Ek Ped Chhatnar

Edition: 2017, Ed. 1st
Language: Hindi
Publisher: Rajkamal Prakashan
15% Off
Out of stock
SKU
Ek Ped Chhatnar

दिनेश कुमार शुक्ल की कविता में जीवन और जन के राग का उत्सव है जो आश्चर्य नहीं कि अक्सर छन्द में आता है, नहीं तो छन्द की परिधि पर कहीं दूर-पास मँडराता हुआ। उनकी कविता समय की समूची दुखान्तिकी से परिचित है, उस पूरे अवसाद से भी जिसे समय ने अपनी उपलब्धि के रूप में अर्जित किया है, लेकिन वह उम्मीद की अपनी ज़मीन नहीं छोड़ती। कारण शायद यह है कि जन-जीवन, लोक-अनुभव और भाषा के भीतर निबद्ध जनसामान्य के मन की ताक़त की एक बड़ी पूँजी उनके पास है।

वृहत् विश्व-मानव-समाज की नियति के किसी एक हाथ में सिमट जाने की स्थिति पर व्यंग्यपूर्वक वे अगर कहते हैं कि 'आपकी अनुमति से ही आएँगे/सुख के बौर/आपकी सहमति से ही उठेगी/आँधी दु:ख की', तो स्पष्ट हो जाता है कि अपने समय के सब ख़तरों से वे बख़ूबी वाक़‍िफ़ हैं, लेकिन वे यह भी देख पा रहे हैं कि 'सब कुछ बिखरा हुआ पड़ा है/ध्वस्त पड़ी है सारी निर्मिति/किन्तु बचा है एक कंगूरा/साबुत सीधा सधा हुआ जो/ ताक रहा है आसमान को'। यही वह एक कंगूरा है जो सम्भवत: एक नए आरम्भ का प्रस्थान बिन्दु होगा जहाँ 'मुकुति-का-खिलइ-सहस-दल-कँवल/हँसइ-जीवन-नित-नूतन-धवल/बहइ-सर-सर-सर-झंझा-प्रबल/कि धँसकँइ-बड़ेन-बड़ेन-के-महल'। इन पंक्तियों में न सिर्फ़ एक भिन्न भविष्य के स्वप्न-नृत्य का नाद सुनाई देता है, बल्कि एक नए निर्माण का इरादा भी दिखाई देता है।

दिनेश कुमार शुक्ल की कविताएँ अपनी भाषा-सामर्थ्य के लिए भी विशेष जानी गई हैं। उन्होंने अपना एक अलग रंग रचा है, और छन्द परम्परा को नई कविता में भिन्न कौशल से बरता है जो लोक-स्मृति, जन-गण की पीड़ाओं और मनुष्य की जिजीविषा की विभिन्न मुद्राओं से सम्पन्न इस संग्रह की कविताओं में भी देखा जा सकता है।

More Information
Language Hindi
Binding Hard Back
Publication Year 2017
Edition Year 2017, Ed. 1st
Pages 144P
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publisher Rajkamal Prakashan
Dimensions 22 X 14 X 1.5
Write Your Own Review
You're reviewing:Ek Ped Chhatnar
Your Rating
Dinesh Kumar Shukla

Author: Dinesh Kumar Shukla

दिनेश कुमार शुक्ल

 

जन्म : सन् 1950 में ग्राम—नर्वल, ज़‍िला—कानपुर, उत्‍तर प्रदेश में।

शिक्षा : एम.एस-सी., डी.फ़‍िल. (फ़‍िजि़क्स), इलाहाबाद विश्वविद्यालय।

प्रकाशित प्रमुख कृयिताँ : कविता-संग्रह—‘समयचक्र’ (1997), ‘कभी तो खुलें कपाट’ (1999), ‘नया अनहद’ (2001), ‘कथा कहो कविता’ (2005), ‘ललमुनिया की दुनिया’ (2008), ‘आखर अरथ’ (2009), ‘समुद्र में नदी’ (2011)। सम्पादन—कई समयों में कवि कुँवरनारायण की रचनाओं का संचयन। काव्यानुवाद—‘पाब्लो नेरुदा की कविताएँ’ (1989)। कुछ आलोचनात्मक गद्य, समीक्षाएँ, टिप्पणियाँ और निबन्ध।

सम्मान : 'केदार सम्मान’, 'सीता स्मृति सम्मान’ आदि।

Read More
Books by this Author
New Releases
Back to Top