Dunia Jaisi Maine Dekhi

Edition: 2015, Ed. 1st
Language: Hindi
Publisher: Radhakrishna Prakashan
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Dunia Jaisi Maine Dekhi

डॉ. जगदीश अग्रवाल प्रवासी भारतीय संघ से जुड़े हैं। विदेशों में रह रहे भारतीय के भीतर भी यहाँ के तीज-त्योहार, यहाँ के संस्कार, यहाँ के रीति-रिवाज, यहाँ का मौसम, पेड़-पौधे, पक्षी जीवित रहते हैं। विदेशों में बसने के बाद भी रिश्तों की नफ़ासत, रिश्तों के प्रति प्रतिबद्धताएँ बदल नहीं पातीं! कह सकते हैं कि प्रवासी भारतीय विदेशी सरज़मीं पर भारतीयता को जीवित रखने की कला को विकसित करते हैं। कभी यह भारतीयता कविता के रूप में सामने आती है तो कभी कहानी और उपन्यासों के रूप में।

डॉ. जगदीश अग्रवाल का यह कविता-संग्रह एक प्रवासी भारतीय की ऐसी ही भावनाओं को समर्पित है। इसका प्रकाशन एक तरह से प्रवासी भारतीयों को जोड़ने का भी प्रयास है—ऐसे भारतीयों को, जो किसी न किसी रूप में साहित्यिक गतिविधियों से जुड़े हैं।

 

More Information
Language Hindi
Publication Year 2015
Edition Year 2015, Ed. 1st
Pages 136p
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publisher Radhakrishna Prakashan
Dimensions 22 X 14.5 X 1.5
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Author: Jagdish Prasad Agrawal

जगदीश प्रसाद अग्रवाल

इलाहाबाद में 10 जुलाई, 1934 को मेरा जन्म हुआ। बचपन से मेरे भीतर गणित और हिन्दी साहित्य के प्रति लगाव पैदा हुआ। अग्रवाल विद्यालय इंटर कॉलेज में शिक्षक के रूप में कवि हरिवंश राय बच्चन का सान्निध्य प्राप्त हुआ। अकादमिक रूप से भौतिकशास्त्र, रसायनशास्त्र और गणित मेरे प्रिय विषय रहे। लेकिन इलाहाबाद विश्वविद्याल में दाख़िला लेने के बाद बच्चन, रामकुमार वर्मा, फ़िराक़ गोरखपुरी, धीरेन्द्र वर्मा और रामप्रसाद त्रिपाठी जैसे प्रसिद्ध बौद्धिक प्रतिभाओं ने मेरे भीतर सोए कवि को जगा दिया। कई अर्थों में यहीं से मेरी साहित्यिक यात्रा शुरू हुई। 1952 में बी.एससी. और 54 में एम.एससी. की परीक्षा उत्तीर्ण। 1966 में हल विश्वविद्यालय से सॉलिड स्टेट फ़िजिक्स में पीएच.डी. की उपाधि हासिल की। लन्दन पहुँचने के बाद मेरे भीतर का कवि और ज़्यादा जीवन्त हो गया। कविताओं ने मेरे लिए पूरक का काम किया। जीवन में भौतिक रूप से मैंने वह सब हासिल किया, जिसके सपने कोई भी देखता है, लेकिन मेरी आन्तरिक और मानसिक आवश्यकताओं को पूरा किया कविताओं ने।

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