समकालीन शोध के आयाम’ (सं.), ‘हिन्‍दी का भूमंडलीकरण’ (सं.), ‘हिन्‍दी भाषा का समाजशास्त्र’ (सं.), ‘सदी के अन्त में हिन्‍दी’ (सं.), ‘बाँसगाँव की विभूतियाँ’ (सं.), ‘हिन्‍दी जाति’ आदि उनकी अन्य प्रकाशित पुस्तकें हैं।

हिन्‍दी एवं अन्य भारतीय भाषाओं के बीच सेतु निर्मित करने एवं भारतीय भाषाओं की प्रतिष्ठा के उद्देश्य से ‘अपनी भाषा’ नामक संस्था के गठन और संचालन में केन्‍द्रीय भूमिका निभानेवाले डॉ. अमरनाथ, संस्था के अध्यक्ष हैं एवं उसकी पत्रिका ‘भाषा विमर्श’ का सन् 2000 से सम्‍पादन कर रहे हैं। वे नवें दशक से ही जनवादी लेखक संघ से जुड़े हैं तथा भारतीय हिन्‍दी परिषद् के उपसभापति रह चुके हैं। हिन्‍दी परिवार को टूटने से बचाने और उसकी बोलियों को हिन्‍दी के साथ संगठित रखने के उद्देश्य से गठित संगठन ‘हिन्‍दी बचाओ मंच’ के संयोजक के रूप में डॉ. अमरनाथ निरन्‍तर संघर्षरत हैं। वे श्री चन्द्रिका शर्मा फूलादेवी स्मृति सेवा ट्रस्ट के मुख्य ट्रस्टी तथा उसकी पत्रिका ‘गाँव’ के भी सम्पादक हैं।

कलकत्ता विश्वविद्यालय के हिन्‍दी विभाग में प्रोफ़ेसर तथा अध्यक्ष-पद से अवकाश ग्रहण करने के बाद वे स्वतंत्र लेखन तथा सामाजिक कार्यों में संलग्न हैं।

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