Dhumil Ki Kavita Mein Virodh Aur Sangharsh

Author: Nilam Singh
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Dhumil Ki Kavita Mein Virodh Aur Sangharsh
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धूमिल की कविता उस आम आदमी की कविता है जो आज की राजनीति के केन्द्र में है। कभी हाशिये पर रखे जानेवाले इस आम आदमी को संसद से लेकर सड़क तक जिस प्रकार धूमिल ने देखा, शायद उसका पुनर्नवीकरण हम आज की राजनीति में देख रहे हैं। ऐसे में धूमिल की कविता के विविध पहलुओं को उजागर करती यह किताब धूमिल की कविता में विरोध और संघर्ष छोटी परन्तु मुकम्मल दास्तान प्रस्तुत करती है।

जैसा कि नामवर जी ने आमुख में इंगित किया है—धूमिल अपने दौर के सबसे समर्थ कवियों में एक है। ऐसे कवि जिनकी कविता की अनुगूँज साठोत्तरी कविता को प्रतिबिम्बित करती है, पर उससे भी आगे जाकर भविष्य का एक रास्ता तलाशने की राह दिखाती है। काशीनाथ सिंह धूमिल की साहित्य-यात्रा के सबसे घनिष्ठ सहचर थे और उनसे लेखिका की बातचीत में धूमिल के व्यक्तित्व एवं कृतित्व की सार्थक पहचान व्यंजित होती है। नामवर जी की आलोचना-दृष्टि ने धूमिल की कविता की विशिष्टता को पहली बार साहित्य संसार के सामने रखा था और इतने अरसे बाद उनकी नज़र से धूमिल का गुज़रना सुखद संयोग है।

संसद एवं राजनीति के बदलते परिदृश्य में धूमिल की कविता पर आलोचना की यह किताब धूमिल के माध्यम से अपने दौर की समीक्षा है।

More Information
Language Hindi
Format Hard Back
Publication Year 2014
Edition Year 2014, Ed. 1st
Pages 120p
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publisher Radhakrishna Prakashan
Dimensions 22.5 X 14.5 X 1
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Author: Nilam Singh

नीलम सिंह

जन्म : 8 अगस्त, 1975; पटना।

शिक्षा : आरम्भिक शिक्षा मुग़लसराय के केन्द्रीय विद्यालय से। बसन्ता महाविद्यालय से ऑनर्स के उपरान्त काशी हिन्दू विश्वविद्यालय से हिन्दी में एम.ए. (1997) और पीएच.डी. (2002)।

राष्ट्रीय दैनिक समाचार-पत्रों में नियमित स्वतंत्र लेखन।

धूमिल की कविता के विविध पहलुओं पर नए सन्दर्भ में विमर्श।

मनोनयन : केन्द्र सरकार द्वारा हिन्दी सलाहकार समिति (अन्तरिक्ष एवं परमाणु ऊर्जा विभाग) के ग़ैर-सरकारी सदस्य के रूप में।

सम्प्रति : दिल्ली विश्वविद्यालय के हिन्दू महाविद्यालय में अतिथि प्राध्यापकके रूप में कार्यरत।

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