‘दर्शनशास्त्र : पूर्व और पश्चिम’ शृंखला की इस छठी पुस्तक में यूरोपीय दर्शनशास्त्र के हेगेल और मार्क्स के बाद के इतिहास पर विचार किया गया है। एक प्रकार से यह विवेचन व्यवहार-केंद्रित होने की अपेक्षा विचार-केंद्रित अधिक है। दूसरे शब्दों में, मुख्य ध्यान इस सैद्धांतिक पक्ष पर है कि हेगेल के दर्शनशास्त्र का विकास आगे चलकर किस प्रकार हुआ और उस पर दर्शनशास्त्रियों की क्या प्रतिक्रियाएँ रहीं। मार्क्स के निरूपण के फलस्वरूप हेगेल के दर्शनशास्त्र का कायापलट हो गया था। कुछ और विचार भी सामने आए, जो अनिवार्यतया न तो हेगेल के दर्शनशास्त्र का विस्तार थे और न ही उस पर दर्शनशास्त्रियों की प्रतिक्रिया से उत्पन्न हुए थे। इस तरह के विचारों में परम विचारवाद, यथार्थवाद और इतालवी विचारवाद प्रमुख थे, जिनके प्रस्तोता ब्रैडले, रसल, मूर, क्रोचे, जांतील आदि दर्शनशास्त्री रहे हैं। विलियम जोंस, जॉन डेवी और अन्य दर्शनशास्त्रियों द्वारा प्रस्तुत व्यावहारिकतावाद और बर्गसाँ की विचारधारा इस काल के यूरोपीय दर्शनशास्त्र की अन्य विशेषताएँ हैं। ‘यूरोप में दर्शनशास्त्र : मार्क्स के बाद’ पुस्तक में इन सभी धाराओं और विचार-सरणियों का विस्तारपूर्वक विवेचन किया गया है।
Language | Hindi |
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Binding | Hard Back, Paper Back |
Translator | Sushila Doval |
Editor | Deviprasad Chattopadhyay |
Publication Year | 2022 |
Edition Year | 2022, Ed. 1st |
Pages | 112p |
Publisher | Rajkamal Prakashan |
Dimensions | 21.5 X 14 X 1 |