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Hashiye Ki Zindagi

Author: Nuzhat Hasan
Translator: Vipin Kumar
Edition: 2009, Ed. 1st
Language: Hindi
Publisher: Rajkamal Prakashan
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Hashiye Ki Zindagi

गत डेढ़ दशक से हाशिए के लोगों की ज़िन्दगी भारतीय साहित्य में केन्द्रीय विषय के रूप में प्रमुखता से रेखांकित हो रही है। पश्चिमी साहित्य में तो ऐसा पहले से ही था। व्यावहारिक तौर पर हाशिया और हाशिए के लोग, मुख्यधारा के पोषक, रक्षक और उसकी मान-मर्यादा-संस्कार-सौष्ठव के संरक्षक होते हैं। मुख्यधारा के लोगों की जीवन-पद्धति के लिए वे बड़े उपयोगी, किन्तु बहुत जल्दी त्याज्य हो जाते हैं। उपयोग और उपेक्षा की यह अवधि इनके लिए इतनी वेदनामयी होती है कि मानवता के ढाँचे की बुनियाद हिल जाती है।

नुज़्हत हसन की सात कहानियों का यह संकलन ‘हाशिए की ज़िन्दगी’ समाज की ऐसी ही विडम्बनाओं का जीवन्त लेखा-जोखा है। हिन्दी में हाशिए के लोगों की ज़िन्दगी पर काफ़ी कुछ लिखा-पढ़ा गया है, बावजूद इसके अपने चिन्तन की ताज़गी के कारण ये कहानियाँ भारतीय पाठकों के लिए महत्त्वपूर्ण हैं। मानवीय संवेदनाओं की नाजुक परतें इन कहानियों में स्तब्ध हो उठती हैं। मृतात्माओं की अर्थी को शीश नवानेवाले इस देश में कोढ़ियों की लाश की क्या दुर्गति होती है, थोपे गए कलंक के कारण हत्या कर दिए गए व्यक्ति की सन्तान समाज में किस अपमान का शिकार होती है, एक जल्लाद के मन में अपनी सन्तान के लिए कैसी हलचल होती है...ये कहानियाँ इन तमाम बातों का जायज़ा विस्तार से लेती हैं। साहित्य में ये विषय अछूते नहीं हैं, पर यह कहने में कोई हिचक नहीं होनी चाहिए कि इन विषयों के आयाम एकदम से अछूते हैं। जिस कौशल और संवेदनाओं के जिस धरातल से इन कहानियों में बात उठाई गई है, वह लेखिका की जीवनदृष्टि और सामाजिक दायित्व का स्पष्ट फलक रेखांकित करता है। मूल अंग्रेज़ी से अनूदित इन कहानियों में हमारे आस-पास बिखरे कथा-सूत्र हमारी ही आँखों में उँगलियाँ डाल रही है।

More Information
Language Hindi
Binding Hard Back
Translator Vipin Kumar
Editor Not Selected
Publication Year 2009
Edition Year 2009, Ed. 1st
Pages 104p
Publisher Rajkamal Prakashan
Dimensions 22 X 14.5 X 1
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Nuzhat Hasan

Author: Nuzhat Hasan

नुज़्हत हसन

जन्म : 7 जनवरी, 1966

शिक्षा : मुम्बई एवं दिल्ली में हुई।

दिल्ली विश्वविद्यालय से रसायनशास्त्र में स्नातकोत्तर करते हुए लगातार दो वर्षों तक उन्हें सर्वश्रेष्ठ घोषित किया गया। छात्रजीवन में ही उन्हें कई छात्रवृत्तियाँ एवं पुरस्कार से सम्मानित किया गया। बाद के दिनों में उन्होंने जामिया मिल्लिया इस्लामिया विश्वविद्यालय से जनसंचार माध्यम में स्नातकोत्तर की उपाधि प्राप्त की।

सन् 1991 सत्र में आई.पी.एस. होने के बाद कई वर्षों तक वे आरक्षी सेवा में रहीं। फिर नेशनल बुक ट्रस्ट, इंडिया के निदेशक पद पर कार्य। इन दिनों अतिरिक्त प्रभार आयुक्त पी. एंड एल., दिल्ली पुलिस।

मूलतः लेखन-कार्य अंग्रेज़ी में करती हैं। ‘हाशिए की ज़िन्दगी’ उनकी कहानियों का पहला लेकिन चर्चित संग्रह है।

 

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