दिनकर जी जब काव्य के क्षेत्र में आए, उस समय हिन्दी में कविता की दो धाराएँ बहुत ही स्पष्ट थीं। एक धारा छायावादी काव्य की थी, जिस पर आक्षेप यह था कि वास्तविकता से ईषद् दूर है। दूसरी धारा राष्ट्रीय कविताओं की थी जो वास्तविकता की अत्यधिक आराधना करने के कारण कला की सूक्ष्म भंगिमाओं को अपनाने में असमर्थ थी।
दिनकर जी ने काव्य-पाठकों का ध्यान विशेष रूप से इसलिए आकृष्ट किया कि उन्होंने कला को वास्तविकता के समीप ला दिया, अथवा यों कहें कि राष्ट्रीय धारा की कविताओं में उन्होंने कला की सूक्ष्मातिसूक्ष्म भंगिमाएँ उत्पन्न कर दीं। दिनकर जी में शक्ति और सौन्दर्य का जो मणिकांचन-संयोग दिखाई पड़ा, वही उनकी कीर्ति का आधार बना।
प्रस्तुत कृति दिनकर जी के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर विशद् रूप में प्रकाश डालनेवाली हिन्दी में अपने ढंग की पहली पुस्तक है। इस पुस्तक में हिन्दी के अधिकारी लेखकों ने दिनकर जी की कृतियों पर अपने महत्त्वपूर्ण विचार प्रस्तुत किए हैं—दिनकर-साहित्य के जिज्ञासु पाठकों तथा छात्रों के लिए सर्वथा संग्रहणीय।
Language | Hindi |
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Binding | Hard Back |
Translator | Translator One |
Editor | Editor One Name |
Publication Year | 1967 |
Edition Year | 1967, Ed. 1st |
Pages | 237p |
Publisher | Radhakrishna Prakashan |
Dimensions | 22 X 14 X 1.5 |