Gulmohar Gar Tumhara Naam Hota!

‘गुलमोहर ग़र तुम्हारा नाम होता’ में संकलित कहानियाँ सायास रचे गए किसी भाषिक चमत्कार या शिल्प-सज्जा के बग़ैर जीवन के विराट और दैनिक वृत्तान्त को अलग-अलग कोनों से छूती-पकड़ती हैं। इसलिए बेहद नज़दीक से गुज़री किसी घटना की तरह याद रह जाती हैं।
आधुनिक स्त्री की स्वातंत्र्य-कामना और उसके सामने खड़ी समाज की सामन्ती जड़ताएँ, घरों-परिवारों की जकड़बन्दियाँ, ऊपरी तौर पर सहजीवी दिखनेवाले समाज के अन्तर्विरोध और इन सबके साथ भारतीय मुस्लिम समाज की कुछ प्रामाणिक छवियाँ इन कहानियों की अपनी विशेषताएँ हैं।
सीधी और सरल-सी दिखनेवाली इन कहानियों में कई दृश्य ऐसे भी हैं जो रचनाकार की अत्यन्त सूक्ष्म दृष्टि का पता देते हैं। मसलन ‘हुए तुम दोस्त जिसके’ कहानी की सविता ताई का सिर्फ़ एक स्पर्श-सुख पाने के लिए आते-जाते युवकों से नाला पार कराने का आग्रह करना—जीवन के स्वर्णिम दिन वेश्यावृत्ति में गुज़ारने और मन-भाए एकमात्र प्रेमी को खो देने के बाद अकेली खटतीं सविता ताई जो अब 88 वर्ष की हैं। भीख माँगकर पेट के लिए रोटी जुटातीं और बहाना बनाकर देह के लिए स्पर्श ढूँढ़तीं सविता ताई!
‘एक निकाह ऐसा भी’ में आब्ज़र्वेशन की यह बारीकी एक अलग ही स्तर पर नज़र आती है जहाँ कौन सा मौलवी निकाह पढ़ाएगा, इस सवाल से उठा विवाद वर-वधू पक्ष में ख़ून-ख़राबा तक करा देता है, लेकिन दूल्हा-दुल्हन की आपसी सहमति निकाह को स्थगित नहीं होने देती।
जीवन में जहाँ-तहाँ फैली नाटकीयता को ये कहानियाँ उसी कौशल से पकड़ती हैं जैसे सरल-सपाट साधारणता को। और पठनीयता इनका वह गुण है जो इस पूरे संग्रह को विशेष बनाता है।
Language | Hindi |
---|---|
Format | Hard Back |
Publication Year | 2022 |
Edition Year | 2022, Ed. 1st |
Pages | 160p |
Translator | Not Selected |
Editor | Not Selected |
Publisher | Radhakrishna Prakashan |
Dimensions | 22.5 X 14.5 X 1.5 |
It is a long established fact that a reader will be distracted by the readable content of a page when looking at its layout. The point of using Lorem Ipsum is that it has a more-or-less normal distribution of letters, as opposed to using 'Content here