Divya Kaidkhane Mein

Author: Rakesh Ranjan
Edition: 2017, Ed. 1st
Language: Hindi
Publisher: Radhakrishna Prakashan
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Divya Kaidkhane Mein

पिछले लगभग एक दशक से राकेश रंजन की कविताएँ पढ़ता रहा हूँ। इधर जो युवा हस्ताक्षर उभरकर आए हैं, उनमें वे कई दृष्टियों से मुझे अत्यन्त महत्त्वपूर्ण लगते रहे हैं। उनके पिछले दो संग्रहों की कविताएँ भी मैंने चाव से पढ़ी थीं और अब यह संग्रह 'दिव्य क़ैदख़ाने में' सामने है। सबसे पहले तो इस शीर्षक ने ही मेरा ध्यान आकर्षित किया, जिसमें एक गहरी व्यंजना छिपी हुई है और आज की राजनीतिक स्थिति को देखते हुए इसकी व्यंजकता और बढ़ जाती है।

राकेश रंजन में कुछ बातें ऐसी हैं, जो उन्हें अपनी पीढ़ी से एकदम पृथक् व्यक्तित्व प्रदान करती हैं। यह बात विशेष रूप से उल्लेखनीय है कि इस कवि ने हिन्दी कविता की परम्परा के सकारात्मक तत्त्वों को एक गहरे काव्य-विवेक के साथ न केवल आत्मसात् किया है, बल्कि उसे एक नया आयाम देने का भी प्रयास किया है। इस संग्रह के पाठकों से यह बात अलक्षित नहीं रह जाएगी कि इस कवि का मुख्य स्वर व्यंग्य और विडम्बना से भरा है और शायद यह इस गड्डमड्ड समय को व्यक्त करने का सबसे भरोसेमन्द हथियार भी है। इस ज़मीन पर राकेश रंजन अकेले खड़े हैं और मुझे लगता है कि इस बिन्दु पर वे नागार्जुन की परम्परा के अन्यतम उत्तराधिकारी कहे जा सकते हैं। उन्हीं की भाँति इस कवि ने छन्द और बेछन्द दोनों का पूरी सामर्थ्य के साथ इस्तेमाल किया है। इस संग्रह में मुझे यह देखकर विशेष रूप से प्रसन्नता हुई कि इस युवा कवि ने शायद पहली बार कवित्त-जैसे लगभग छोड़ दिए गए छन्द को एक नई भंगिमा के साथ अपनी कविता में अवतरित किया है। एक और अन्य वैशिष्ट्य भी अलग से रेखांकित किया जा सकता है कि राकेश रंजन गहरे अर्थ में एक राजनीतिक-चेतना-सम्पन्न कवि हैं और यहाँ भी वे नागार्जुन की परम्परा के ही वाहक दिखाई पड़ते हैं।

मुझे विश्वास है कि 'दिव्य क़ैदख़ाने में' की कविताएँ समकालीन हिन्दी कविता के पाठक को एक नई काव्यात्मक उत्तेजना प्रदान करेंगी और किसी हद तक आज की कविता को एक नई दिशा की ओर ले जाती हुई प्रतीत होंगी।

—केदारनाथ सिंह

More Information
Language Hindi
Binding Hard Back
Publication Year 2017
Edition Year 2017, Ed. 1st
Pages 120p
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publisher Radhakrishna Prakashan
Dimensions 22 X 14 X 1
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Rakesh Ranjan

Author: Rakesh Ranjan

राकेश रंजन

जन्म : 10 दिसम्बर, 1973।

स्थान : जढ़ुआ बाजार, हाजीपुर (वैशाली)।

शिक्षा : काशी हिन्दू विश्वविद्यालय से सर्वोच्च अंकों के साथ स्नातकोत्तर (हिन्दी)। बाबासाहेब भीमराव अम्बेडकर बिहार विश्वविद्यालय, मुज़फ़्फ़रपुर से पीएच.डी.।

वृत्ति : अध्यापन।

प्रकाशन : कविताएँ हिन्दी की प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित एवं ‘अँधेरे में ध्वनियों के बुलबुले’, ‘सन्धि-वेला’ तथा 'जनपद : विशिष्ट कवि’ में संकलित। दो कविता-संग्रह 'अभी-अभी जनमा है कवि’ एवं ‘चाँद में अटकी पतंग’; एक उपन्यास ‘मल्लू मठफोड़वा’ तथा एक आलोचना-पुस्तक ‘रचना और रचनाकार’ प्रकाशित।

सम्पादन : ‘कसौटी’ (विशेष सम्पादन-सहयोगी के रूप में), ‘स्मृति-ग्रन्थ : बाबू अयोध्या प्रसाद खत्री’ (सह-सम्पादक के रूप में), ‘शोध-निकष’ (सह-सम्पादक के रूप में), ‘जनपद’ (हिन्दी कविता का अर्धवार्षिक बुलेटिन), ‘कोंपल’ (बच्चों की रचनाओं का संग्रह), ‘पथ यहाँ से अलग होता है’ (नन्दकिशोर नवल की चुनी हुई आरम्भिक कविताओं का संग्रह) तथा ‘रंगवर्ष’ एवं ‘रंगपर्व’ (रंगकर्म पर आधारित स्मारिकाएँ)।

सम्मान : 2006 का विद्यापति पुरस्कार (पटना पुस्तक मेला), 2009 का हेमन्त स्मृति कविता सम्मान (मुम्बई)।

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